राकेश अचल
विश्वव्यापी कोरोना संकट के समय दिन-रात गाल बजाने वाली सरकारें कोरोना से ज्यादा हृदयहीन हो गयी हैं। कोरोना के इलाज के लिए की गयी व्यवस्थाओं ने अब दम तोड़ दिया है। अब देश में लोग कोरोना से कम सरकारी व्यवस्थाओं में खामियों की वजह से ज्यादा मर रहे हैं। अब हर दिन अस्पतालों में अव्यवस्थाओं की ऐसी-ऐसी हृदयविदारक खबरें आ रही हैं जिन्हें सुनकर कलेजा मुंह को आने लगा है।
हम बचपन से सुनते आये हैं कि हिन्दुस्तान में मंदिरों और अस्पतालों के दरवाजे हर समय, हर किसी के लिए खुले रहते हैं। खुले रहते भी थे, लेकिन अब समय बदल गया है। अब आप मंदिर में तो एक बार आसानी से प्रवेश पा सकते हैं लेकिन अस्पताल में नहीं। कोरोना का ऐसा हौवा खड़ा कर दिया गया है कि सामान्य मरीज भी अब इलाज का मोहताज हो गया है। अगर आपके पास सिफारिश नहीं है तो आपको अस्पताल की दहलीज पर ही बिना इलाज मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।
आप भरोसा करें या न करें, आपकी मर्जी है लेकिन हकीकत यही है। अभी हाल की बात है ग्वालियर में एक लड़की कोरोना से संक्रमित हो गयी। उसे उसके परिजन एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल लेकर भटकते रहे लेकिन किसी ने भी उसे भर्ती नहीं किया। संयोग से उसके राजनीतिक संपर्क थे, उस लड़की के परिवार ने जैसे-तैसे राज्य सभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया से सम्पर्क किया। सिंधिया ने कलेक्टर को लड़की की मदद करने के लिए कहा। कलेक्टर ने अपने अधीनस्थ को निर्देश दे दिए, इसके बावजूद लड़की के लिए अस्पताल के दरवाजे आधा दिन भटकने के बाद ही खुले।
बीते रोज परिवहन मंत्री के निजी स्टाफ में शामिल नीलकंठ खर्चे किस्मत वाले नहीं थे इसलिए वे बिना इलाज के ही अस्पताल की दहलीज पर अपनी जान से हाथ धो बैठे। हमारे एक पत्रकार साथी को बड़ी मुश्किल से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में दाखिला मिला, तब उनकी जान बच सकी। ऐसी असंख्य घटनाएं अकेले ग्वालियर में नहीं अपितु पूरे देश में हो रहीं हैं। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर हर शहर में यही अराजकता है। इंदौर जैसे एक-दो शहर इसके अपवाद हो सकते हैं जहां जिला प्रशासन ने कोविड अस्पतालों में प्रवेश के लिए एक कंट्रोल रूम बनाकर पीड़ितों को अस्पताल में दाखिल करने की एक फुलप्रूफ व्यवस्था कर रखी है, फिर भी सबको इलाज की गारंटी नहीं है।
इस बात में अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि कोरोना का फैलाव खतरनाक रफ्तार पकड़ चुका है। रोजाना एक लाख के आसपास नए मरीज सामने आ रहे हैं। हजार, बारह सौ की मौत हो रही है। इन आंकड़ों पर भी भरोसा इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि आंकड़े जुटाने के मामले में केंद्र सरकार पहले ही अक्षम साबित हो चुकी है। फिर भी यदि ये आंकड़े सही मान लिए जाएँ तो भी स्थिति भयावह है। राज्य सरकारें दावे कर रही हैं कि उनके पास इलाज के समुचित इंतजाम हैं, बिस्तर हैं, आईसीयू हैं, वेंटिलेटर हैं, आक्सीजन है। सवाल ये है कि यदि सब कुछ है तो मरीजों को अस्पताल में इलाज के लिए घुसने क्यों नहीं दिया जा रहा?
