जौरा में सोनेराम ने मुकाबला त्रिकोणीय बनाया

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डॉ. अजय खेमरिया

मुरैना जिले की जौरा सीट पर बसपा ने सोनेराम कुशवाहा को टिकट दी है। वे बसपा से दो बार इसी सीट से विधायक रह चुके है। यह सीट बसपा के लिए बेहद उपजाऊ मानी जाती है क्योंकि मनीराम धाकड़ भी यहां से 2008 में बसपा को जीत दिला चुके हैं। कुशवाह बिरादरी के यहां अच्छी संख्या में वोट हैं और दलित जाटव एवं अन्य छोटी संख्या वाली बिरादरी के वोट मिलकर बसपा का गणित मजबूत बना देते हैं। पिछले एक दशक से किरार जाति का झुकाव भी बसपा की तरफ तेजी से बढ़ा है इसलिए बसपा का केंडिडेट जौरा की सीट पर भी मुरैना की तरह वोट कटवा नहीं है बल्कि परिस्थिजन्य जीत की इबारत गढ़ने में भी सक्षम है।

सोनेराम कुशवाहा की चुनावी स्थिति अभी बीजेपी और कांग्रेस के टिकट पर भी निर्भर करेगी लेकिन इतना तय है कि जौरा में बसपा मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है और इस सीट पर हारजीत नजदीकी होगी। भाजपा औऱ कांग्रेस के लिए यहां प्रत्याशी चयन बिल्कुल भी आसान नहीं रहने वाला है। कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के असमय निधन से खाली हुई जौरा सीट पर उनके पुत्र और भतीजे भी बीजेपी से दावा ठोक रहे हैं, लेकिन इस बात की संभावना काफी कम है कि बनवारी लाल के परिजनों को बीजेपी टिकट देगी।

मुरैना जिले की बदली हुई परिस्थितियों के बीच संभव है सुमावली से पूर्व विधायक गजराजसिंह सिकरवार को यहां से उतारकर सुमावली में बीजेपी के मंत्री उम्मीदवार एदल सिंह कंषाना की जीत का गणित तलाशा जाए, क्योंकि सिकरवार परिवार सुमावली के संग ग्वालियर पूर्व सीट से भी दावेदारी में है। गजराज सिंह या नीटू सिकरवार को जौरा से उतारकर बीजेपी पूरे परिवार को जौरा में व्यस्त रख सकती है। हालांकि इस सीट से बीजेपी को पहली बार 2013 में जीत दिलाने वाले सूबेदार सिंह सिकरवार का दावा भी एकदम खारिज नहीं किया जा सकता है। वह शिकस्त के बावजूद यहां सक्रिय हैं।

बीजेपी में नागेंद्र तिवारी, दीपक भदौरिया, उर्मिला त्यागी समेत तमाम दावेदार यहां जोर लगाए हुए हैं। कांग्रेस से पंकज उपाध्याय सहित राकेश यादव, बृन्दावन सिकरवार जैसे नेता टिकट की लाइन में हैं और संभावना इस बात की है कांग्रेस मुरैना की इस सीट से किसी ब्राह्मण को उतारेगी, क्योंकि शेष चार सीटों पर वह इस बिरादरी को टिकट देने की स्थिति में नहीं है। जाहिर है बीजेपी के सामने ठाकुर बिरादरी को एडजस्ट करने का संकट है, क्योंकि मुरैना की दो सीट सुमावली, मुरैना में गुर्जर, दिमनी में ब्राह्मण और अंबाह में दलित को टिकट दे रही है। ऐसे में गजराज सिंह परिवार या किसी अन्य ठाकुर के बीजेपी से उतरने के आसार अधिक हैं।

मामला फिलहाल बसपा ने 100 प्रतिशत त्रिकोणीय बना दिया है जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा। बसपा ने तुलनात्मक रूप से केंडिडेट भी निर्विवाद दिया है। बीजेपी के लिए इस दफा सन्तोष का विषय धाकड़ (किरार) कैंडिडेट का न होना है, जो मुख्यमंत्री के नाम पर बीजेपी की तरफ आ सकता है। लेकिन जौरा के मिजाज को वहां के व्यापारी वर्ग के लिहाज से भी समझने की जरूरत है। कमोबेश ब्राह्मण, ठाकुर जैसी प्रभावशाली बिरादरियों के साथ एक दूरी बनाकर चलने का ट्रेंड भी यहां अतीत में सामने रहा है।

मसलन संख्याबल में कम व्यापारी तबका सोनेराम कुशवाहा को इसलिये भी दो बार जिताता रहा है कि वह एक शांत छवि और नॉन मार्शल बिरादरी का प्रतिनिधित्व करते हैं। जाहिर है जौरा में अगर दोनों पार्टियों का कैडर पूरी ताकत से एक्टिवेट नहीं रहता है तो यहां बसपा की संभावनाओं को खारिज कर पाना आसान नहीं है।

इस सीट पर बसपा के प्रभाव को आंकड़े भी स्वयंसिद्ध करते हैं 2013 में बसपा के मनीराम धाकड़ 30179 वोट लाये थे और 2018 में उन्हें 41014 वोट मिले थे, जिसके चलते बीजेपी के सिटिंग एमएलए सूबेदार सिकरवार तीसरे नम्बर पर खिसक गये थे। 1993 एवं 1998 में सोनेराम कुशवाहा यहां से पहले बसपा से जीत दर्ज करा चुके हैं। जाहिर है यहां मुकाबला त्रिकोणीय होगा और हार जीत भी बहुत नजदीकी होगी। खास बात यह है कि मुरैना जिले की छह में से पांच सीटों पर 2018 में बसपा का कोर वोटर खिसक कर कांग्रेस के खाते में चला गया था, लेकिन जौरा अकेली ऐसी सीट थी जहां यह शिफ्टिंग नहीं हुई थी।

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