अजय बोकिल
इस कोरोना संकट में अपने देश में राजनीति का नया मुद्दा केन्द्र सरकार द्वारा जारी आरोग्य सेतु ऐप है। इसे लांच तो बीते माह 2 अप्रैल को ही किया गया था, लेकिन मोदी सरकार की ताजा गाइड लाइन कि सभी शासकीय कर्मचारियों और निजी कंपनियों के कर्मचारियों को भी इसे डाउन लोड करना अनिवार्य है तथा इसे डाउन लोड करवाने की जिम्मेदारी सम्बन्धित कंपनी मालिक की होगी, के बाद नया विवाद खड़ा हो गया है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि आरोग्य सेतु ऐप एक अत्याधुनिक निगरानी सिस्टम है, जिसे प्राइवेट ऑपरेटर को आउटसोर्स किया गया है। इसकी कोई संस्थागत निगरानी नहीं है, इससे डेटा सुरक्षा और प्राइवेसी को लेकर गंभीर चिंताएं खड़ी हो रही हैं। टैक्नालॉजी हमें सुरक्षित रहने में मदद कर सकती है, लेकिन भय का लाभ उठाकर लोगों को उनकी सहमति के बिना ट्रैक नहीं किया जाना चाहिए।
उधर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह इसके जरिए लोगों का निजी डेटा हासिल करना चाहती है। उन्होंने तो इस ऐप को ही संदेहास्पद बता दिया। केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि ऐप का उददेश्य लोगों को कोरोना संक्रमण से अलर्ट करना है। अब तक 8 करोड़ से ज्यादा लोग इसे डाउन लोड कर चुके हैं। इससे निजी जानकारियां लीक होने का कोई खतरा नहीं है। प्रसाद ने राहुल गांधी पर पलटवार किया कि जीवन भर ‘निगरानी’ में रहने वाले लोग निजता की रक्षा की बात न करें।
रविशंकर की बात अपनी जगह सही है, लेकिन कुछ ऐसे सवाल हैं, जिन पर राजनीति से हटकर विचार जरूरी है। मसलन क्या ऐसे ऐप की वास्तव में कोई जरूरत थी? जब रोकथाम और बचाव ही कोरोना से बचने का एकमात्र उपाय है तो फिर यह ऐप हमारी कितनी मदद करेगा? इस ऐप में मांगी गई निजी जानकारियों की गोपनीयता की क्या गारंटी है? अगर यह जानकारियां लीक हुई तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? इस बात का क्या भरोसा कि सरकार आपकी निजी जानकारियों का उपयोग अपने राजनीतिक हितों के लिए नहीं करेगी?
सबसे अहम बात तो यह है कि यह ऐप कोरोना अलर्ट के कारण ही सही, आपके हर मूवमेंट पर नजर रखेगा। यानी आप कहां हैं, किससे मिल रहे हैं, कहां जा रहे हैं आदि। कहने को यह कोरोना निगरानी है, लेकिन उसका माध्यम तो आप ही होंगे? क्या हममें से हर व्यक्ति इस परोक्ष निगरानी में रहने के लिए तैयार है?
हो सकता है कि कुछ लोग राहुल गांधी और ओवैसी द्वारा उठाए सवालों को यह कहकर खारिज करें कि उन्हें तो हर मामले पर राजनीति करना है। चूंकि कोरोना काल में ज्यादा मुद्दे मिल नहीं रहे तो अब आरोग्य ऐप ही निशाने पर है। उन्हें मोदी सरकार का कोई भी अच्छा काम नहीं सुहाता, इत्यादि। पहले यह जान लें कि ‘आरोग्य सेतु ऐप’ दरअसल है क्या? क्योंकि बहुत से लोगों को अभी भी नहीं पता है कि कोरोना वॉर का यह ऐप एंगल क्या है?
