उत्सव, शोक और तनाव के बीच देश

राकेश अचल

ऐसा कम ही होता है जब देश शोक में उत्सव और उत्सव में शोक, तनाव के बीच मनाता है। कल 5 अगस्त को ऐसा ही क्षण, ऐसा ही मंजर देश के सामने होगा। 5 अगस्त को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन करेंगे। जिस समय अयोध्या में उत्सव मनाया जा रहा होगा तब तक देश में वैश्विक महामारी कोरोना से कोई 19 लाख लोग संक्रमित हो चुके होंगे और कोई 40 हजार लोगों की मौत हो चुकी होगी, लेकिन हम उत्सवधर्मी लोग नहीं मानेगे। हम सब कुछ स्थगित कर सकते हैं लेकिन उत्सव मनाना नहीं छोड़ सकते। देश की इस उत्सवधर्मिता को मैं प्रणाम करता हूँ और एक राम भक्त के नाते सभी राम भक्तों को भरे मन से बधाई भी देता हूँ।

मंदिर के लिए भूमिपूजन करना कोई अपराध नहीं है, इसे होना चाहिए क्योंकि ये आम जनता के साथ ही एक राजनीतिक दल के एजेंडे की पूर्ति का उत्सव भी है, लेकिन उत्सव के लिए ये समय और मुहूर्त उचित नहीं है, इसे भी दूसरी तमाम गतिविधियों की तरह या तो स्थगित किया जा सकता था या फिर सांकेतिक रूप से किया जा सकता था। महामारी के कारण बिलखते देश में उत्सव मनाना उनके लिए ही सम्भव है जो सीने में लोहे का दिल रखते हैं या जिनका सीना 56  इंच का होता है…

देश के इतिहास में 5 अगस्त कुछ लोगों के लिए महत्वपूर्ण है तो कुछ लोग इसे काला दिन के रूप में याद करते हैं। आज के ही दिन 365 दिन पहले मौजूदा सरकार ने जम्मू-कश्मीर के तीन टुकड़े लिए थे। आज के ही दिन जम्मू-कश्मीर से उसकी स्वायत्ता छीनी गयी थी, आज के ही दिन इस विशेष राज्य में नागरिक अधिकार निलंबित किये गए थे, निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को जन सुरक्षा के लिए जेलों में बंद किया गया था, लेकिन उन्हें इस महान उत्सव के दिन भी न जेल से रिहा किया गया है और न जम्मू-कश्मीर को कर्फ्यू से मुक्ति मिली है। वहां के लोग आज भी गोलियों की बौछार का सामना कर रहे हैं।

कितनी हैरानी का विषय है कि हम उस दौर में उत्सव मना रहे हैं जब हमारी सीमाओं पर तनाव है। हम अपने जांबाज सैनिकों की शहादत के बावजूद दुश्मन को सीमा से इंच भर भी पीछे नहीं धकेल पाए हैं। हमारी दुश्मन से आज भी बातचीत कामयाब नहीं हुई है। हम हर असफलता और अवसाद को उत्सव में बदलने में दक्ष हो चुके हैं। दुनिया हमारी इस दक्षता का लोहा मानेगी। आने वाली पीढ़ी हमारी पीठ जरूर थपथपायेगी। भगवान हमारा आभार मानेंगे, कृतज्ञता प्रकट करेंगे, क्योंकि जो अब तक नहीं हो सका था, वो 5 अगस्त को होगा।

महामारी के इस भीषण काल में जीवन एक प्रोटोकॉल के तहत जीने के लिए कहा जा रहा है, दूसरी तरफ अपनी मनोकामनाओं का उत्सव मनाने के लिए तोड़ा भी जा रहा है। जो लोग इसको अनुचित बता रहे हैं उन्हें रावण के वंश से जोड़ने की धृष्टता भी दिखाई जा रही है। पता नहीं किसने ऐसे लोगों को रामभक्ति का प्रमाण पत्र जारी करने का ठेका दिया है! 5 अगस्त न राम जन्मोत्सव की तिथि है और न अयोध्या की स्थापना का इस दिन से कोई लेना देना है। इस तिथि का नया इतिहास लिखने पर आमादा राजनीति से अवश्य सीधा रिश्ता है। ये हम तो नहीं भूलेंगे लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ी को इस विसंगति पूर्ण तिथि को याद रखना पड़ेगा। इसका स्मरण करने से उनके सारे दुःख-दारुण दूर हो जायेंगे।

