रवि भोई
भूपेश बघेल सरकार ने एक बार फिर उच्च शिक्षा सचिव को बदल दिया। अलरमेलमंगई डी. की जगह धनंजय देवांगन को उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग का सचिव बनाया गया है। पौने दो साल में धनंजय देवांगन इस विभाग के पांचवें सचिव होंगे। कहते हैं उच्च शिक्षा विभाग राजनीति का अखाड़ा बन गया है। अफसरों में कोई तालमेल नहीं है और वहां बाबूराज हावी है। अब तक विभाग में टॉप तीन पोस्ट पर महिला अफसर तैनात थीं। इनमें सचिव अलरमेलमंगई और अपर संचालक चंदन त्रिपाठी को उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल का करीबी माना जाता रहा है।
मंगई डी. रायगढ़ कलेक्टर और चंदन त्रिपाठी रायगढ़ जिला पंचायत की सीईओ रही हैं। उमेश पटेल रायगढ़ जिले के खरसिया से विधायक हैं। वैसे शारदा वर्मा से पहले आयुक्त रहे हिमशिखर गुप्ता से उमेश पटेल नाखुश थे। इस कारण सरकार ने उन्हें हटाकर शारदा वर्मा को पदस्थ किया। कहते हैं कि उमेश पटेल किसी और प्रमोटी आईएएस को आयुक्त के तौर पर चाहते थे। चर्चा है कि ट्राइबल में लंबी सेवा के बाद आईएएस बनी शारदा वर्मा की सचिव के साथ पटरी नहीं बैठ रही थी।
उच्च शिक्षा विभाग में 62 की उम्र पार कर चुके कुछ अधिकारियों को हटाने और विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं की अव्यवस्था को लेकर दोनों में मतभेद की बात कही जा रही है। ट्राइबल में आरपी मंडल के साथ काम कर चुकी शारदा वर्मा मूलतः छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं। अलरमेलमंगई से उच्च शिक्षा विभाग वापस लेने को शारदा वर्मा की जीत के रूप में देखा जा रहा है। मंगई डी.के पास नगरीय प्रशासन विभाग का स्वतंत्र प्रभार रहेगा, लेकिन उन्हें वित्त विभाग में अपर मुख्य सचिव के मातहत काम करना पड़ेगा। इसे उनका कद घटना माना जा रहा है। अब देखते हैं डिप्टी कलेक्टर से आईएएस बने धनंजय देवांगन और एलाइड सर्विस से आईएएस बनी शारदा वर्मा की पटरी कैसे बैठती है।
छत्तीसगढ़ में एक मात्र महिला कलेक्टर
छत्तीसगढ़ में हैं तो 28 जिले, लेकिन राज्य के एक ही जिले में महिला आईएएस किरण कौशल कलेक्टर हैं। 2009 बैच की आईएएस किरण कौशल किस्मत की धनी भी हैं, जो मार्च 2016 से लगातार कलेक्टर हैं। मुंगेली, अंबिकापुर, बालोद के बाद किरण कौशल अब कोरबा की कलेक्टर हैं। कोरबा को राज्य का महत्वपूर्ण जिला माना जाता है। इस जिले में पॉवर प्लांट और दूसरे उद्योगों के अलावा कोल माइंस भी काफी संख्या में हैं। खनिज विकास निधि (डीएमएफ) का मद भी अच्छा तगड़ा है। भाजपा राज में किरण के साथ कलेक्टर बनी महिला आईएएस अलरमेलमंगई डी, प्रियंका शुक्ला, शिखा राजपूत अब मंत्रालय आ गईं हैं। वैसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में अब तक महिला आईएएस में किरण कौशल के अलावा शिखा राजपूत को ही कलेक्टरी का मौका मिला है।
यह कैसी चूक?
आमतौर पर शासन-प्रशासन में फाइलें कई लोगों के टेबल से गुजरती हैं और कई लोग उसमें हस्ताक्षर करते हैं, फिर एक आईएएस अफसर की पोस्टिंग में नाम को लेकर चूक से गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। 24 सितंबर को सामान्य प्रशासन विभाग ने सीआर प्रसन्ना की जगह आर. प्रसन्ना को चिकित्सा शिक्षा विभाग का अतिरिक्त प्रभार देने का आदेश जारी किया, गलती का अहसास होने पर आनन-फानन में संशोधित आदेश जारी किया गया। लेकिन सवाल उठता है नोटशीट बनाते समय जीएडी ने नाम के आलावा बैच और वर्तमान पोस्टिंग का परीक्षण क्यों नहीं किया?
