मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाल ही में जो पत्र लिखा है उसे राजनीति से दूर रखते हुए मामले की सचाई का पता तो लगाया ही जाना चाहिए। सच को सामने लाना इसलिए भी राज्य की भाजपा सरकार का कर्तव्य है कि उसके कर्ताधर्ता गोवंश की रक्षा की शपथ लिए फिरते हैं और खुद को गोभक्त बताते हैं।
अजयसिंह ने संघ और भाजपा के सर्वोच्च नेतृत्व को जो पत्र भेजा है पहले उसकी तफसील सुन लीजिए। उन्होंने कहा है कि आगर मालवा जिले की सुसनेर तहसील के ग्राम सालरिया में स्थित देश के पहले गो अभयारण्य में लापरवाही के चलते सैकड़ों गायों की मौत हो गई। बाद में उनके अंतिम संस्कार में भी घोर असंवेदनशीलता और लापरवाही बरती गई।
अजयसिंह का आरोप है कि दिन रात गौमाता का नाम रटने वाली सरकार में मृत गायों को विधिवत दफनाने के बजाए खुले में कुत्तों और अन्य जानवरों के नोचने के लिए छोड़ दिया गया। नेता प्रतिपक्ष चाहते हैं कि घटना की उच्चस्तरीय जांच हो और दोषियों पर 302 यानी हत्या का मामला दर्ज कर उनके खिलाफ प्रकरण चलाया जाए।
अजयसिंह की ओर से संघ प्रमुख को पत्र लिखने के पीछे एक कारण यह भी है कि 24 दिसंबर 2012 को जब इस गो अभयारण्य का भूमि पूजन हुआ था, तब भागवत उस समारोह में प्रमुख अतिथि थे। अपने उद्बोधन में उन्होंने गौ पालन को भारतीय संस्कृति और स्वभाव का प्रतीक बताया था। इसी तरह मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उस वक्त ऐलान किया था कि इस जगह को ‘गौ तीर्थ’ बनाया जाएगा।
बकौल अजयसिंह, देश का पहला गो अभयारण्य शुरू होने के मात्र 4 माह में ही गायों की मौत होना शुरू हो गई। जिसे ‘गौ तीर्थ’ बनना था वह स्थान गायों की मौत का घाट बन गया है। और यह सब ऐसी सरकार के रहते हो रहा है जो खुद को गो रक्षक और गाय को भारतीय संस्कृति का प्रतीक बताती है।
कांग्रेस नेता के पत्र की बाकी बातें राजनैतिक कही जा सकती हैं लेकिन उनका एक आरोप बहुत ही गंभीर है। वे कहते हैं कि गाय को चारा देने का ठेका भाजपा के ही एक व्यक्ति को दिया गया है। वहां अलग तरह का चारा घोटाला हुआ है और गायों की मौत का रहस्य इसी ‘चारा घोटाले’ में छुपा है। कहने को वहां पशुपालन विभाग के एक उप संचालक व 3 डॉक्टर सहित 14 लोगों का स्टाफ स्वीकृत है लेकिन ये लोग कभी वहां नहीं रहते।
दरअसल आगर मालवा जिले की सुसनेर तहसील से 20 किमी दूर सालरिया गांव में 472 हेक्टेयर क्षेत्र में बने इस गो-अभयारण्य का भूमिपूजन करीब 6 साल पहले हुआ था। इसकी क्षमता लगभग छह हजार गायों की है। इसे बनाने में 31 करोड़ रुपये की लागत आई है। प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक इस गो अभयारण्य का शुभारंभ 27 सितंबर 2017 को 11 गायों के पूजन से हुआ था।
योजना के मुताबिक यहां गायों की नस्ल से लेकर दूध, गोबर व मूत्र तक पर शोध होगा। गोमूत्र आदि से दवाएं भी बनेंगी। अभयारण्य में आवारा, बीमार, दूध नहीं देने वाले मवेशी भी रखे जाएंगे और उनका संरक्षण किया जाएगा। गायों के लिए यहां शेड बनाए गए हैं और उनके लिए पर्याप्त भूसे की भी व्यवस्था है। देखभाल के लिए 85 कर्मचारियों को ठेके पर रखा गया है।
मध्यप्रदेश में गोवंश की संख्या करीब सवा दो करोड़ है जिनमें गाय, बैल और बछड़े शामिल हैं। लेकिन इतने बड़े गोवंश के लिए आवश्यक गोचर (चारागाह) की जमीन दिनोंदिन कम हो रही है क्योंकि गोचर की जमीन पर अवैध कब्जे होते जा रहे हैं। ऐसे में गो अभयारण्य जैसी योजनाएं गोवंश के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं।
पर चिंता की बात यह है कि इन बेजुबान चौपायों के नाम पर आने वाली राशि ‘दोपाये’ हजम करने लगे हैं। चारा घोटाला केवल बिहार में ही नहीं हुआ है, यह देश के लगभग हर राज्य में किसी न किसी रूप में रोज हो रहा है। मूक पशु न तो कम चारे की या चारा न मिलने की शिकायत कर सकता है और न ही कोई प्रतिरोध कर सकता है। ऐसे में अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर जगह गोशालाओं के नाम पर चंदे के धंधे चल रहे हैं।
गोवंश की चिंता करनी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसका देश व प्रदेश के आर्थिक विकास में बहुत बड़ा योगदान है। ज्यादातर ग्रामीण आबादी आज भी पशुधन पर निर्भर है। 2012 की पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में 1951 में जहां गायों और बछड़ों की संख्या 15 करोड़ 53 लाख थी वहीं 2012 में यह बढ़कर 19 करोड़ 9 लाख हो गई। 1950-51 में जहां दूध का उत्पादन 1 करोड़ 70 लाख टन था वहीं 2015-16 में यह कई गुना बढ़कर 15 करोड़ 55 लाख टन हो गया।
मध्यप्रदेश के लिहाज से देखें तो 2012 की पशुगणना के हिसाब से राज्य में प्रजनन योग्य गायों और भैसों की संख्या 109.90 लाख थी। राज्य में दूध का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 2012 में जहां यह 81 लाख 49 हजार टन था वहीं 2015-16 में बढ़कर 121 लाख 48 हजार टन हो गया। यानी दुग्ध उत्पादन आजीविका का एक बड़ा स्रोत बन गया है।
ऐसे में यदि गोवंश पर कोई खतरा मंडराता है तो यह न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था बल्कि प्रदेश के पूरे आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित करेगा। दुधारू पशुओं के संरक्षण और संवर्धन की योजनाएं तो बहुत हैं और उन पर खर्च की जाने वाली राशि भी कम नहीं है। वर्ष 2017-18 के बजट में ही पशुपालन विभाग की योजनाओं के लिए 1001 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था। पर सवाल घूम फिरकर वहीं आ जाता है कि यह बजट जाना किसके पेट में है, चौपायों के या दोपायों के…