राकेश अचल
कोरोना दुनिया में जन-जीवन के साथ ही अब शासन प्रणालियों और सियासत को भी बदलने पर आमादा है। दुनिया के कुछ राष्ट्रों ने बाकायदा इसके लिए कोरोना को ढाल बना लिया है। अब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों को टालने के लिए कोरोना को ढाल की तरह इस्तेमाल करने की मंशा प्रकट की गयी है। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में आप भारत में भी इस तरह की आहटें सुनें।
इस सदी में सबसे बड़ी महामारी फ़ैलाने वाले कोरोना से अब तक दुनिया में 17,456,362 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 675,764 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। मरने वालों में सर्वाधिक 1,55,284 लोग अमेरिका के हैं। अमेरिका में अभी भी 2,195,692 लोग संक्रमण के शिकार हैं। वैसे वहां अब तक कुल 4,634,853 लोग संक्रमण का शिकार बन चुके हैं।
कोरोना संकट के चलते अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट में कहा कि चुनाव टाल दिए जाएं। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नवंबर 2020 में होने हैं। ट्रंप ने सुझाव यह कहते हुए दिया है कि पोस्टल वोटिंग से राष्ट्रपति चुनाव सही नहीं हैं। उन्होंने ट्वीट किया, ‘वैश्विक पोस्टल वोटिंग से 2020 का चुनाव इतिहास का सबसे ज्यादा गलत और धोखाधड़ी वाला होगा। और अमेरिका के लिए भी यह शर्मिंदगी भरा होगा। चुनाव में देरी करें, जब तक लोग ढंग से, विश्वसनीयता से और सुरक्षित होकर वोट डालने के लिए तैयार नहीं हो जाते।‘’
मानवीय दृष्टि से देखें तो ट्रम्प का मशविरा उचित है, लेकिन व्यावहारिक दृष्ट से देखें तो ये एक बहाना मात्र है, क्योंकि दुनिया ने कोरोना के साथ जीने-मरने का संकल्प ले ही लिया है। ट्रम्प अमेरिका के सबसे अधिक विवादास्पद और अलोकप्रिय राष्ट्रपति माने आते हैं। उन्हें इन चुनावों में अपनी पराजय की आशंका भी नजर आ रही है, इसलिए उन्होंने कोरोना को ढाल की तरह पकड़ रख है। वे अपने मकसद में कामयाब होते हैं तो अमेरिका के बाद ब्राजील और भारत जैसे देशों को भी अपने यहां अनेक स्तरों पर चुनाव टालने का रास्ता मिल सकता है।
भारत कोरोना से पीड़ित देशों में तीसरे क्रम पर है। यहां अनलॉक-3 आरम्भ हो गया है लेकिन इसके साथ ही संक्रमण की रफ्तार तेज भी हो रही है। रोजाना कम से कम पचास हजार नए मरीज मिल रहे हैं। भारत में अब तक 1,639,350 लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं और करीब 35,786 लोगों की मौत हो चुकी है। हालाँकि इस बीच भारत में 1,059,093 लोगों की जान बचाई भी गयी है। बावजूद इसके, अभी भी देश में कोरोना के 544,471 सक्रिय मामले हैं और इनमें लगातार इजाफा हो रहा है। इस कारण देश में सियासत और मंदिर के भूमि पूजन जैसे कार्यक्रमों को छोड़ तमाम गतिविधियां स्थगित हैं, यहां तक की न्याय और शिक्षा भी।
अमेरिका की तरह कोरोना से घिरे भारत में अनेक चुनाव होने हैं, बिहार विधानसभा के अलावा कम से कम 8 लोकसभा सीटों और पांच दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों के उप चुनाव भी होने हैं। इन चुनावों को स्थगित करने की मांग भी होने लगी है, किन्तु अब तक केंचुआ (केंद्रीय चुनाव आयोग) ने इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया है। लेकिन चुनाव टालने की संभावनाओं से किसी ने इंकार भी नहीं किया है। आने वाले दिनों में यहां भी ट्रम्प की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की और से किसी भी दिन इस तरह का आग्रह राष्ट्र के नाम सन्देश में आ सकता है।
अमेरिका और भारत में अंतर इतना है की प्रधानमंत्री जी ट्रम्प की तरह अलोकप्रिय होते हुए भी अपने साथ अंधभक्तों की एक बड़ी फ़ौज साथ रखते हैं जो अब तक तमाम नाकामियों और अलोकप्रियता पर भारी पड़ती आ रही है। लेकिन ‘अंडर करेंट’ का अनुमान मोदी जी को भी है और उनके भक्तों को भी। मोदी के सामने ट्रम्प जैसी चुनौती नहीं है फिर भी अब तक मोदी जी ने जिस तरह कोरोना संकट का अवसरों की तरह इस्तेमाल किया है उसे देखते हुए कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां कहा भी जा रहा है कि- ‘मोदी है तो मुमकिन है।‘
भारत में आम चुनाव तो अभी काफी दूर हैं लेकिन उसकी व्यूह रचना भारतीय जनता पार्टी ने अभी से शुरू कर दी है। भावी चुनावों की दृष्टि से ही हर काम हो रहा है। भाजपा के पास तिथिवार रणनीति है, इसमें कोरोना की अपनी भूमिका है। ये भूमिका अभी अस्पष्ट है किन्तु लगता है कि कोरोना जिस तेजी से तमाम गतिविधियों को समाप्त करता जा रहा है, उसे देखते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया कौन सी बड़ी चीज है? जरूरत पड़ने पर यहां भी आम चुनावों को टालने के बारे में विचार किया जा सकता है। भारत में पहले जब कोरोना नहीं था तब भी एक बार ऐसा हो चुका है। तब चुनाव टालने के लिए आपातकाल को ढाल की तरह इस्तेमाल किया गया था।
पिछले दो साल में भाजपा ने जनादेश पाने में मिली असफलताओं के बावजूद जिस तरिके से कुछ राज्यों में निर्वाचित सरकारों का तख्ता पलट किया है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि भाजपा की लोकप्रियता बढ़ रही है। भाजपा ने एक के बाद एक दिल्ली से लेकर राजस्थान तक हार का समाना किया। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और पूर्व के राज्यों में भाजपा को सत्ता से बेदखल किया गया, लेकिन भाजपा कर्नाटक और मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में ऐन-केन सत्ता में वापस आ गयी। राजस्थान को भाजपा ने अपने जबड़े में जकड़ रखा है ऐसे में देश में लोकतंत्र बचा रहे या नहीं ये कोरोना के साथ देश की जनता को भी तय करना होगा। आगे-आगे देखिये होता है क्या?