संसद में संविधान की धारा 370 के विशेष प्रावधान खत्म करने के बाद पहली बार देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था- ‘’देश के अन्य राज्यों में बच्चों को शिक्षा का अधिकार है, लेकिन जम्मू-कश्मीर के बच्चे इससे वंचित थे। देश के अन्य राज्यों में बेटियों को जो सारे हक मिलते हैं, वो सारे हक जम्मू-कश्मीर की बेटियों को नहीं मिलते थे।‘’
‘’देश के अन्य राज्यों में सफाई कर्मचारियों के लिए सफाई कर्मचारी एक्ट लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर के सफाई कर्मचारी इससे वंचित थे। देश के अन्य राज्यों में दलितों पर अत्याचार रोकने के लिए सख्त कानून लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसा नहीं था। देश के अन्य राज्यों में अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण के लिए अल्पसंख्यक कानून लागू है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसा नहीं था।‘’
8 अगस्त की रात राष्ट्र के नाम प्रसारण में प्रधानमंत्री ने कहा था- ‘’नई व्यवस्था में केंद्र सरकार की प्राथमिकता रहेगी कि राज्य के कर्मचारियों को, जम्मू-कश्मीर पुलिस को, दूसरे केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों और वहां की पुलिस के बराबर सुविधाएं मिलें। अभी केंद्र शासित प्रदेशों में, अनेक ऐसी वित्तीय सुविधाएं जैसे एलटीसी, आवास किराया भत्ता, बच्चों की शिक्षा के लिए दिया जाने वाला भत्ता, स्वास्थ्य योजना आदि दी जाती हैं, जिनमें से अधिकांश जम्मू-कश्मीर के कर्मचारियों को नहीं मिलती।‘’
प्रधानमंत्री के उस संबोधन में से जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति का संदर्भ यदि अलग कर दें तो देश के अधिकांश राज्यों में यही स्थिति है। सरकार योजना तो बनाती है, जनकल्याण के कदम उठाते हुए उसके लिए बजट आवंटित भी करती है, लेकिन वास्तविक जरूरतमंदों तक उसका फायदा नहीं पहुंच पाता।
आंकड़े बताते हैं कि आजादी के बाद से केंद्र सरकारों ने जम्मू कश्मीर को विशेष सहायता के तहत हजारों करोड़ रुपए की मदद की है, लेकिन वहां चंद रसूखदार लोगों को छोड़कर बाकी आम कश्मीरियों की हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया है। राज्य में असंतोष और गुस्से के अलावा वहां के युवाओं का आतंकवाद और अलगाववाद के प्रति झुकाव का यह भी एक बड़ा कारण है।
ऐसे में धारा 370 की समाप्ति के बाद सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह देश के अन्य राज्यों अथवा केंद्र शासित प्रदेशों की तरह जम्मू कश्मीर को भी मुख्यधारा से जोड़ते हुए, कैसे वहां भेजी जाने वाली विभिन्न योजनाओं की राशि का सदुपयोग करवाए और उन लोगों को लाभ दिलवाए जिन लोगों के लिए वे योजनाएं बनी हैं।
ऐसा करते समय सबसे बड़ी बाधा सरकारी योजनाओं के लिए आने वाले धन की बंदरबांट और भ्रष्टाचार की होती है। आज भी सरकारी योजनाओं का बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। चूंकि जम्मू कश्मीर की जनता वहां सरकारी धन के भ्रष्टाचार से न सिर्फ वाकिफ है, बल्कि उसका शिकार भी रही है, इसलिए मोदी सरकार के लिए जरूरी होगा कि वह राज्य में ऐसा शासन प्रशासन दे जिससे लोगों को लगे कि वास्तव में स्थितियों में बदलाव हुआ है। यदि धारा 370 खत्म हो जाने के बाद भी भ्रष्टाचार जस का तस रहा और सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पाया तो न सिर्फ नई व्यवस्था के प्रति असंतोष पनपेगा बल्कि लोगों का नई व्यवस्था से भी विश्वास उठ जाएगा।