आर्डर जारी होने से पहले फाइल जीएडी सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी और जीएडी मंत्री तक गई होगी, उनके हस्ताक्षर हुए होंगे? कहते हैं जीएडी में आईएएस की पोस्टिंग देखने वाले अधिकारी राज्य बनने के समय से ही यही काम देख रहे हैं। गलती सुधार ली गई, पर इस चूक से सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए हैं। लोग कहने लगे हैं मंत्रालय में ऐसी चूक, तो जिलों का क्या हाल होगा?
डॉक्टरों की गिरती साख
कहते हैं न एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। कोरोना काल में छत्तीसगढ़ के कुछ निजी व कॉरपोरेट अस्पतालों ने होटलों और धर्मशालाओं को किराए पर लेकर कोविड अस्पताल बना दिया है और मुनाफा कमाने के चक्कर में नोबेल प्रोफेशन के मानव सेवा के मूल मंत्र को ही भुला दिया है। कहते हैं ये सरकार के निर्देशों को भी ठेंगा दिखा रहे हैं। लोग अस्पतालों के अनाप-शनाप बिल को लेकर जमकर वीडियो वायरल कर रहे हैं। इसके कारण डाक्टरों और अस्पतालों को लेकर लोगों की धारणा ही बदल गई है। कोरोनाकाल के शुरुआती चरण मार्च-अप्रैल में डाक्टरों को ईश्वर के रूप में देखने और सम्मान देने वाले अब उनसे घबराने लगे हैं।
ये कैसे जनप्रतिनिधि
कहते हैं इन दिनों छत्तीसगढ़ के कुछ मंत्री-विधायक और नेताओं ने अपना मोबाइल बंद कर दिया है या नंबर बदल दिया है। छत्तीसगढ़ में कोरोना भयावह स्थिति में हैं। कोई गांव-कस्बा और शहर अछूता नहीं है। कोविड सेंटर संक्रमितों से भर गए हैं। अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं। लोग अस्पतालों में बेड और कोविड सेंटरों में जगह के लिए मंत्री-विधायक और नेताओं से संपर्क कर रहे हैं। कुछ दिन तो मंत्री-विधायक और नेता जनता की सेवा में लगे रहे, पर उनके कहने पर भी लोगों की व्यवस्था न हो पाने के चलते उन्होंने मोबाइल बंद करना या नंबर बदलना ही बेहतर समझा। चर्चा है कि लोगों ने भी ठान लिया है- मुसीबत में उनका मोबाइल उठाने वालों को अब मौका देंगे। बाकी को मजा चखाएंगे।
चिंता राजनीति की
मोदी सरकार के किसान बिल के खिलाफ कांग्रेस, जिलों में पदयात्रा और 10 अक्टूबर को राजधानी रायपुर में एक विशाल रैली निकालने वाली है। रैली का मकसद शक्ति प्रदर्शन है, ऐसे में इस रैली में राज्य भर से लोग आ सकते हैं। एक तरफ राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या एक लाख को छूने जा रही हो और मरने वालों का आंकड़ा पौने आठ सौ से अधिक हो गया हो, वैसे में फिर भीड़ जुटेगी तो कोरोना का क्या होगा, लोग उसकी चिंता करने लगे हैं। प्रजातंत्र में विरोध करने के लिए धरना-रैली अस्त्र हैं और भीड़ से राजनीतिक पार्टी की ताकत दिखती है। मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाकर कांग्रेस को किसानों से जुड़ने का यह अच्छा मौका मिला है, फिर उसे हाथ से क्यों जाने दे? रैली-प्रदर्शन से ही तो नेताओं की राजनीति चमकती है।
केबल वॉर की सुगबुगाहट
वैसे डीटीएच के जमाने में केबल प्रसारण का महत्व कम रह गया है, पर फिर भी केबल प्रसारण का वजूद है। यही वजह है कि राज्य के केबल किंग अधिकारों को लेकर आपस में भिड़ने लगे हैं। केबल किंग राजनीतिक दलों से भी जुड़े हुए हैं, इस कारण विवाद पेचीद हो चला है। एक केबल किंग द्वारा दूसरे पर हिस्सेदारी छोड़ने के लिए अपने राजनीतिक रसूख के इस्तेमाल की खबरें भी आ रही है। छत्तीसगढ़ गठन के वक्त राजधानी में केबल वॉर सुर्ख़ियों में रहा करता था। अब देखते हैं नए दौर का केबल वॉर क्या रंग लाता है।
(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)