दुनिया में आज भी भारत एक समरसता वाला देश है, दूसरे देशों में भी समरसता कम या ज्यादा पायी जाती है, लेकिन भारत इसकी मिसाल इसलिए है क्योंकि यहां आज भी वैविध्य उपलब्ध है। दुनिया के तमाम धर्म यहां सजीव दिखाई देते हैं लेकिन आने वाले दिनों में ये दृश्य बने रहेंगे, दावे के साथ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि अब देश धर्मनिरपेक्षता की चादर उतार कर रामनामी ओढ़ने को आतुर है। अब पेट में ही नहीं, चेहरों पर भी दाढ़ी-मूंछें बढ़ाई-घटाई जा रहीं है। पता नहीं हम इस महान देश को किस दिशा में ले जाने वाले हैं?

भारत के अतीत में झांकें तो अनेक उतार-चढ़ाव यहां आये। सोचा गया था कि आजादी के बाद हम अपने अतीत से प्रेरणा लेकर ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो हमारी पीड़ा को बढ़ाता हो! हमने 35 साल तक ऐसा किया भी। देश को सिर्फ बनाया लेकिन 1992 में एक इमारत को तोड़ा गया और दूसरी इमारत बनाने की कसमें ठीक उसी तरह खाई गयीं जैसी अतीत में खाई गयी थीं। यानि जो सिलसिला बंद हो चुका था, उसे हमने दोबारा शुरू कर दिया। अब हमारे कलेजे ठंडक महसूस कर रहे हैं, क्योंकि हम राजनीति को जो दिशा देना चाहते थे उसमें पहले-दूसरे चरण पर कामयाबी मिलती दिखाई दे रही है।

भारत में ये समरसता का नहीं बल्कि उन्माद का युग है। हम आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन उन्माद के सहारे। हम बिना उन्माद के कोई काम करना ही नहीं चाहते क्योंकि उन्माद में किसी को हकीकत दिखाई नहीं देती कोई सवाल नहीं करता, कोई असंतोष का प्रकटीकरण नहीं करता। उन्माद मनुष्य को हमेशा से प्रिय है। इसी उन्माद से हमने आजादी की लड़ाई  जीती। यही उन्माद हमें एक ताकत देता है, लेकिन उन्माद का इस्तेमाल जब किसी और ढंग से किया जाता है तो चिंता होती है। दुर्भाग्य से उन्माद का दुरुपयोग अब संगठित रूप से सत्ता पर काबिज बने रहने के लिए किया जा रहा है। इसका प्रतिकार अपराध माना जा रहा है।

उन्माद में डूबकर उत्सव मनाने वाले मित्रों को समझना चाहिए कि- ‘उन्माद (mania) एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसको मन संताप के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है। इसमें व्यक्ति की भावनाओं तथा संवेग में कुछ समय के लिए असामान्य परिवर्तन आ जाते है, जिनका प्रभाव उसके व्यवहार, सोच, निद्रा, तथा सामाजिक मेल जोल पर पड़ने लगता है। यदि इस बीमारी का उपचार नहीं कराया जाए तो इसके बार-बार होने की संभावना बहुत हो जाती है। प्राचीन तथा मध्यकालीन युग में इस रोग का कारण भूत-प्रेत माना जाता था। इसके उपचार के लिए झाड़ फूँक, गंडे, ताबीज आदि का उपयोग होता था।

आधुनिक काल में शारकों, जैने, मॉटर्न प्रिंस और फ्रॉयड इत्यादि मनोवैज्ञानिकों ने इसका कारण मानसिक बतलाया है। अब ये आपके ऊपर है कि आप अपने आपको इस उन्माद से बचाएं या इसमें शामिल हो जाएँ! वैसे जरूरत खुद को, समाज को और देश को उन्माद से बचाने की ज्यादा है। जय-जय श्रीराम, जय-जय सीताराम। सहमत होकर भी यदि प्रतिक्रिया देने में हानि देखते हों तो मौन रहें।

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