भैयाजी का लोकतंत्र उर्फ तंत्रलोक का तिलस्म

जयराम शुक्ल

देश की राजनीति में नागनाथ-सांपनाथ के दो पाले हैं,  बुद्धिविलासी पलायनवादी अक्सर यही कहा करते हैं। पर अपने भैय्या जी इन दोनों से ऊपर हैं। राजनीति में तीसरा पाला भैय्या जी किस्म के लोगोँ का है। ये राजनीति में भिंजे होने के बाद भी वैसे ही निरपेक्ष रहते हैं जैसे कमल का पत्ता पानी में रहने के बाद भी पानी से परे।

भैय्याजी फुल मदारी हैं। दोनों के काटे का मंत्र है इनके पास। वशीकरण के सिद्धपुरुष। इनके चेले भौंह के इशारे मात्र से कभी भी किसी का उच्चाटन कर देने के लिए सिद्धहस्त। भैय्याजी विषदंत तोड़ने और जहर निकालने की कला में पारंगत हैं। जहर की तिजारत में इनका कोई जवाब नहीं।

अभी अभी नागपंचमी थी। भैय्याजी को जाने क्या कौतुक सूझा कि नागनाथ से सांपनाथ को लड़ा दिया। नागनाथ तो नागनाथ, अपनी बांबी में लोकतंत्र घुसेड़े कुंडली मारे बैठा था ससुरा। पर भैय्याजी की कृपा सांपनाथ पर हुई।

सो बाली-सुग्रीव युद्ध में जैसे डरपोक्का सुग्रीव जीत गया वैसेइ इधर सांपनाथ चैम्पियन बनता भया।
भैयाजी के पुराने चेले रामसलोना ने पूछा ऐसे कैसे हुआ भैयाजी..?
भैयाजी बोले- बुड़बक इत्ती सी बात नहीं समझता, चाल आड़े तिरछे से चली जाती है न। चल बता नागनाथ किससे किससे डरता है?
जी, नेवला से, मोरइला से, गरुड़ (बाज) से।
तो बता ये सब पलते किसके दड़बे में हैं..?
भैयाजी के, रामसलोना बोला।

तो सुन, अभी उसकी बांबी में नेवले को ढील दिया हूं। इससे वो नागनाथ अभी फनफना रहा है। सबको एक साथ पीछे लगाया न, तो सड़े आलू के माफिक पिलूद हो जाएगा। बहुत फिरंगीबाजी कर ली अब बस्स..। हमरे सिवा लोकतंत्र, फोकतंत्र को कउन बचावैगा। किसी को उसकी बांबी में हथवा तो डालनै परेगा ना..।

खैर अब बता, इसका असर देखा ना। कल तक हमीं पर पूंछ फटकारने वाला सांपनाथ उसकी बांबी से निकलकर आ गया, हमारी पिटारी में। वो अब यहां मजे से खेलेकूदे, बुद्धिविलास करे। बस बहुत हरीचंद महतिमा बनने की कोशिश न करे।

समझ में आ गया भैय्याजी.. इस जंगल के लोकतंत्र के असली पालनहार तो आपई हैं। जहां आप हैं वहां लोकतंत्र है, जहाँ आप नहीं समझो वहां लोकतंत्र नहीं। अब देश के चप्पे चप्पे में लोकतंत्र लाना है। उसे छिपकली, सांपनाथों, नागनाथों से बचाना है।

सुनो सुनो.. भैय्याजी के अश्वमेध का घोड़ा लोकतंत्र की चतुर्दिक विजय के लिए निकल पड़ा है। जिसकी है मजाल, आए सामने, रामसलोना ने किसी पनिहे सँपोले की तरह फुफकार भरी।

हँसते हुए भैयाजी बोले- रामसलोना है तो तू निरा हरामी, पर है काम का। तेरे जैसे दस गिरगिट मिल जाएं न तो हम यूं चुटकी में किसी का भी लोकतंत्रीकरण कर सकता हूं।

लोकतंत्र है क्या…? अंग्रेजी में बोले तो ये फोक इंन्सट्रूमेंट ही हुआ न। नौटंकी का नगाड़ा देखा है ना, हम नगाड़ा बजाने वाला हूँ और उसकी धुन में जो नाचता है न वही लोक है। इस लोकतंत्र में ये हमारा तंत्रलोक है। दुनिया के तमाम लोकतंत्रों से अलग एक नया तंत्रलोक। गौर से देख हमारा यह तंत्रलोक यही नागलोक, सांपलोक, छिपकलीलोक, गिरगिटलोक, मत्स्यलोक का परिसंघ है।

रामसलोना को लगा कि भैय्याजी अपने रूप का वैसा ही विराट दर्शन करा रहे हैं जैसे कि भगवान् कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को कराया था। रामसलोना के पास चरणों में लोट लोट जाने के सिवाए कोई चारा न था, क्योकि भैयाजी पूरी विकरालता के साथ अट्टहास करते हुए अश्वमेध के हिनहिनाते घोड़े पर सवार नजर आने लगे थे।

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