बड़े बूढ़े कहा करते थे- सब, समय की बलिहारी है- सचमुच, यह समय की बलिहारी ही है कि आज जल्लाद भी सेलिब्रिटी बने हुए हैं। और सच पूछा जाए तो यह ‘जल्लादों’ का ही समय है। आप चाहें तो यूं भी कह सकते हैं कि आज समय ही जल्लाद हो गया है। और इस ‘जल्लाद समय’ में यदि जल्लाद सेलिब्रिटी हो रहे हैं तो क्या बड़ी बात है?
जल्लाद के प्रासंगिक होने का ताजा प्रसंग हैदराबाद में एक वेटरनरी डॉक्टर की दुष्कर्म के बाद उसे जलाकर मार डालने की घटना से जुड़ा है। हालांकि घटना के कुछ दिनों बाद अपराध को अंजाम देने वाले चारों आरोपी कथित रूप से पुलिस हिरासत से भागने के दौरान हुई मुठभेड़ में मारे गए थे, लेकिन महिला डॉक्टर की जिस तरह से हत्या की गई, उसने पूरे देश को हिला दिया। हर तरफ आंदोलन और प्रदर्शन के जरिये दुष्कर्म के दोषियों को तत्काल सजा देने की मांग उठने लगी।
इसी दौरान सात साल पहले दिल्ली में हुआ निर्भया-कांड भी ताजा हो गया। निर्भया-कांड के बाद भी देश में ऐसा ही तूफान उठा था। लेकिन सचाई यह है कि कानूनी प्रक्रियाओं के चलते उस जघन्य और बर्बर अपराध के दोषियों को अदालतों द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बावजूद आज तक फांसी नहीं हो सकी है। हैदराबाद की घटना के बाद से बने चौतरफा दबाव के चलते सरकारी और न्यायिक मशीनरी हरकत में आई है और संभावना जताई जाने लगी है कि निर्भया-कांड के चारों आरोपियों को जल्दी ही फंदे पर लटका दिया जाएगा1
और जब से इस संभावना पर बात होनी शुरू हुई है, मेरठ के जल्लाद पवन अच्छे खासे चर्चा में हैं। मीडिया में उनकी खबरें चल रही हैं, टीवी वाले उनका इंटरव्यू कर रहे हैं और काम को अंजाम देने से पहले ही पवन को एक हीरो की तरह पेश किया जा रहा है। यह सबकुछ भी नए जमाने के मीडिया की ही बलिहारी है।
लेकिन पवन से जुड़ी एक ताजा खबर कहती है कि जेल और पुलिस अधिकारियों ने उनसे चुप रहने को कहा है। खुद पवन ने बताया है कि अब मैं अपनी जुबान कुछ दिनों के लिए बंद रखूंगा। अब मैं मोबाइल पर या फिर मीडिया से तब तक ज्यादा बात नहीं करूंगा, जब तक निर्भया हत्याकांड के चारों मुजरिमों की मौत की सजा पर कोई अंतिम फैसला नहीं आ जाता।
पवन का कहना है कि मैं अब तक मीडिया से इस मुद्दे पर खुलकर बात कर रहा था। मेरी भी दिली ख्वाहिश है कि निर्भया के हत्यारों को फांसी के फंदे पर लटकाने का मौका मुझे ही मिले। लेकिन यह मामला बेहद पेचीदा और संवेदनशील है। इसलिए तिहाड़ जेल प्रशासन और उत्तर प्रदेश जेल प्रशासन के बीच हुई चर्चा के बाद से मुझ पर काफी पाबंदियां लगा दी गई हैं।
उसने बताया कि- मेरठ जेल के अफसरों ने सलाह दी है कि मैं अब कुछ दिनों तक किसी से ज्यादा बातचीत न करूं। साथ ही भीड़-भाड़ से दूर रहूं। शहर के बाहर भी कहीं न आऊं-जाऊं। अपनी सेहत का ख्याल रखूं। मुझे कुछ दिन बेहद सतर्क रहने की हिदायत देते हुए कहा गया है कि मैं अपनी हिफाजत को लेकर भी सावधानी बरतूं।
