गूंगे बने बैठे ‘हम भारत के लोग’

विजयबहादुर सिंह

इस देश को जिन तीन बातों से खतरा है उनमें सबसे पहले है अंधधार्मिकता, जातिवाद और सत्तावादी राजनीति। भारत का सांस्कृतिक इतिहास लिखने वालों ने ही नहीं, साहित्यिक इतिहास और साहित्य का लिखने वालों ने भी इस देश में राष्ट्रीय और राजनीतिक एकता के अभाव को इसकी हर बार की पराजयों का मूल कारण माना है।

आज भी हम उसी या कहें उससे अधिक बदतर मानसिकता में चल रहे हैं। ज्यादातर अपढ़ राजनीति कर्मी और कुशिक्षित राजसत्ता लोभी इस देश के भाग्य विधाता बन रहे हैं। और इनसे भी अपढ़ वे, जो किसी एक धर्म और जाति में संयोगवश पैदा होकर दूसरे धर्म और जाति में पैदा होने वालों के प्रति घृणा और हिंसा का भाव पाल चुके हैं।

सोचना पड़ेगा कि क्या यह हमारी संवैधानिक प्रतिज्ञाओं के अनुरूप है? अब हम यह तो सोचने से रहे कि हमारे मालिक और भाग्य विधाता दिल्ली की लोकसभा और राज्य सभा वाले हैं या उनके मालिक,  ‘हम भारत के लोग’ हैं।

जो समाज और देश अपनी यह बेसिक चेतना खो बैठे और इस या उस सत्ता राजनीति की मानसिक गुलामी करने को अपनी राष्ट्रीयता समझने लगे उसका तो भगवान भी उद्धार नहीं कर सकता। महाभारत की द्यूत सभा में अपना सारा विवेक और बल खोकर गूँगे बने बैठे घृणित महारथियों की तरह हम भारत के लोग तब किस न्याय की उम्मीद करते हैं?

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टीम मध्‍यमत

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