कोरोना काल : धर्मगुरुओं की अहम भूमिका

भोपाल/ समाज में आम जन के बीच संवाद की बहुत जरूरत है। वर्तमान में विज्ञान एक तरफ है और आस्था दूसरी तरफ है। वैज्ञानिक शोध और विकास तो कर रहे हैं लेकिन इन्हें लोग अपने जीवन में कैसे शामिल करें, इन संदेशो को धर्मगुरु आसानी से लोगों तक पहुंचा सकते हैं, क्योंकि लोगों को धर्म गुरुओं पर भरोसा है। यह बातें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा ने ‘विविध संस्कृतियों में विज्ञान संचार, पंथ प्रधानों का योगदान’ विषय पर आयोजित वेब संगोष्ठी में कहीं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद और स्पंदन के संयुक्त तत्वाधान में ‘विविध संस्कृतियों में विज्ञान संचार, पंथ प्रधानों का योगदान’ विषय पर वेब संगोष्ठी का आयोजन जूम प्लेटफार्म पर किया गया। संगोष्ठी में पंथ प्रधानों ने विविध संस्कृतियों में विज्ञान के संदर्भ में अपना जीवन सार्थक और सुरक्षित बनाने के लिए आम जन तक कैसे बातें पहुंचाई जायें, इस पर अपने विचार रखे।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा कि कोरोना काल में लोग कैसे स्वस्थ रहें और कैसे अपना बचाव करें, यह बातें यदि धर्मगुरुओं के माध्यम से लोगों तक पहुंचें तो लोग उन्‍हें आसानी से अपने जीवन में शामिल करेंगे। विज्ञान की छोटी छोटी बातें इनके माध्यम से घर घर तक पहुंचाई जा सकती हैं और लोगों को जागरूक किया जा सकता है।

विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव जयंत राव ने कहा कि मानव जाति के विकास में धर्म और विज्ञान दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जहाँ विज्ञान भौतिक तथ्यों को लाता है तो वहीँ धर्म संस्कृति का विकास करता है। वर्तमान समय में वैश्विक महामारी कोरोना एक चुनौती के रूप में सामने है। पूरा विज्ञान जगत इससे मुक्त होने के उपाय ढूंढने में लगा है। विज्ञान और कोरोना के बीच एक प्रकार से संघर्ष चल रहा है। जब तक सही उपाय नहीं आ जाता तब तक सम्यक दृष्टि की बात आती है। इसमें पंथ प्रमुख मार्गदर्शक की भूमिका में रहते हैं। लोग प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन को कैसे आगे बढ़ायें, यह धर्मगुरु ही समाज को बता सकते हैं।

संगोष्ठी में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के स्वामी विशालानंद जी ने कहा ऋषि शब्द का अर्थ ही खोजकर्ता वैज्ञानिक है। भारत की परंपरा हमेशा विज्ञान आधारित रही है। गीता में लिखा गया है, ‘ज्ञानम विज्ञान सहितम’।  हमारी प्राचीन परंपरा जूते उतारकर, नहा कर घर में प्रवेश करने की रही है, जो कालांतर में कम होती चली गयी। महामारी आई तब लोग उसी पुरानी परंपरा, स्वच्छता के पालन पर जोर दे रहे हैं। जमात उलमा के अध्यक्ष मौलाना सुहैल ने कहा कि इस्लाम मजहब में हमेशा प्रकृति को बचाने की तालीम दी गयी है, पौधों को लगाने पर जोर दिया गया है और साफ़ सफाई को आधा इमाम बताया गया है। मजहबी लोगों की जिम्मेदारी है कि विज्ञान के बारे में लोगों को बताएं और विज्ञान को मजहब का हिस्सा बनायें।

इस संगोष्ठी में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धन समिति के सदस्य परमजीत सिंह, उत्‍तरप्रदेश के विधायक डॉ. डेंजिल एम. गोडिन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के अध्यक्ष एवं सलाहकार मनोज कुमार पटेरिया, वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी, डॉ. ऋतु दुबे तिवारी, शुभ्रता मिश्रा और स्पंदन फीचर्स के संस्थापक डॉ. अनिल सौमित्र आदि ने भी अपने विचार रखे।

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