जौरा उपचुनाव
डॉ. अजय खेमरिया
मुरैना जिले की जौरा सीट बीजेपी के लिए हमेशा एक चुनौती रही है। 2013 में बीजेपी के सूबेदार सिंह रजौधा ने यहां पहली बार बीजेपी को जीत दिलाई थी, लेकिन 2018 में रजौधा तीसरे नम्बर पर रहे। यह ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जिसके चारों तरफ तो बीजेपी का परचम लहराता है, लेकिन जौरा में कभी उसे अपेक्षित सफलता नही मिलती।
बीजेपी की तुलना में यहां के लोगों को कम्युनिस्ट, समाजवादी और बसपाई मिजाज के उम्मीदवार ज्यादा भाते हैं। यानी जौरा थर्ड फ्रंट की उर्वरा भूमि है। यहां वामपंथी राजनीतिक विचार भी खूब फलाफूला है। सीपीआई के बैनर तले न केवल मजदूर-किसान आंदोलन होते रहे, बल्कि सीपीआई के लोग यहाँ विभिन्न चुनावों में जीत भी दर्ज करते रहे हैं।
धाकड़, (किरार), ठाकुर, ब्राह्मण, कुशवाहा, वैश्य, जाटव, सहरिया आदिवासी, मल्लाह के अलावा यहां दलित, ओबीसी की लगभग सभी बिरादरियों के मतदाता मौजूद हैं। कैलारस औऱ जौरा दो प्रमुख कस्बे है यहां।
जौरा में ही सर्वोदयी आंदोलन के दौरान जेपी की मौजूदगी में चंबल के बागी मोहर सिंह, माधो सिंह, नाथू सिंह, छिदू मल के साथ 70 से ज्यादा लोगों ने बीहड़ छोड़कर आत्मसमर्पण किया था। तब प्रकाशचंद्र सेठी मप्र के सीएम और रामनारायण नागू आईजी हुआ करते थे। प्रख्यात गांधीवादी सुब्बाराव ने यहां महीनों जंगलों में घूम घूम कर इन बागियों को समर्पण के लिए राजी किया था। जौरा का महात्मा गांधी आश्रम इसका गवाह है।
जौरा की पहचान राजा पंचम सिंह के महान व्यक्तित्व के साथ भी जुड़ी है, जो यहां से एमएलए रहे हैं और लोग उन्हें दाता के रूप में जानते पुकारते थे।
यहाँ प्रस्तावित उपचुनाव कांग्रेस विधायक बनबारीलाल शर्मा के निधन के चलते होने जा रहा है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास थे। 2013 में वह 39923 वोट लेकर नजदीकी मुकाबले में बीजेपी के सूबेदार सिंह रजौधा से हार गए थे। सूबेदार को 42421 वोट मिले थे। सिटिंग बसपा विधायक मनीराम धाकड़ 30179 वोट लेकर तीसरे नम्बर पर रहे थे।
2018 तक बनवारी लाल सक्रिय रहे औऱ इस बार 56187 वोट लेकर जीतने में सफल रहे। सिटिंग एमएलए सूबेदार 37988 वोट पाकर तीसरे और मनीराम 41014 वोट पाकर दूसरे नम्बर पर रहे।
सूबेदार सिंह बीजेपी के पहले प्रत्याशी रहे हैं, जो न केवल जीतने में सफल रहे, बल्कि सर्वाधिक वोट भी उन्होंने ही हासिल किये। इससे पहले 2008 में बीजेपी के नागेंद्र तिवारी 17610, 2003 में महेश मिश्रा 10376, 1998 में कालीचरण कुशवाहा 12519, 1993 में जाहर सिंह शर्मा 25965 वोट ही प्राप्त कर पाये।
बसपा ने यहां ओबीसी-दलित कॉम्बिनेशन के साथ तीन बार जीत दर्ज की है। 1993 और 98 में सोनेराम कुशवाहा और 2008 में मनीराम धाकड़ बसपा टिकट पर विधायक रह चुके हैं।
वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस वृन्दावन सिंह सिकरवार, मानवेन्द्र गांधी, राकेश यादव (किरार), संजय यादव, पंकज उपाध्याय, बनवारी शुक्ला, सुनील शर्मा के बीच अपना कैंडिडेट तलाश कर रही है। त्यागी, ऋषिश्वर, सनाढ्य ब्राह्मण मिलकर यहां एक बड़ी ताकत हैं। पूर्व में यह विभक्त थे, लेकिन पिछले चुनाव से एकीकृत होकर वोट कर रहे हैं, इसलिए ब्राह्मण कैंडिडेट पर कांग्रेस दांव लगा सकती है।
राकेश यादव, संजय यादव की दावेदारी पर बसपा के मनीराम धाकड़ पानी फेर रहे हैं। वहीं सबलगढ़ से कुशवाहा विधायक होने के चलते कांग्रेस के पास इस बड़ी जाति पर भी दांव लगाने की गुंजाइश कम ही है।
बीजेपी के पास बनवारीलाल के पुत्र पंकज, भतीजे नागेश, सूबेदार रजौधा, नागेंद्र तिवारी, केदार सिंह यादव, नीतू सिकरवार, अजब सिंह कुशवाहा, उर्मिला त्यागी के विकल्प हैं। बसपा से ब्रजपाल यादव, मनीराम धाकड़ में से किसी एक का टिकट फ़ाइनल हो सकता है।
जौरा में बीजेपी अजब सिंह कुशवाहा पर दांव खेलकर चुनाव में अपनी संभावना खड़ी कर सकती है। इस जाति के साथ कोर वोटर के अलावा सीएम शिवराज सिंह की जाति धाकड़ के वोट मिलकर बीजेपी का गणित बनाने में सक्षम है।
स्वर्गीय विधायक के पुत्र पंकज को लेकर यहां लोगों की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी नहीं है। जौरा में कुशवाहा, ब्राह्मण, किरार जातियां चुनावी नतीजों को प्रमुखता से प्रभावित करती हैं। दोनों दलों के पास यहां के जातीय संतुलन को साधना बेहद कठिन रणनीतिक काम है।
————————————-
आग्रह
कृपया नीचे दी गई लिंक पर क्लिक कर मध्यमत यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।
https://www.youtube.com/c/madhyamat
टीम मध्यमत