एक अप्रत्याशित महामारी से देश की जनता को बचने के दावे यदि खोखले न होते तो अब तक देश में कोरोना 86 हजार से ज्यादा लोगों की जान न ले लेता। आप तर्क देंगे कि लोग तो अमेरिका में भी मर रहे हैं, बिलकुल सही है, लेकिन अमेरिका में कोई भी अस्पताल मरीज को लेने से इंकार नहीं कर रहा। हमारे यहां कोरोनाकाल, कमाई-काल में बदल गया है। सरकार ने कोविड प्रोटोकॉल को इस तरह से लागू किया है कि सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों में तो इलाज असम्भव हो ही गया है साथ ही निजी होटलों में बनाये गए आइसोलेशन सेंटर भी गरीब की पहुँच से बाहर हो गए हैं।आज बेरोजगारी, छंटनी, मंदी से जूझ रहे देश में कितने लोगों के पास कोरोना के लिए बनाये गए आईसोलेशन सेंटरों में रहने के लिए प्रतिदिन पांच से सात हजार रुपये खर्च करने की कूबत है? और सरकारी आईसोलेशन सेंटर किसी बूचड़खाने से कम नहीं हैं।
मैं अपने मध्यप्रदेश की बात करूँ तो यहां स्थिति बेहद खराब है। राजधानी भोपाल में एक चिरायु अस्पताल को छोड़कर दूसरे किसी अस्पताल में कोविड के मरीज को बिना सिफारिश भर्ती ही नहीं किया जा रहा। क्या ये मुमकिन नहीं है कि प्रदेश सरकार पूर्व में शहरों में वार्ड स्तर पर बनाये गए रैन बसेरों को कोविड उपचार केंद्रों में बदल दे। कम से कम मरीज को बुनियादी इलाज तो मिलना सुनश्चित किया जाना चाहिए।
अस्पतालों को मंदिर की तरह सबके लिए खोलने की व्यवस्था करना राज्य सरकारों का नैतिक कर्तव्य है, किन्तु दुर्भाग्य है कि अब नैतिकता घास चरने जा चुकी है। क्या सम्भव नहीं है कि जेसीज, रोटरी जैसी सम्पन्न संस्थाएं इस संकटकाल में अपने संसाधन ऐसे छोटे-छोटे उपचार केंद्र स्थापित करने में झोंक दें जिनमें मरीज को स्थानीय स्तर पर प्राथमिक इलाज मिल सके।
पिछले एक माह से जिस प्रकार मध्यप्रदेश की सरकार उपचुनावों के लिए महाशिलान्यास समारोहों में व्यस्त है, उसे देखकर नहीं लगता कि यहां कोरोना को लेकर कोई गंभीर है। सब राम भरोसे हैं। प्रदेश में एक लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, दो हजार से ज्यादा अपनी जान गंवा चुके हैं और पता नहीं आने वाले दिन कितने भयावह होंगे। हम फिर निवेदन करना चाहते हैं कि अस्पतालों के दरवाजे हर मरीज के लिए हर समय खुले रहने की व्यवस्था को सुनिश्चित किया जाये ताकि लोग कोरोना से भले हार जाएँ लेकिन अव्यवस्थाओं की वजह से उन्हें मौत का शिकार न बनना पड़े।
कोरोना संक्रमित न तो व्यवस्थाओं के लिए आंदोलन कर सकता है और न धरने पर बैठ सकता है। इसलिए ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो अपना नैतिक दायित्व निभाए। राजनीति के लिए तो हर रोज अवसर मिलेंगे लेकिन आम जनता की प्राण रक्षा का ऐसा दुर्गम अवसर कभी-कभी ही आता है।
शासन प्रशासन सरकार नेताओं को चाहिए कि अभी अपना पूरा ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं में लगा दें ज्यादा से ज्यादा बजट स्वास्थ्य से संबंधित मशीनरी दवाइयां डॉक्टर सफाई सेवाओं को मजबूत करने में लगाना चाहिए शहर को चमकाने में करोड़ों रुपया खर्च करने की अभी संभवत आवश्यकता नहीं है यह सब आदमी जिंदा रहेगा तो बाद में भी हो सकता है आपके विषय ने बहुत कुछ कह दिया है