अंग्रेजी भाषा हमेशा से मुझे आतंकित करती रही है। प्रायमरी से लेकर हाईस्कूल तक अंग्रेजी में 50 में से 17 नंबर लाने का संघर्ष मेरे लिये बेहद भारी रहा है। लेकिन इन सब बातों का भला स्मृति ईरानी से क्या संबंध? ये समझने के लिये आपको जरा धैर्य रखना होगा।
फ्लैश बैक में जाकर बताता हूँ। हमारे स्कूल में एक इंग्लिश टीचर थीं। मिजाज की बेहद सख्त लेकिन उतनी ही खूबसूरत। इसे मैडम का जादू ही कहें कि जिन लडकों को अंग्रेजी के नाम से बुखार आता था, उन्होंने भी हायर इंग्लिश के विकल्प का चयन कर लिया। घिसट-घिसटकर ही सही अंग्रेजी की पटरी पर मेरी गाड़ी भी चलने लगी। मैडम हमारी अंग्रेजी सुधारने के लिये कक्षा में हुई रोजमर्रा की बातों को अंग्रेजी में बोर्ड पर लिखने के लिये कहती थीं और गलतियों को वे खुद सुधार दिया करतीं थीं। एक दिन मैडम “Beauty lies in the eyes of the beholder” इस वाक्य की व्याख्या कर रहीं थी। काफी सुंदर और रोचक उदारहरणों से भरा मैडम का संदेश मुझे काफी पसंद आया और मैडम के आदेशानुसार मैंने बोर्ड पर अंग्रेजी में लिख दिया “everyday madam gives a nice massage to all the students” (मैडम रोजाना सभी विद्यार्थियों को बेहतरीन संदेश देती हैं।) लेकिन बोर्ड पर लिखी इबारत को देखते ही मैडम आगबबूला होकर क्लास से बाहर चली गईं। क्लास में कई बच्चे तो मेरे ही स्तर के थे, लेकिन जो थोडी बेहतर अंग्रेजी जानते थे वे मुँह दबाकर हँसने लगे। मैं कुछ समझ पाता इससे पहले ही चपरासी संदेश लेकर आया कि प्रिंसिपल ने मुझे बुलाया है। उन दिनों प्रिंसिपल का बुलावा कोर्ट के नॉन बेलेबल वारंट से कम खतरनाक नहीं होता था। वो तो भला हो हमेशा अव्वल आने वाले उस सहपाठी का जिसने मुझे MASSAGE और MESSAGE की स्पेलिंग में अंतर बताया। ए और ई के बीच छिपे अंग्रेजी के भूत ने मेरे तोते उड़ा दिये। सिट्टी-पिट्टी तो पहले से ही गुम थी, जब अपने लिखे का मतलब समझ आया तो होश ही उड गये।
मैडम इस घटना को महज एक स्पैलिंग मिस्टेक मानने को कतई तैयार नहीं थी। जाने क्यों वे इस वाकये को मेरे छिछोरेपन से जोड़ने पर आमादा थीं। उनका कहना था कि हायर सेकेण्डरी का छात्र ‘मैसेज’ और ‘मसाज’ में अंतर नहीं जाने, ऐसा हो ही नहीं सकता। आनन-फानन में मेरे पिताजी को भी स्कूल बुलवा लिया गया। पिताजी ने प्रिंसिपल और मैडम दोनों को ही यकीन दिलाया कि जो कुछ भी हुआ वह विशुद्ध रूप से मेरी ‘मूर्खता’ व ‘अल्पज्ञान’ के कारण हुआ इसमें ‘उद्दंडता’ और ‘छिछोरेपन’ की कोई भूमिका नहीं है। इसके लिये पिताजी को मेरी पिछली कुछ बेवकूफियों को उदाहरण के रूप में भी प्रस्तुत करना पडा। बडी मुश्किल से मैडम ने मुझे माफ तो कर दिया लेकिन वह दिन हायर इंग्लिश की क्लास में मेरा आखरी दिन था और अंग्रेजी के भूत का खौफ मेरे दिल, दिमाग से होते हुए फेफडों, गुर्दों, लीवर यहाँ तक कि शरीर के हर अंग में समा गया।
