रूप बदलने में माहिर अफवाह, पत्रकार और खबर

रमेश रंजन त्रिपाठी   

नमस्कार दोस्तो। कुछ तो खबर चलेगी, खबर का काम है चलना। खबर चंचल होती है इसलिए मीडिया के गगन में पंछी बनकर मस्ती में उड़ती फिरती है। ऐसी चंचल और शोख को नजर लगना लाजिमी है, अफवाह की नजर। चश्मे बद्दूर की दुआ देते रहिए लेकिन अफवाह उसका पीछा कहां छोड़ती है। अफवाह रूप बदलने में माहिर होती है, ऐसा मेकअप करती है कि खबर से अधिक सुंदर और आकर्षक लगने लगती है। इतनी आकर्षक कि खुर्राट जर्नलिस्ट भी धोखा खा जाएं।

आज की डिबेट में यही तीनों, पत्रकार, खबर और अफवाह हमारी मेहमान हैं। मैं एंकर ट्रोलर, सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर अपने सभी अतिथियों का स्वागत करता हूं। हमारे स्टूडियो में ट्विटर, फेसबुक, यू ट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे अनेक आसन मौजूद हैं। हमारे मेहमान अपनी रुचि के अनुसार किसी को भी अपनी तशरीफ रखने के लिए चुन सकते हैं।
(सभी ने आसन ग्रहण कर लिया। एंकर ने बिना देर किए बात शुरू कर दी।)

‘सबसे पहले मैं खबर मैडम से जानना चाहूंगा कि उनकी पूछ-परख का रहस्य क्या है?’ ट्रोलर ने खबर की ओर मुखातिब होते हुए पूछा- ‘सुबह आंख खुलते ही और रात को नींद के आगोश में जाते हुए लोग आपको ही क्यों देखना-सुनना चाहते हैं?’

‘लोग मेरे चिर यौवन के दीवाने हैं।’ खबर मुस्कुराई- ‘मैं नित नवीन गेट-अप में प्रकट होती हूं। प्रतिदिन नया मनोरंजन लेकर आती हूं। मैं स्थितप्रज्ञ हूं। अच्छी और बुरी, खुशी और गम, सभी परिस्थितियों में समान भाव रखती हूं। एक उदाहरण से समझिए। कोविड-19 की खौफनाक दस्तक और चुनी हुई सरकार के गिराने की कुछ लोगों की खुशी को चेहरे पर शिकन लाए बिना एक साथ आप तक पहुंचाती हूं।’

‘अब मैं सुश्री अफवाह से पूछना चाहूंगा कि उन्हें चलना ज्यादा पसंद है या उड़ना?’ एंकर ने अपना रुख अफवाह की ओर मोड़ा।

‘मेरी प्रतिद्वंद्वी मैडम खबर हैं।’ अफवाह बताने लगीं- ‘झूठ मुझे अस्तित्व में लाता है। खबर की सच्चाई से पार पाने के लिए मुझे विश्वसनीयता को डबलक्रॉस के लिए राजी करना पड़ता है। विश्वसनीयता मुझे खबर के ड्रेसिंग रूम में ही सजाती-संवारती है इसलिए लोग खबर से ज्यादा मेरे लिए सीटी बजाते हैं। मैं अपनी प्रशंसा से इतराकर सातवें आसमान में पहुंच जाती हूं, उड़कर!’

‘मि.जर्नलिस्ट, आप खबर और अफवाह, दोनों में कैसे अंतर कर पाते हैं?’ ट्रोलर पत्रकार की ओर मुखातिब हुआ।

‘अफवाह के पंख तो होते हैं लेकिन पांव नहीं होते।’ पत्रकार मुस्कुराए- ‘वह केवल उड़ सकती है, धरातल पर आते ही धड़ाम से गिर पड़ती है। हम ऐसी ही कसौटियों पर कसकर दूध और पानी यानी खबर और अफवाह को अलग करने की कोशिश करते हैं।’

‘खबर के जन्म के लिए घटना जिम्मेदार होती है तो अफवाह किसी चतुर दिमाग की उपज। जर्नलिस्ट को दोनों की तलाश रहती है। उनके लिए खबर पौष्टिक भोजन है तो अफवाह चटपटी चटनी।’ एंकर ने सभी से सवाल किया- ‘आप तीनों आपस में सामंजस्य कैसे बिठाते हैं?’

‘आवश्यकता अविष्कार की जननी है।’ पत्रकार बोले- ‘जरूरत मेरी है इसलिए मैं खबर और अफवाह दोनों को साधता रहता हूं। सच्चाई, नजरिया, लोकहित, भाषा जैसे अनेक रंगों को मिलाकर अपनी प्रस्तुति को मजेदार बनाने की कोशिश करता हूं। पापी पेट के लिए टीआरपी का सवाल सबसे बड़ा होता है। आप भी तो यही कर रहे हैं! अपनी टीआरपी के लिए हमारा इंटरव्यू ले रहे हैं।’

एंकर ने बिना तिलमिलाए अपने ऊपर किए गए प्रहार को झेलने की भरपूर कोशिश की। कार्यक्रम में कमर्शियल ब्रेक हो गया। परिचर्चा समाप्त करने के लिए एंकर किसी बिग ब्रेकिंग की आड़ ढूंढने लगा।

(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here