वैसे अभी किसी को भी ठीक ठीक पता नहीं है कि निर्भया कांड के दोषियों को फांसी कब होगी और फांसी देने का काम कौन करेगा? लेकिन जल्लाद पवन को जेल अधिकारियों की ओर से दी गई हिदायतों ने अनजाने में ही देश के हालात को भी लपेटे में ले लिया है। लगता है जबान बंद रखने की जरूरत सिर्फ पवन जल्लाद को ही नहीं, उन सारे ‘जल्लादों’ को है जो इस देश को फंदे पर लटकाने पर आमादा हैं।
आज लोगों के द्वारा किए गए काम देश को उतना नुकसान नहीं पहुंचा रहे जितना जबान पहुंचा रही है। ‘जबान के जल्लाद’ चारों तरफ फैले हुए हैं। कब कौन बोली का फंदा लेकर देश के गले पर कस देगा कोई नहीं कह सकता। सामाजिक व्यवस्था में साधु संतों का काम बोलना और जल्लाद का काम चुपचाप अपने कर्तव्य को अंजाम देने का है। लेकिन ऐसा लगता है कि इन दिनों ‘व्यवस्था के जल्लाद’ ही सबसे ज्यादा बोल रहे हैं।
निर्भया कांड के दोषियों को लेकर तो यह पता चल पा रहा है कि उनके गले में पड़ने वाले फंदे की रस्सी बिहार के बक्सर जेल में तैयार हो रही है, लेकिन देश के गले में पड़ने वाली रस्सियां तो पता नहीं कहां कहां बटी जा रही हैं। और ऐसा भी नहीं है कि उन रस्सियों के इस्तेमाल का जिम्मा खास किस्म की ट्रेनिंग पाए जल्लाद के हाथ में ही हो। आज तो चारों तरफ जल्लादों की फौज तैयार हो रही है और उनमें से हरेक, हाथ में रस्सी लिए, गर्दनें ढूंढता हुआ निकल पड़ा है।
अपराध और न्याय व्यवस्था के निर्देशों के तहत काम करने वाला जल्लाद तो बेचारा अपने ‘कर्तव्य‘ को निभा भर रहा होता है। वह जान जरूर लेता है लेकिन जान लेने के इरादे से नहीं। लेकिन ये दूसरी प्रजाति के जल्लाद सिर्फ और सिर्फ जान लेने के इरादे से ही घूम रहे हैं। कोई भी गरदन आज सुरक्षित नहीं है। पता नहीं कब, किसके इर्द-गिर्द फंदा कस जाए।
क्या विडंबना है कि एक तरफ पेशेवर जल्लाद को सतर्क रहने और अपनी हिफाजत करने की हिदायत मिल रही है और दूसरी तरफ गैर पेशेवर जल्लादों से लोगों को सतर्क रहने और अपनी हिफाजत करने की जरूरत महसूस हो रही है। पेशेवर जल्लादों के खानदान में अब कोई इस पेशे में आने को तैयार नहीं, लेकिन गैर पेशेवर जल्लादों का खानदान दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा है।
काश कोई होता जो इन गैर पेशेवर जल्लादों को भी उनकी जबान बंद रखने को कहता, उन्हें भी उनकी जान का डर दिखाया जाता। फांसी की सजा पाए अपराधियों की तरह इन गैर पेशेवर जल्लादों को भी लटका दिए जाने का डर सताता। लेकिन ऐसा कुछ भी होता दिखता नहीं। बल्कि समय का फेर देखिए कि एक तरफ ‘निर्भया’ के दोषियों को फांसी पर लटकाने के लिए पेशेवर जल्लाद को इंतजार करना पड़ रहा है और दूसरी तरफ समाज की गरदन पर वार करने वाले गैर पेशेवर जल्लाद ‘निर्भय’ होकर घूम रहे हैं…