राकेश अचल
मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव सामान्य चुनावों के मुकाबले कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। ग्वालियर में राज्य सभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा की गयी कथित हाथापाई से इस बात के संकेत मिलने लगे हैं। पुलिस की मौजूदगी में मंत्री से धक्का-मुक्की एक गंभीर मामला है।
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के सूत्रधार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक इस बार कांग्रेस के ख़ास निशाने पर हैं। अठारह महीने में ही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ता सिंधिया को ही खलनायक मानकर चल रहे हैं। इस अंचल में युगों बाद पहला अवसर है जब कांग्रेस को महल के प्रभाव के बिना किसी चुनाव के लिए प्रत्याशी चुनने का अवसर मिला है। कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी भी कर दी है, इसलिए यहां मुकाबला भी साफ़-साफ़ नजर आने लगा है।
ग्वालियर सीट से कांग्रेस के टिकिट पर 2018 के विधानसभा चुनाव जीते और फिर मंत्री रहे प्रद्युम्न सिंह तोमर अब उप चुनाव में अपनी पुरानी सीट से भाजपा के प्रत्याशी होंगे। कांग्रेस ने उनके मुकाबले में सुनील शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है। शर्मा दो दशक से सिंधिया खेमे में ही थे, लेकिन अब वे आजाद हैं। शहर में कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच टकराव की पहली घटना कांग्रेस के पोस्टरों को उतारने को लेकर हुई। कांग्रेस का आरोप है की मंत्री के इशारे पर कांग्रेस के पोस्टर हटाए गए, जबकि दो दिन पहले भाजपा ने जब शहर को पोस्टरों से पाटा तब नगर निगम सोती रही।
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने इसी खुन्नस में माझी समाज के धरने पर बैठे लोगों से मिलने पहुंचे मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के साथ पुलिस की मौजूदगी में धक्का-मुक्की की। कांग्रेस और भाजपा में ऐसी तकरार लगभग हर सीट पर होने की आशंका है। डबरा में मंत्री श्रीमती इमरती देवी को घेरने के लिए कांग्रेस ने जोरदार तैयारी की है। श्रीमती इमरती देवी अभी तक अजेय मानी जा रही थीं, लेकिन अब वे संकट में घिर सकतीं है। प्रद्युम्न सिंह तोमर के लिए भी चुनौती कम नहीं है, हालांकि उनका अपना जनाधार है और वे इसी बल पर मैदान में हैं।
पूरे अंचल में कांग्रेस और भाजपा के बीच नहीं अपितु कांग्रेस और सिंधिया के बीच मुकाबला है। कांग्रेस के जो नेता और कार्यकर्ता बीते कई दशक से महल के अधीन थे, वे सब अपने-अपने इलाके में अपनी ताकत दिखाने पर आमादा हैं। सिंधिया विरोधी कांग्रेसी हालाँकि एकजुट नहीं हैं, लेकिन उनका उत्साह कम भी नहीं है। कांग्रेस इस इलाके में दिग्विजय सिंह समर्थकों के भरोसे है। कमलनाथ का यहां कोई ख़ास वजूद नहीं है। अब देखना ये है कि सिंधिया विरोधी कांग्रेसी क्या अपने आपको प्रमाणित कर पाएंगे?
पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह, राकेश चौधरी, केपीसिंह, लाखन सिंह अपने-अपने स्तर पर सिंधिया के खिलाफ मोर्चाबंदी करने में लगे हैं। अपने सिपाहसालारों को प्रोत्साहित करने के लिए दिग्विजय सिंह लगातार इस अंचल का दौरा कर रहे हैं, इसका परिणाम है कि सिंधिया समर्थक एक मंत्री पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हाथ उठा दिया। ऐसी ही घटनाएं अब भिंड, मुरैना, दतिया और गुना में होने की आशंका बनी हुई है।
ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया और भाजपा की प्रतिष्ठा बचाये रखने में पुलिस और प्रशासन को पसीना आ रहा है। इन सभी जिलों में सिंधिया के पसंदीदा अफसरों की तैनाती पहले ही हो चुकी है, अब ये अफसर चकरघिन्नी बने हुए हैं। सिंधिया के साथ हालाँकि पूरी सरकार और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कंधे से कंधा लगाकर भिड़े हुए हैं, लेकिन प्रत्याशियों को कांग्रेस के आक्रोश से कैसे बचाया जाए, किसी के समझ में नहीं आ रहा है।
अंचल में उप चुनाव में फ़िलहाल कोई मुद्दा नहीं है सिवाय गद्दारी के। दोनों दल एक-दूसरे को गद्दार बताने में लगे हैं। अब असल में कोई गद्दार है भी या नहीं ये कोई नहीं जानता। विधानसभा उपचुनावों की घोषणा किसी भी दिन हो सकती है, ऐसे में अभी से ये कहना बहुत कठिन है कि ये उपचुनाव कांग्रेस को महल के बिना खड़ा होना सिखा पाएंगे या नहीं।
भाजपा तो शुरू से महल के साथ रही है, इसलिए उसे ज्योतिरादित्य सिंधिया को आत्मसात करने में ज्यादा कठिनाई होने वाली नहीं है। सिंधिया इन उपचुनावों के बाद भी भाजपा के एक पृथक क्षत्रप के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होंगे, क्योंकि उनके सामने भाजपा में कोई बड़ी चुनौती है नहीं।