राकेश अचल
अवसर है जब कांग्रेस अपने आपको गांधी परिवार से मुक्त करा सकती है। कांग्रेस को ये स्वर्ण अवसर खोना नहीं चाहिए। आजकल पॉलिसी बाजार का एक विज्ञापन इसी तर्ज पर आ रहा है। समय खराब है जब कांग्रेस को अपनी नयी पीढ़ी के लिए पूर्णकालिक अध्यक्ष फटाफट चुन लेना चाहिए। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का एक साल का कार्यकाल आज समाप्त हो रहा है। कांग्रेस के निर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी पहले ही अपने पद से त्यागपत्र दे चुके हैं। ऐसे में अवसर है जब कांग्रेस अपने आपको गांधी परिवार से मुक्त करा सकती है। कांग्रेस को ये स्वर्ण अवसर खोना नहीं चाहिए।
कांग्रेस की कमान दो दशकों से श्रीमती सोनिया गांधी के पास है। इन बीस सालों में उनके नेतृत्व में कांग्रेस का उत्थान और पतन दोनों हुए हैं। लेकिन बीते छह साल से कांग्रेस एक राजनीतिक दल के रूप में लगातार हाशिये पर जा रही है। 2014 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद से कांग्रेस राज्यों में भी लगातार कमजोर हुई। कांग्रेस ने जैसे-तैसे राज्यों में वापसी की भी लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा की रणनीति के सामने उसे हर कदम पर मुंह की खाना पड़ी। यहां तक कि अब उसकी राज्य सरकारें भी हिचकोले खा रही हैं।
कांग्रेस बीते छह साल में न एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका में खरी उतरी है और न ही सत्ता पक्ष के लिए कोई चुनौती खड़ी कर पाई है। सच कहा जाए तो असली रामराज कांग्रेस के भीतर ही चल रहा है। कांग्रेस विचारधारा के तौर पर न मरी है और न उसे मारा जा सकता है, किन्तु संगठन के तौर पर अब कांग्रेस भाजपा के मुकाबले में कहीं नहीं है। कांग्रेस केंद्र से लेकर राज्यों तक बिखरी पड़ी है। कोई किसी की सुनने और मानने को तैयार नहीं है। पार्टी का कथित हाईकमान वाकई हाईफाई हो गया हो गया है। मुझे तो लगता है कि कांग्रेस अब केवल ट्विटर तक सीमित रह गई है।
मौजूदा परिदृश्य में कांग्रेस को अपने वरिष्ठ सांसद शशि थरूर का सुझाव मानकर अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष चुन लेना चाहिए। कांग्रेस को बकायदा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराना चाहिए। भले ही इस चुनाव की वजह से कांग्रेस दो धड़ों में बंट जाए। अभी कांग्रेस संजय और राजीव गांधी के जमाने की टीम और आज के युवा तुर्कों के बीच झूल रही है। पुराने नेता नए लोगों को अवसर देने के लिए राजी नहीं हैं और इस हताशा में कांग्रेस के युवा या तो बाग़ी होकर घर छोड़ गए हैं या छोड़ने की स्थिति में पहुँच गए है। राजस्थान की बगावत इसका उदाहरण है। पंजाब में ये आग सुलगने लगी है।
कांग्रेस में बंटाधार के नाम से चर्चित पूर्व महासचिव दिग्विजय सिंह भी पार्टी के रणछोड़ अध्यक्ष राहुल गाँधी को सलाह दे चुके हैं कि वे पूरे देश का दौरा करें और पार्टी को नए सिरे से खड़ा करें। हकीकत ये है कि कांग्रेस के पास अब नेतृत्व है ही नहीं। कांग्रेस अपने आपसे एक छाया युद्ध लड़ रही है। वह यदि सचमुच लोकतंत्र में अपनी भूमिका को प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है तो अब फैसला कर ही ले तो बेहतर है। कांग्रेस को इसके लिए अपना आंतरिक लोकतंत्र ज़िंदा करना पडे़गा। पहले भी ऐसा हो चुका है। पहले भी पी.वी. नरसिम्हराव और सीताराम केसरी पार्टी के अध्यक्ष बनाए जा चुके हैं। ये गांधी परिवार से नहीं थे लेकिन गांधी परिवार समर्थित थे। आज भी ये सब हो सकता है।
अतीत में झांकें तो 1959 में श्रीमती इंदिरा गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद 1977 तक कांग्रेस, पार्टी के दूसरे नेताओं के नेतृत्व में काम करती रही। नीलम संजीव रेड्डी और कामराज, एस. निजलिंगप्पा और डॉ. शंकर दयाल शर्मा पार्टी के अध्यक्ष रहे। आपातकाल के बाद देवकांत बरुआ ने गांधी परिवार के चरण पकडे़ और श्रीमती इंदिरा गाँधी को पार्टी का नेतृत्व सौंप दिया था। 1978 से 1992 तक इंदिरा गाँधी और उनके बेटे राजीव गाँधी ने पार्टी को संभाला और उनके बाद एक बार फिर पार्टी इस परिवार से बाहर निकली। अब फिर इतिहास दोहराने का अवसर है। गांधी परिवार के बिना कांग्रेस मर नहीं जाएगी, बिखर जरूर सकती है। बिखराव को तो सम्हाला जा सकता है किन्तु यदि पार्टी मर गई तो उसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।
कांग्रेस अपना नया अध्यक्ष चुने या न चुने, ये चिंता कांग्रेस के साथ इस देश की भी है। भले ही भाजपा देश को कांग्रेसविहीन बनाना चाहती है लेकिन ऐसा नामुमकिन दिखता है। बिना विपक्ष का लोकतंत्र भी कोई लोकतंत्र होगा। कांग्रेस के अलावा आज भी देश में कोई दूसरा दल विचार के स्तर पर नहीं है। कांग्रेस की कोख से जन्मे अनेक दल भी अपनी हैसियत क्षेत्रीय दलों से ज्यादा नहीं बना पाए हैं, फिर चाहे वो एनसीपी हो या तृणमूल कांग्रेस।
एक मजबूत पूर्णकालिक अध्यक्ष न होने के कारण कांग्रेस आज लक्ष्यहीन और दिशाहीन होने लगी है। आम जनता में कांग्रेस के प्रति इस धारणा को खत्म करने के लिए अब पूर्णकालिक अध्यक्ष ही पहला और आखरी विकल्प है। कांग्रेस इस मामले में नया कुछ कर पाएगी या नहीं, ये कहना अभी सम्भव नहीं है। यदि कांग्रेस ये अवसर भी गंवाती है तो उसे अब कोई नहीं बचा पाएगा, खुद कांग्रेस भी नहीं।