प्रो. उमेश कुमार सिंह
उच्च शिक्षा पर टिप्पणी करना फ़ैशन बन गया है। प्राचार्य नहीं हैं, प्रोफेसर नहीं हैं, व्यवस्था नहीं है, रोजगार नहीं है, आदि आदि। आइये जरा मध्यप्रदेश पर विचार कर लें। कमियां हैं, ठीक है किंतु विचार करें। अपवाद छोड़ दें तो लगभग हर तहसील, ब्लाक तक 528 शासकीय महाविद्यालय हैं। जिनमें अध्ययनरत हैं-
स्नातक में- 356631 छात्र तथा 459191 छात्राएं। कुल स्नातक विद्यार्थियों की संख्या 815822 है। इसी तरह पीजी में 66769 छात्र तथा 116392 छात्राएं हैं। यूजी, पीजी को मिला दें तो शासकीय महाविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों की संख्या 998983 है। चौंकिएगा नहीं! बेटी पढ़ाओ के परिणाम को देखकर। और सुखद बात है कि एससी, एसटी, ओबीसी तथा अनारक्षित सभी वर्ग में बेटियों की संख्या अधिक है।अशासकीय महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संख्या इसके अतिरिक्त है। इनके लिए लगातार आधारभूत ढांचा खड़ा किया जा रहा है। ज़मीन से लेकर भवन तक व्यवस्थित करने का कार्य हो रहा है। वर्चुअल-स्मार्ट क्लास से लेकर इंक्यूबेशन सेंटर, डिजिटल लाइब्रेरी, आधुनिक तकनीक युक्त लैब की व्यवस्था हो रही है।
स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन योजना मध्यप्रदेश शासन अन्तर्गत इन्हीं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए पूरे कोरोना काल में रोजगार, स्वरोजगार और व्यक्तित्व विकास के लिए आभासी माध्यम से सतत् प्रशिक्षण चलाये जाते हैं। अंतिम वर्ष के 18500 विद्यार्थियों को इसी अवधि में नरोन्हा प्रशासन अकादमी जैसी प्रतिष्ठित अकादमी से कौशल उन्नयन और व्यक्तित्व विकास पर प्रशिक्षण दिया गया।
टीसीएस, विप्रो, इन्फोसिस जैसी बड़ी कंपनियों से लेकर छोटे छोटे संस्थानों में लगभग 22 हजार से अधिक विद्यार्थियों के लिए रोजगार और स्वरोजगार के अवसर कोरोना काल में स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन योजना, उच्च शिक्षा के माध्यम से मुहैया कराये गये। इस माह से स्नातक अंतिम वर्ष के ढाई लाख विद्यार्थियों को कौशल उन्नयन और रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण अकादमी के माध्यम से दिया जायेगा।
विद्यार्थियों को उद्योगों से जोड़ने के लिए सतत रूप से उद्योगों के साथ एमओयू किए जा रहे हैं। स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन योजना उच्च शिक्षा विभाग अन्तर्गत 518 टीपीओ, (लगभग सभी महाविद्यालयों में, कुछ नये को छोड़कर) मनोनीत हैं। इनके सहयोग के लिए प्रत्येक जिले में एक जिला नोडल अधिकारी तथा संभाग में समन्वयक हैं।
सर्वांगीण विकास हेतु प्रत्येक महाविद्यालय एक-दो ग्राम गोद ले रहे हैं। यह ग्राम एनएसएस के गोद ग्राम से अलग हैं। महाविद्यालय, विश्वविद्यालयों को नैक कराने, तैयार करने की लक्ष्य के साथ निरंतरता है। कोरोना काल में जिन अधिकारी-कर्मचारियों की मृत्यु हो गई है उनके लगभग सभी पात्र सदस्यों को नियुक्त दे दी गई है। वर्षों से लम्बित विश्वविद्यालय, महाविद्यालय के पेंशन प्रकरण सुलझा दिये गये हैं। लम्बित न्यायालयीन प्रकरणों में कमी आई है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू हो चुकी है जिसे चरणबद्ध तरीके से व्यवस्थित किया जा रहा है। समय पर परीक्षा आनलाइन से लेकर अब आफलाइन सम्पन्न हो रही हैं। परिणाम आ रहे हैं। विचार करें, यह सब कोरोना काल में आई सरकार उसके माननीय मुख्यमंत्री जी और उच्च शिक्षा मंत्री जी के कुशल नेतृत्व तथा तथा विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों के अथक परिश्रम से ही तो हुआ है और हो रहा है।
फिर भी आप कहेंगे…!! यह नहीं है, वह नहीं है, प्राचार्य नहीं है? आदि आदि।
प्राचार्य नहीं है? क्या कोई प्रभारी प्राचार्य प्रभारी लिखते हैं? क्या नियमित प्राचार्य से उनके अधिकार कम हैं। आदर्श प्रभारी प्राचार्य माधव महाविद्यालय उज्जैन में देख सकते हैं। अपने परिश्रम से महाविद्यालय में जूनियर होते हुए सीनियर के मन को जीता है। महाविद्यालय में बिजली की स्वयं की व्यवस्था। एक रुपया न सौर ऊर्जा पर व्यय, न विद्युत विभाग को बिल।
पानी का स्वयं का निःशुल्क स्रोत। पूरा परिसर हरा भरा किंतु माली का एक पैसे का खर्च नहीं। नैक का एक+ ग्रेड प्राप्त किया है। कितने ही प्रभारी प्राचार्य प्रभावी प्राचार्य बन कर सामने आये हैं। और कितने ही पदोन्नत दिन काट रहे हैं। मित्रवर वृत्ति बदलनी है।
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)