बीबीआर गाँधी
बीते साल जब पंजाब में आप ने सत्ता सम्हाली तब ही पंजाब और देश के अनेक बुद्धिजीवियों ने ये अंदाज़ा लगाना शुरू कर दिया था कि पंजाब की जनता को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। पंजाब की जनता को भले ही कांग्रेस से नाराज़गी दिखानी जरूरी थी लेकिन आप पर भरोसा करने की इतनी जल्दी नहीं करनी थी। अकाली दल के कारण भाजपा को ये नुक्सान उठाना पड़ा कि जनता ने भाजपा को एक सिरे नकार दिया।
बीते साल मार्च में जयराज काजला जो सेवानिवृत्त भारतीय राजस्व अधिकारी हैं, का लेख एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक था- ‘’आप के लिए पंजाब सरकार चलाना एक लिटमस टेस्ट होगा।‘’ जिस प्रकार से खालिस्तान समर्थकों ने 23 फरवरी की घटना को अंजाम दिया, उससे तो साफ़ जाहिर हो चला है कि आप सरकार लिटमस टेस्ट में फेल हो गई है और देश विरोधी हरकतें करने वालों की दबंगई के सामने बौनी दिखाई दे रही है। अमृतपाल सिंह खालिस्तान की मांग को लोकतान्त्रिक निरूपित कर रहा है और उसके समर्थक सरे आम तलवारें लहराते हुए पुलिस को ललकार रहे हैं वो तो किसी भी प्रकार से लोकतांत्रिक नहीं कही जा सकती।
खालिस्तान समर्थकों को सही मायने में किसान आन्दोलन की आड़ में पंजाब की पॉलिटिक्स में परोक्ष रूप से घुसने का मौका मिल गया। या कहीं ऐसा तो नहीं कि आप ने जो वकालत किसान आन्दोलन में की थी उस कारण खालिस्तान समर्थकों से पंजाब में सत्ता हासिल करने का रास्ता तय हुआ।
बहरहाल जिस बात का इशारा सेवानिवृत्त भारतीय राजस्व अधिकारी जयराज काजला ने बीते साल किया था कि आप के लिए पंजाब सरकार का संचालन करना एक बड़ी चुनौती बनेगा। पंजाब की आप सरकार अब इससे कैसे निपटेगी देखना बाकी है। इस घटना से न केवल पंजाब के लिए बाहरी आतंकवाद और अलगाववाद सिरदर्द बनता दिख रहा है, बल्कि इस साल और अगले साल कई राज्यों के विधान सभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भी यह बडा मुद्दा होगा।
पंजाब की इस ताज़ा घटना से तो यह मांग भी उठने लगी है कि केंद्र सरकार को पंजाब की जनता और देश की अखंडता की भलाई के लिए कड़े कदम तत्काल उठाने चाहिए।
(मध्यमत)
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