आरोग्य सेतु का अर्थ है ‘स्वास्थ्य रक्षक पुल।’ इस ऐप को किसी भी स्मार्ट फोन में डाउन लोड किया जा सकता है। इसे ‘नेशनल इंफार्मेटिक्स सेंटर’ ने विकसित किया है। यह 11 भाषाओं में उपलब्ध है। ऐप यह बताता है कि आप किसी कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं आए हैं। वह आपको इससे अलर्ट करता है। साथ ही ब्लूटूथ सेंसर की मदद से यह आपके हर मूवमेंट को डिटेक्ट करता है। वह यूजर को ट्रैस कर कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर उसे नोटिफाइ करता है।
ऐप आपसे व्यक्तिगत डाटा मांगता है जो भारत सरकार के साथ शेयर होता है। केन्द्र सरकार का दावा है कि इसमें कोई थर्ड पार्टी शामिल नहीं है। पीआईबी की अधिकृत वेबसाइट पर बताया गया है कि ये ऐप कोविड-19 संक्रमण के प्रसार के जोखिम का आकलन करने और आवश्यक होने पर आइसोलेशन सुनिश्चित करने में मदद करेगा। सरकार ने अपने कर्मचारियों को सलाह दी है कि यदि यह एप्लिकेशन ‘मध्यम’ या ‘उच्च जोखिम’ दिखाए तो तब तक ऑफिस न आएं, जब तक ऐप पर स्थिति ‘सुरक्षित’ या ‘कम जोखिम’ वाली नहीं हो जाती।
इस बारे में कानून के जानकारों का कहना है कि कोई भी सरकार इस तरह के ऐप को डाउनलोड करना अनिवार्य नहीं बना सकती। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर कानून विशेषज्ञ विराग गुप्ता का कहना है कि ऐप डाउनलोड करने को लेकर सबसे बड़ा विवाद निजता के हनन का है। लेकिन हमारे देश में निजता के हनन को लेकर तस्वीर अब भी बहुत स्पष्ट नहीं है। इसे मौलिक अधिकार मानने वाला कोई कानून अभी सरकार ने नहीं बनाया है। शायद वह चाहती भी नहीं है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट में विराग कहते हैं “लॉकडाउन के दौरान बहुत बड़े-बड़े अधिकार (समानता, स्वतंत्रता, जीवन के अधिकार) प्रभावित हुए हैं। जनता को बचाने के लिए इसे तीन क़ानूनों के तहत लागू किया गया है। एपिडेमिक डिसीज एक्ट, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट और सीआरपीसी 144। चूंकि अभी अदालतों की व्यवस्था भी ठप है, इसलिए सरकार के अधिकांश आदेशों की कानूनी वैधता पर अभी सवाल खड़े नहीं हो रहे हैं। लेकिन जब महामारी का ये दौर जब गुजर जाएगा, तब इन मुद्दों पर बात और बहस जरूर होगी। कोई चाहे तो इसे कानूनी चुनौती दे सकता है। लेकिन उस पर फैसला आने में बहुत वक्त लगेगा।
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि इस तरह का ऐप लागू करने वाला भारत इकलौता देश नहीं है। बताया जाता है कि इसराइल सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को रोकने एक अस्थायी कानून ही बना दिया है। इसके अलावा चीन, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, सिंगापुर जैसे देशों में भी सरकारें कोरोना को रोकने में तकनीकी मदद ले रही हैं। लेकिन निजता के हनन के आरोप सब पर लग रहे हैं। आरोग्य सेतु ऐप के बारे में सायबर एक्सपर्ट्स को आशंका है कि ऐप में जोड़ी गई सर्विसेज जैसे कि पीएम फंड के लिए पेमेंट और ई-पास आदि से काफी डेटा कलेक्शन हो सकता है। यह भी देखने में आया है कि इस ऐप में प्रायवेसी पॉलिसी का सही ढंग से पालन नहीं हो रहा है।
राहुल गांधी और ओवैसी के आरोप राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं, लेकिन जो सवाल उठाए जा रहे हैं, उन्हें आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता। जैसे कि कोरोना डर की आड़ में कहीं सरकार लोगो को ट्रैक तो नहीं करना चाहती, वह भी लोगों की पूर्व सहमति के बगैर। दूसरे, जब हमारे यहां बैंकों से डाटा चोरी हो सकता है तो इस ऐप के सुरक्षित होने की क्या गारंटी है? वैसे भी इस निगरानी प्रणाली को निजी ऑॅपरेटर के माध्यम से आउटसोर्स किया गया है।
जाहिर है कि लोगों के मन में शंकाएं हैं, जिन्हें दूर किया जाना जरूरी है। राहत की बात यह है कि यह ऐप केवल कोरोना महामारी से निपटने के लिए तैयार किया गया है और अस्थायी है। असल सवाल सरकार की नीयत का है कि इसकी आड़ में वह कोई दूसरा हित तो नहीं साधना चाहती?
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)
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टीम मध्यमत