सोमवार को मैंने इंदौर डीपीएस बस दुर्घटना को लेकर कुछ बातें लिखी थीं। उसे लेकर कुछ पाठकों की प्रतिक्रिया मिली है। कुछ का कहना है कि सारे अभिभावकों के पास या तो खुद के वाहन नहीं होते या फिर उनके पास प्रतिदिन बच्चों को स्कूल ले जाने या वहां से लाने का समय नहीं होता। ऐसे में उनकी मजबूरी हो जाती है कि वे जो भी, जैसा भी साधन मिले, उससे अपने बच्चों को स्कूल भेजें।
कुछ लोगों ने कहा कि अभिभावकों के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है जिससे वे यह पता लगा सकें कि जो वाहन बच्चों को ढो रहा है वह पूरी तरह फिट है या नहीं और पूरे कायदे कानून से चल रहा है या नहीं। यह काम तो संबंधित अधिकारी या स्कूल प्रशासन ही कर सकता है। प्राथमिक रूप से यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे वाहनों को दुरुस्त रखवाएं।
इन प्रतिक्रियाओं के अलावा कुछ लोगों ने यह सवाल भी उठाया है कि सरकार को स्कूली बसों के बारे में अलग से कायदा कानून बनाना चाहिए। यह सामान्य तौर पर सवारी ढोने जैसा मामला नहीं है। इसलिए जो वाहन स्कूली बच्चों को लाने ले जाने के काम में लगे हुए हैं उनकी निगरानी और रखरखाव आदि की अलग से पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए।
स्कूली वाहन और उनकी व्यवस्था कैसी होनी चाहिए इस सवाल का जवाब देने में मेरी मदद की हमारे मित्र अनिल गुलाटी ने। उन्होंने मुझे 23 फरवरी 2017 को सीबीएसई द्वारा जारी उस सर्कुलर की कॉपी भेजी जिसमें स्कूली वाहनों की फिटनेस और अन्य बातों के बारे में विस्तार से सारे दिशानिर्देश दिए गए हैं। यह सर्कुलर सीबीएसई के उप सचिव के. श्रीनिवासन के हस्ताक्षरों से जारी हुआ है और सारे सीबीएसई स्कूलों के अलावा सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों के प्रबंधकों/ प्रशासकों को भेजा गया है।
मेरे हिसाब से पांच पेज का यह सर्कुलर हरेक अभिभावक को पढ़ना चाहिए। इसमें वाहनों के बाहरी ढांचे से लेकर उसके इंटीरियर, उसके लिए वांछित मानव संसाधन, उसमें उपलब्ध होने वाली आवश्यक सुविधाएं, वाहन के परमिट और स्कूल प्रबंधकों द्वारा की जाने वाली व्यवस्थाओं के साथ साथ अभिभावकों के लिए भी जरूरी दिशानिर्देश दिए गए हैं।
इस सर्कुलर का आधार एम.सी. मेहता बनाम भारत सरकार केस में स्कूल बस संचालन संबंधी एक जनहित याचिका को लेकर 16 दिसंबर 1997 को दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। इसमें स्कूल बसों के अलावा बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाले सभी वाहनों के संदर्भ में सीबीएसई द्वारा समय समय पर जारी निर्देशों को एकजाई करते हुए संस्थाओं के लिए बाध्यकारी नियम जारी किए गए हैं।
ये नियम कितने व्यापक हैं जरा इसकी बानगी देख लीजिए। मसलन बसों के बाहरी ढांचे के बारे में कहा गया है कि बस का रंग पीला होगा और उस पर ‘स्कूल बस’ लिखा होने के साथ-साथ ड्रायवर का नाम, पता, उसका लायसेंस, सबंधित आरटीओ, उनके हेल्पलाइन नंबर आदि की जानकारी भी स्पष्ट रूप से दर्ज होनी चाहिए। रफ्तार को अधिकतम 40 किमी प्रतिघंटे तक सीमित रखने वाला स्पीड गवर्नर बस में अनिवार्यत: लगा होना चाहिए। उसमें आपातकालीन दरवाजे के अलावा अग्निशमन यंत्र भी फिट होने चाहिए। बस में जीपीएस सिस्टम और सीसीटीवी कैमरा अनिवार्य है।
