भोपाल। विधानसभा में पहुंचकर जनता की आवाज बनने की ललक प्रदेश के नेताओं में बरकरार है। छानबीन के बाद स्वीकृत 3129 नामांकन पत्रों की संख्या तो यही बता रही है। प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी की सही संख्या हालांकि 2 नवंबर को नामवापसी के बाद स्पष्ट होगी। बावजूद इसके विधानसभा के बीते चुनावों की तरह इस बार भी प्रत्येक सीट पर मुकाबले में औसतन 12 प्रत्याशी मैदान में रह सकते हैं।
दरअसल जनता का प्रतिनिधि बनने के लिये इस बार 4272 नामांकन पत्र जमा किये गए। इनमें से 454 नामांकन अब तक निर्वाचन आयोग द्वारा निरस्त किए गए हैं। मैदान में उतरने वालों में कांग्रेस और भाजपा जैसे प्रमुख दलों के अलावा अन्‍य दलों के प्रत्‍याशी, बागी और निर्दलीय भी हैं। बागियों के मानमनौवल का दौर जारी है। इसलिये संभावना है कि कुछ प्रत्‍याशी नाम वापस ले लें। लेकिन उसके बावजूद 230 सीटों पर करीब 2800 उम्मीदवार मैदान में टिकते हुए दिखाई दे रहे। और इस हिसाब से प्रति विधानसभा क्षेत्र प्रत्‍याशियों की औसत संख्‍या इस बार भी 10 से 12 के बीच रहने की संभावना है।
बहुत नहीं बदला प्रत्‍याशियों का औसत
प्रदेश के विधानसभा चुनाव में क्षेत्रवार प्रत्‍याशियों के औसत में पिछले कई चुनावों से कोई खास बदलाव नहीं आया है। 2008 के चुनाव में प्रति विधानसभा क्षेत्र प्रत्‍याशियों का औसत 14 था। 2013 के चुनाव में यह संख्या गिरकर 11.23 तक रह गई। और 2018 के चुनाव में यह औसतन 12 पर टिक गई।
वोट तय करेंगे हैसियत!
नामांकन संख्या को देखते हुए चुनावी नतीजों को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं। क्‍योंकि जितने अधिक प्रत्‍याशी हों तो उसका अर्थ है वोटों का उतना ही अधिक बंटवारा। वोटों के बिखरने का नतीजा खासतौर से प्रमुख दलीय उम्‍मीदवारों के चुनावी समीकरण को प्रभावित करता है। मप्र में इस बार 5.61 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करने जा रहे है।
जमानत गंवानें के बाद भी नहीं सबक
विधानसभा चुनावों में अभ्यर्थियों की संख्या में हर बार उतार चढाव होता रहा है और इनमें से ज्‍यादातर लोग सफल नहीं हो पाते बावजूद इसके चुनावी राजनीति के प्रति रुझान कम नहीं हो रहा। अधिकांश प्रत्‍याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाते। 2018 में जहां 2390 ने, वहीं 2013 में 2368 प्रत्याशियों ने अपनी जमानत गंवाई।
इसलिये आकर्षण
विधायक बनने के बाद मिलने वाले वेतन और अन्‍य सुविधाओं के साथ साथ जो रसूख कायम होता है वह चुनावों में उतरने के पीछे सबसे बड़ा आकर्षण माना जाता है। जनहित के कामों के लिए मिलने वाली करोडों की राशि और स्‍थानीय स्‍तर पर होने वाले निर्णयों में भागीदारी भी इस आकर्षण को बढाती है।
अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में कम रुचि
नामांकन के आंकड़े बताते हैं कि बड़े शहरों से जुड़ी विधानसभाओं के मुकाबले अनूसूचित जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित सीटों में जन प्रतिनिधि बनने में अपेक्षाकृत कम लोगों ने रुचि दिखाई है। उदाहरण के लिए इस बार गंधवानी में 6, और बागली, भीकनगांव, बिछिया, धरमपुरी, सरदारपुर और कुक्षी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की संख्या 7 से अधिक नहीं पहुंची। नाम वापसी के बाद यह संख्या और घट सकती है।

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