हेमंत पाल
कोरोना संक्रमण के कारण देशभर में लगे लॉक डाउन के बाद अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी है। जिंदगी की रफ़्तार पहले की तरह सामान्य तो नहीं है, पर गाड़ी चलना शुरू हो गई। तीन महीने पहले जो सबकुछ थम सा गया था, उसके पहिए घूमते नजर आने लगे। लेकिन, अभी भी जो थमा है, वो है बॉलीवुड। जो हालात पहले दिन थे, वही आज भी हैं। फिल्मों की शूटिंग नहीं हो पा रही, जो फ़िल्में बन गईं वो रिलीज नहीं हो रही, क्योंकि सिनेमाघर बंद हैं। सिनेमाघर खुल भी गए, तो उम्मीद नहीं कि दर्शक आएंगे। क्योंकि, संक्रमण का ख़ौफ़ हर व्यक्ति के दिमाग में इतने अंदर तक घर कर गया है, कि वो कोई रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है। इस आशंका में दम लग रहा है, कि फिल्मों की इस अनिश्चित दुनिया को महामारी के ख़ौफ़ से निकलने में कम से कम दो साल लगेंगे।
फिल्में बनाना हमेशा ही एक जुआ माना जाता है। क्योंकि, दर्शकों की पसंद का कोई मापदंड नहीं है। अब, जबकि हालात बिल्कुल विपरीत हैं, कैसे कहा जाए कि दर्शक सिनेमाघर आकर अपने पसंदीदा कलाकारों की फिल्म देखने का जोखिम मोल लेंगे। इसका सबसे सटीक उदाहरण चीन में देखा जा सकता है, जहाँ सरकार ने हिम्मत करके सिनेमाघर खोल दिए, पर जब दर्शक नहीं आए तो तीसरे दिन फिर बंद कर दिए गए। कोई आश्चर्य नहीं कि दर्शकों की यही प्रतिक्रिया यहाँ भी सामने आए। इसीलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि फिल्मों के लिए ये बेहद मुश्किल भरा वक्त है। सिनेमाघरों के ताले खुलने के बाद भी लोग भीड़-भाड़ वाली जगहों से दूर ही रहना पसंद करेंगे।
एक हिट फिल्म के निर्माता को अपनी फिल्म रिलीज होने पर सिनेमाघरों से करीब 60 फीसदी कमाई होती है। जब ये हिस्सा उसके हाथ नहीं आएगा, तो कोई फिल्म बनाने का रिस्क ही क्यों लेगा। संभव है कि कुछ बड़े फ़िल्मकार कुछ समय के लिए फिल्म बनाना ही बंद कर दें। क्योंकि, ज्यादा लागत वाली फिल्म बनाने का काम अब जोखिम भरा होगा। हो सकता है कि सिनेमाघरों के लिए कम बजट की फ़िल्में ज्यादा बने, जिनमें रिस्क भी कम होता है।
इससे ये अनुमान भी लगेगा कि कितने दर्शकों ने फिल्म देखने की शुरुआत की। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि देशभर के करीब 9500 सिनेमाघरों के ताले कब खुलेंगे। इसी अनिश्चितता की वजह से देश की दो सबसे बड़ी मल्टीप्लेक्स कंपनियों पीवीआर और आइनॉक्स के शेयर भी करीब 45 फीसदी नीचे आ गए।
फिल्म कारोबार की जानकारी रखने वालों का आकलन है कि लॉकडाउन में इस मनोरंजन कारोबार को 15 करोड़ डॉलर से ज्यादा की अनुमानित कमाई का नुकसान हो गया। लेकिन, इस अनुमान में सिनेमा से जुड़े उन लोगों की गिनती नहीं की गई, जिनका घर इसी से चलता है। बड़े कलाकार, निर्माता, निर्देशक और इस कारोबार से जुड़े नामचीन लोगों को शायद बॉलीवुड का ये संकट ज्यादा न सताए। लेकिन, फिल्म निर्माण और इस कारोबार से जुड़े मध्यम और छोटे लोगों की तो कमर टूट गई। सबसे ख़राब हालत फिल्म निर्माण से जुड़े दिहाड़ी पर काम करने वालों की है।
हमारे यहाँ हर साल करीब 1200 फिल्में बनती हैं। इनमें उंगली पर गिनी जाने वाली फ़िल्में ही अच्छा कारोबार कर पाती हैं। लॉकडाउन से पहले बनकर तैयार करीब दर्जनभर फ़िल्में अटक गई। गुलाबो-सिताबो, लक्ष्मी बम और ‘शकुंतला देवी’ जैसी कुछ फिल्मों के निर्माताओं ने हिम्मत करके फिल्मों को ओटीटी पर रिलीज करके अपने नुकसान की भरपाई कर ली। पर, सारे फिल्मकारों का सोच ऐसा नहीं है।
लॉकडाउन से ठीक पहले रिलीज होने वाली रोहित शेट्टी की ‘सूर्यवंशी’ और सलमान खान प्रोडक्शन की ‘राधे’ इसीलिए रुकी है, कि वे सिनेमाघर में ही रिलीज करना चाहते हैं। लेकिन, वो दिन कब आएगा और दर्शकों की प्रतिक्रिया क्या होगी, फ़िलहाल इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। पर, ये तय है कि कई बड़े बजट की फिल्मों को अनिश्चित समय के लिए टाल दिया गया है।