बरसों बाद नौकरी के दौरान मुझे अपनी कंपनी की एचआर मैनेजर को एक आवेदन लिखना था। स्कूल की घटना के बाद अंग्रेजी पढने का साहस तो मैं जुटा नहीं सका था, लिहाजा अंग्रेजी में हाथ बेहद तंग था। एप्लीकेशन अंग्रेजी में लिखना जरूरी जान पड रहा था। लिहाजा मैंने अपने एक अंग्रेजीदां सहकर्मी की मदद ली। सहकर्मी ने आवेदन में एचआर मैडम को ‘डियर मैडम’ लिखकर संबोधित किया (एचआर मैनेजर भी अंग्रेजी टीचर की ही तरह खूबसूरत थीं)। दूध का जला छाछ को भी फूँक-फूँककर पीता है। हाईस्कूल में अंग्रेजी के गर्म दूध से जलने के बाद मैं कुछ ज्यादा ही फूँक-फूँककर कदम रखने लगा था। मैंने अपने मित्र से कहा- “अमाँ ये क्या गजब कर रहे हो। डियर का मतलब तो प्यारी होता है न.. मरवाओगे क्या.. मुझसे चार गुना तनख्वाह पाने वाली, ऊँचे ओहदे पर बैठी उस जहीन महिला को मैं ‘प्यारी’ कैसे लिख सकता हूँ।” दोस्त ने बुरा सा मुँह बनाते हुए मुझे झिडका- “अबे गंवार, जिस चीज की अकल नहीं है उसमें न बोला कर। अंग्रेजी में एप्लीकेशन इसी तरह लिखते हैं।” मुझे फिर भी तसल्ली न हुई। अबकी, जिन्हें मैं अंग्रेजी का उस्ताद मानता था, उसने भी ‘डियर मैडम’ की तस्दीक कर ली और राम का नाम लेकर एप्लीकेशन को एचआर मैनेजर तक पहुँचा ही दिया।
अब या तो सहकर्मी की अंग्रेजी सही थी या फिर राम नाम का प्रताप था, उस एप्लीकेशन पर कोई ऐतराज नहीं आया और मेरा काम भी हो गया। लेकिन न जाने क्यों, हमेशा हिन्दी में सोचने वाले मेरे दिल को ये बात अजीब लगती थी कि बड़े पद पर बैठी खुर्राट, सख्त और हमेशा डांटते रहने वाले महिला को मुझ जैसा अदना सा कर्मचारी ‘डियर मैडम’ कैसे लिख सकता है… और आज जब देश की मानव संसाधन मंत्री ने ‘डियर’ संबोधन पर सवाल उठाये तो मुझे लगा कि मेरे सोचने का स्तर पर केन्द्रीय मंत्री के स्तर का है। ये बात अलग है कि मंत्री महोदया की डिग्री को लेकर सवाल और विवाद खडे होते रहे हैं और मेरी डिग्री तो उल्लेख करने के लायक ही नहीं है। लेकिन अंग्रेजी भाषा में पूरी तरह गंवार होने के बाद भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत मुझे ‘डियर’ संबोधन का विरोध करने का हक होना चाहिए। और तो और मैं तो मर्दों को भी डियर लिखने के खिलाफ हूँ। क्या पता कल कोई मेरे नाम पर लिखे आवेदन पर ‘डियर सर’ लिखे और लुगाई इसी बात पर हंगामा कर दे कि- क्योंजी उसे तुम पर बडा प्यार आ रहा है,क्या चक्कर है तुम दोनों के बीच?
क्या आपको नहीं लगता कि नारी अस्मिता और सम्मान के लिये ‘डियर’ लिखने वालों के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ना होगा। हिन्दुस्तान की सरजमीं पर महिलाओं को ‘डियर’ लिखने वालों का मुँह काला किया जाएगा। रही बात शिक्षा नीति पर बहस या चर्चा की… वह तो कभी भी की जा सकती है।
(आशुतोष नाडकर पिछले डेढ दशक से टेलीविजन पत्रकारिता में सक्रिय हैं। सहारा समय, ईटीवी जैसे चैनलों के अलावा वे बेवदुनिया व नवभारत जैसे संस्थानों में रहे हैं। वर्तमान में साधना न्यूज, म.प्र-छ.ग. में स्टेट ब्यूरो प्रमुख के रुप में कार्यरत् हैं।)
Nice article & yes I am also thinking about the use of this word ‘DEAR’.
“Dear” ashutosh , i am a fan of your writing, and this comes as a hilarious and a very funny piece. Your satire on the present issue is excellent. Keep writing
Excellent tone and right sensibility…very well written.
Correct tone and right sensibility..very well written Ashutosh.