प्रशिक्षित और लायसेंसशुदा ड्रायवर के अलावा बस में एक कुशल कंडक्टर के साथ साथ महिला अटेंडर भी हो जो बच्चों को सुरक्षित रूप से बस में चढ़ाने व उतारने का काम करे। बस में किसी भी स्थिति में बाहरी आदमी को चढ़ने की अनुमति न हो। जहां तक संभव हो सके बच्चों के परिजनों में से कोई एक बारी बारी से बस में नियमित रूप से सफर करे ताकि बस संचालन के नियमों के पालन पर प्रभावी निगरानी और अमल हो सके।
बस में फर्स्ट एड बॉक्स और पीने के पानी की सुविधा हो, बच्चों के स्कूल बैग रखने का इंतजाम हो, भीतर दूधिया रोशनी की व्यवस्था हो,बस की खिड़कियों के शीशे पारदर्शी और बिना किसी परदे आदि के हों ताकि बस के संचालन के दौरान उसके अंदर होने वाली गतिविधि बाहर सड़क पर चलने वाले लोगों को भी आसानी से दिखाई दे सके।
स्कूल बस के रूप में उपयोग किए जाने वाले वाहन के पास सभी कानूनी स्वीकृतियां होनी चाहिए। उसका फिटनेस सर्टिफिकेट भी अपडेट हो।स्कूल प्रबंधन किसी भी हालत में ऐसे व्यक्ति को बस ड्रायवर के रूप में न रखे जिसका एक बार भी अधिक रफ्तार से वाहन चलाने अथवा खतरनाक ढंग से ड्रायविंग करने के लिए चालान हो चुका हो। अनुबंध के आधार पर स्कूल वाहन चलाने वाले निजी वाहनों के संचालक भी अपनी पूरी जानकारी सबंधित पुलिस थाने में देकर रखें।
स्कूल प्रबंधक यह सुनिश्चित करें कि वाहन चलने की स्थिति में उसके दरवाजे बंद रहें। बच्चों के चढ़ने व उतरने के दौरान बस एक जगह स्थिर खड़ी रहे। सड़क पर स्कूल वाहन किसी भी सूरत में अन्य वाहनों को ओवरटेक न करे। शराब पीकर गाड़ी चलाने या ड्रायविंग के समय मोबाइल पर बात करने की सख्त मनाही हो। बच्चों से समय समय पर स्कूल वाहन और ड्रायवर कंडक्टर आदि के व्यवहार के बारे में फीडबैक लिया जाए।
निर्देशों में बच्चों के मां बाप की भी जिम्मेदारियां तय की गई हैं। इनमें कहा गया है कि वे बच्चों को उसी वाहन से स्कूल भेजें जो उनके लिए पूरी तरह सुरक्षित हो। वाहन अथवा उसके स्टाफ में किसी तरह की कोई भी गलत बात दिखाई देने पर तुरंत स्कूल को रिपोर्ट करें। गैर कानूनी रूप से या असुरक्षित रूप से चलने वाले किसी भी वाहन से बच्चों को स्कूल न भेजें।
सीबीएसई के सर्कुलर की ये वो मोटी मोटी बातें हैं जो मैं इस कॉलम की सीमित जगह में समेट पाया। वैसे तो इस सर्कुलर में कुल 55 बिंदु शामिल हैं। मुझे बस यही कहना है कि इंदौर हादसे के बाद सरकार और अभिभावक यदि सचमुच बच्चों की सुरक्षा चाहते हैं तो वे अपने मासूमों की जान के नाम पर सिर्फ इतना करवा दें कि इन दिशानिर्देशों का अक्षरश: पालन हो जाए… हालांकि मैं यह भी जानता हूं कि जैसे हालात हैं उनमें ऐसा कर पाना असंभव ही है, लेकिन कोशिश तो करके देखिए। क्या अपने बच्चों की जान बचाने को भी हम असंभव काम मानकर टाल देंगे?
नोट- स्कूल बसों के बारे में सीबीएसई के विस्तृत दिशानिर्देश आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-