मध्‍यप्रदेश में रामराज्‍य की स्‍थापना पर आप सभी को बधाई!

मीडिया में यह सकारात्‍मकता को बढ़ावा देने का जमाना है। नकारात्‍मकता को नकारते हुए समाज में सकारात्‍मकता को स्‍थापित करने के लिए चौतरफा प्रयास हो रहे हैं। मध्‍यप्रदेश सरकार ने आनंद विभाग की स्‍थापना कर प्रदेशवासियों का जीवन आनंदमय बनाने की नींव रख दी है और इस नींव पर बुलंद इमारत के निर्माण का काम भी तेजी से शुरू हो गया है।

बचपन में मां के मुंह से कई कहानियां सुनी थीं। अब इसे मां-बाप या बुजुर्गों की, बच्‍चों के मन में सकारात्‍मकता जगाने की कोशिश कहें या कुछ और, कि आमतौर पर बचपन की उन सारी कहानियों का अंत बहुत सुखद होता था। तमाम कष्‍टों, कठिनाइयों से निजात पाते हुए कहानी के पात्र दुख के भवसागर से पार पा जाते थे और मां कहती- ‘’और इसके बाद सब सुख चैन से रहने लगे…’’ या ‘’जैसे उनके दुख भरे दिन फिरे वैसे सबके फिरें…’’ यानी जिस तरह उस कहानी के पात्रों का दुख-दुर्भाग्‍य दूर हुआ वैसा हरेक के जीवन से दूर हो। यह सर्वेभवंतु सुखिन: का घरेलू भावांतरण था, जिसमें सभी के सुख और कल्‍याण की कामना अभीष्‍ट रहा करती थी।

बच्‍चे ऐसी कहानियों को सुनते और कहानी के अंत को अपने मानस पटल पर दर्ज कर सारी दुनिया को दुख दर्द विहीन मानते हुए चौतरफा सुखमय और आनंदमय संसार की कल्‍पना करते नींद में खो जाते। ठीक-ठीक दावा तो नहीं कर सकता लेकिन हो सकता है उसे ही सुख की नींद कहा जाता हो और बाद में यह बात मुहावरे में तब्‍दील हो गई हो।

मध्‍यप्रदेश विधानसभा में मंगलवार, 21 फरवरी 2017 यानी फाल्‍गुन कृष्‍ण पक्ष दशमी, शक संवत 1938 को प्रात: 11:18 बजे से लेकर दोपहर 12:36 बजे तक प्रदेश की जनता को जो कहानी सुनाई गई वह ऐसा ही अहसास दिलाने वाली थी। कुछ देर के लिए मैं सोच में पड़ गया कि यह वर्णन सन 2017 में भारतवर्ष के किसी राज्‍य का है या त्रेतायुग के रामराज्‍य का।

विधानसभा के बजट सत्र का आरंभ करते हुए कार्यवाहक राज्‍यपाल ओमप्रकाश कोहली जी ने अपने 78 मिनिट के भाषण में सरकार की उपलब्धियों का जो वर्णन किया वह प्रदेश की तरक्‍की को न देख सकने वाले दृष्टिहीनों के लिए नेत्रज्‍योति के समान था। 53 पृष्‍ठ के इस 143 बिंदुओं वाले अभिभाषण को यदि आप भी पढ़ेंगे तो अभिभूत हुए बिना नहीं रहेंगे।

यह बहुत आश्‍चर्य की बात है कि प्रदेश की ऐसी शानदार और चमकदार उपलब्धियों के बावजूद मुख्‍य विपक्षी दल कांग्रेस आज यानी 22 फरवरी को राजधानी में विधानसभा का घेराव करने जा रही है। और यह घेराव भी नर्मदा में हो रहे अवैध रेत उत्खनन, आईएसआई के लिए हो रही जासूसी में भाजपाइयों की लिप्‍तता, कटनी हवाला कांड, व्यापमं में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला, किसानों की दुर्दशा, दलित, अल्पसंख्यक व महिला अत्याचार और चौतरफा भ्रष्टाचार… जैसे टुच्‍चे मुद्दों को लेकर किया जा रहा है।

कांग्रेस यदि अपने घेराव प्रदर्शन से पहले इस दस्‍तावेज को ढंग से पढ़ लेती तो उसके सारे जाले साफ हो जाते। उसके तमाम निराधार आरोपों का जवाब इस दस्‍तावेज में सिलसिलेवार दर्ज है। इसी तरह प्रदेश की जनता भी इस दस्‍तावेज को पढ़ ले तो वह अपनी सरकार पर गर्व किए बिना नहीं रहेगी। उसे आश्‍वस्‍त होना ही पड़ेगा कि उसने जिस सरकार को चुना है उसने प्रदेश के लिए क्‍या–क्‍या और कितना सारा काम कर दिखाया है।

अभिभाषण में शायद ही कोई ऐसा बिंदु हो जो प्रदेश में किसी नकारात्‍मकता की ओर संकेत करता हो। मीडिया में इन दिनों प्रचलित ट्रेंड के अनुसार इसमें वो नकारात्‍मक सूचनाएं भी दर्ज नहीं हैं, जो लोगों के लिए जानना जरूरी हैं। शायद इसलिए कि प्रदेश में अव्‍वल तो कोई नकारात्‍मकता बची ही नहीं है और यदि है भी तो वो इस लायक ही नहीं है कि लोग उसे जानें।

अब आप यदि जानने की अपेक्षा करें या सवाल उठाएं कि प्रदेश में कुपोषण से मौतें क्‍यों हो रही हैं, किसान आत्‍महत्‍या क्‍यों कर रहे हैं, खेती लाभ का धंधा बनने के बजाय बरबादी का सबब क्‍यों बनती जा रही है, प्रदेश में सिमी का जाल कैसे फैल रहा है, आईएसआई यहां अपना नेटवर्क बनाने में कैसे कामयाब हो रहा है, लाख कोशिशों के बावजूद प्रदेश में पर्याप्‍त निवेश क्‍यों नहीं आ रहा है, मातृ और शिशु मृत्‍यु दर के मामले में प्रदेश की स्थिति इतनी दयनीय क्‍यों है, स्‍कूली शिक्षा का स्‍तर इतना कमजोर क्‍यों होता जा रहा है वगैरह…, तो उसका जवाब यह है कि ये सारे सवाल सरकार को बदनाम करने के लिए राजनीतिक बदनीयती से उठाए जा रहे हैं।

विधानसभा में राज्‍यपाल महोदय जब खुद कह रहे हैं कि प्रदेश में चौतरफा सिर्फ तरक्‍की, तरक्‍की और तरक्‍की ही हुई है उसके अलावा कुछ नहीं, तो फिर आपको कुछ और सोचने, समझने या पूछने की जरूरत नहीं है। चाहे आप विपक्ष के विधायक हों या सत्‍तारूढ़ दल के।

मेरा तो सुझाव है कि प्रदेश में हाल ही में जो ‘मिल बांचें’ अभियान शुरू किया गया है, उसके अंतर्गत और कुछ न करके राज्‍यपाल महोदय का सदन में 21 फरवरी 2017 को दिया गया यह अभिभाषण बंचवा देना चाहिए। सवाल हों या न हों, इसमें सारे सवालों के जवाब जरूर मौजूद हैं… प्रश्‍न इसीलिए तो पूछे जाते हैं ना कि उनका उत्‍तर मिल सके, जब आपको डायरेक्‍ट उत्‍तर मिल रहे हैं तो प्रश्‍न पूछने की जहमत क्‍यों उठाना चाहते हैं…?

 

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