सरकारी योजनाओं का हाल इन दिनों क्या हो रहा है इसके लिए केंद्र सरकार की बहुत ही महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना का उदाहरण लिया जा सकता है। मोदी सरकार ने बहुत जोर शोर से इस योजना की घोषणा की थी और बताया गया था कि देश के दस करोड़ परिवारों यानी करीब आधी आबादी को इस योजना का लाभ मिलेगा।
आयुष्मान योजना के तहत सरकार पात्र लोगों को पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करा रही है। इसके अंतर्गत पांच लाख रुपए तक का इलाज करवाने पर मरीज को अपनी जेब से कोई राशि खर्च नहीं करना होगी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आयुष्मान भारत नाम से प्रचलित इस ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ के तहत देश भर में सरकारी अस्पतालों के अलावा 16085 अस्पतालों को जोड़ा जा चुका है। 91216945 लोगों को योजना के ई-कार्ड दिए जा चुके हैं और अब तक 3479966 लोग इस सेवा का लाभ ले चुके हैं।
लेकिन इस योजना को लेकर, कश्मीर की तरह ही, हिमालय की तराई में बसे राज्य उत्तराखंड से हाल ही में एक खबर आई है जो बताती है कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को मिले न मिले, दलाल और भ्रष्टाचार करने वाले उसका जमकर दोहन कर लेते हैं। ऐसी योजनाएं इन लोगों के लिए बेहतरीन कमाई का जरिया बनकर आती हैं।
रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड में इस योजना से लाभ लेने वाले हितग्राहियों से जब योजना की मॉनिटरिंग करने वाली राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकरण की टीम ने संपर्क किया तो वह हैरान रह गई। एक व्यक्ति जिसके, आयुष्मान योजना के तहत, कूल्हे के ऑपरेशन की बात कही गई थी वह सड़क पर स्कूटी चलाता हुआ मिला।
राज्य में आयुष्मान योजना के निदेशक ने कहा कि जिस व्यक्ति का कूल्हे का ऑपरेशन हुआ हो वह तत्काल बाद स्कूटी कैसे चला सकता है? संबंधित अस्पताल ने इस व्यक्ति के ऑपरेशन के नाम पर 90 हजार रुपये का क्लेम भी कर लिया था। जांच के बाद इस क्लेम को निरस्त कर दिया गया। इसी अस्पताल में एक और फर्जीवाड़ा सामने आया जिसमें एक ऐसे व्यक्ति का ऑपरेशन करना बता दिया गया जिसका वह अंग पहले ही निकाला जा चुका था। पड़ताल के दौरान पाया गया कि वह व्यक्ति असलियत में मामूली इंफेक्शन के चलते भरती हुआ था।
एक अन्य अस्पताल ने अपने यहां 30 बिस्तरों की सुविधा बताते हुए खुद को योजना के तहत रजिस्टर करा लिया और दावा कि उसके यहां 24 घंटे इमरजेंसी सुविधा उपलब्ध है, जबकि असलियत यह निकली कि वहां सिर्फ एक डॉक्टर है और वह भी उस अस्पताल का मालिक ही है। इस अस्पताल द्वारा किए गए 2 लाख 72 हजार रुपए से अधिक के क्लेम जांच के बाद निरस्त किए गए।
आयुष्मान योजना के तहत फर्जीवाड़ा करने के लोगों ने कैसे कैसे तरीके निकाल लिए इसका एक और उदाहरण चौंकाने वाला है। एक अस्पताल ने 45 दिनों में मोतियाबिंद के 38 ऑपरेशन करना दिखाया वह भी रात साढ़े नौ बजे बाद, इमरजेंसी का कारण देते हुए। जांच टीम ने उसका क्लेम निरस्त करते हुए लिखा- मोतियाबिंद के ऑपरेशन में ऐसी कोई इमरजेंसी नहीं होती और सभी मामलों में तो ऐसा कभी नहीं हो सकता।
ये उदाहरण बताते हैं कि सरकार योजनाएं कितनी भी अच्छी बना ले, उससे लाभान्वितों के कितने ही दावे कर ले, लेकिन उनमें सचाई का प्रतिशत बहुत कम होता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखंड से सबक लेते हुए सरकार ऐसी योजनाओं के वास्तविक क्रियान्वयन की प्रक्रिया को सभी राज्यों में और अधिक पुख्ता बनाएगी। जम्मू कश्मीर में तो इसकी जरूरत और भी ज्यादा होगी।