अजय बोकिल
क्या कभी सोचा था कि इंसान को जिंदा रखने वाली प्राणवायु ऑक्सीजन की भी चोरी होगी और लोग इसकी भी खुलकर कालाबाजारी करने से बाज नहीं आएंगे? लोग खुद को जिंदा रखने के लिए दूसरों की सांसें इस बेशरमी से छीन लेंगे? यह जानते हुए भी कि एक दिन उनकी सांसें भी छिन जाने वाली हैं। अफसोस कि कोरोना वायरस ने हमे वो दिन भी दिखा दिया है। कल तक मप्र सहित देश के कई राज्यों में मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी की खबरें आ ही रही थीं, अब पुणे में ऑक्सीजन सिलेंडरों की चोरी के समाचार ने समाज के स्याह चेहरे को बेनकाब कर दिया है। मध्यप्रदेश में तो तमाम सरकारी दावों और आश्वासनों के बावजूद ऑक्सीजन की कमी भी चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है। अगर यह चल गया तो नतीजे किस की राजनीतिक सांसें रोक लेंगे, यह सोचने की बात है।
जैसे जैसे कोविड 19 विकराल रूप लेता जा रहा है, मप्र सहित देश भर में अस्पताल कम पड़ते जा रहे हैं। कोरोना मरीजों के लिए चिकित्सालयों में बिस्तरों का टोटा पड़ रहा है। आईसीयू की हालत खचाखच भरी ट्रेन की जनरल बोगी से भी बदतर होती जा रही है। कई अस्पतालों में तो स्थानाभाव के कारण गेट के बाहर और गार्डन तक में मरीजों को रखने की नौबत आ गई है, क्योंकि जितने संसाधन थे, वो सब नाकाफी साबित हो रहे हैं।
ऐसे में कोढ़ में खाज की मानिंद उन ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों का टोटा पड़ गया है, जो कोरोना मरीज के जीवित रहने का अंतिम भरोसा है। क्योंकि कोरोना वायरस सीधे फेफड़ों पर हमला कर उन्हें बेकाम कर देता है। परिणामस्वरूप मरीज को सांस लेना दूभर होने लगता है और एक सीमा के बाद सांसों की ये डोर टूट जाती है। ऐसे में अस्पतालों में रोगी को कृत्रिम ऑक्सीजन देकर जिंदा रखने की हर संभव कोशिश की जाती है। लेकिन ‘आपदा में अवसर’ बूझने वालों ने सांसों की कालाबाजारी शुरू कर दी है।
देश में ऑक्सीजन संकट के लक्षण तो जुलाई से दिखने लगे थे, जब कई ‘चतुर’ लोगों ने कोरोना सितंबर में चरम पर आने की सूचनाओं के साथ ही ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों की जमाखोरी शुरू कर दी थी। हैदराबाद में एक शख्स को इसी मामले में गिरफ्तार भी किया गया था। कुछ और स्थानों से भी इस तरह की सूचनाएं मिल रही थीं, लेकिन तब इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया, उतना भी नहीं, जितना कि रसोई गैस सिलेंडरों की चोरी या कालाबाजारी को लिया जाता है। इसके पहले हमें ऑक्सीजन चोरी जैसी घटनाएं एवरेस्ट चढ़ने वाले पर्वतारोहियो से सुनने को मिलती थीं। तीन साल पहले हिमालय चढ़ने वाले विदेशी पर्वतारोहियों और शेरपाओं ने शिकायत की थी कि उनके हाई कैम्प से ऑक्सीजन बॉटल्स चोरी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
मानो अब यही ट्रेंड बड़े पैमाने पर मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडरों की चोरी के रूप में सामने आ रहा है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में पुणे के पास पिंपरी चिंचवड में 20 ऑक्सीजन सिलेंडरों से भरा एक टेम्पो ही चुरा लिया गया। पुलिस को संदेह है कि ये ऑक्सीजन सिलेंडर दूसरे अस्पतालों को ऊंचे दाम में बेचने के लिए चुराए गए हैं। इससे भी ज्यादा चिंताजनक ट्रेंड निजी तौर पर ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों की जमाखोरी का है। बताया जाता है कि कोरोना होने पर ऑक्सीजन न मिलने की आशंका के चलते लोग अपने घरों में ही ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों का स्टॉक कर रहे हैं, गोया वह कुकिंग गैस हो।
जानकारों के अनुसार ये मांग ऑक्सीजन के छोटे सिलेंडरों की है। मौके का फायदा उठाते हुए कुछ जगह तो ये सिलेंडर लाख लाख रूपए तक में बेचे जा रहे हैं, क्योंकि कोरोना पेशंट को बचाने का यही प्रमुख उपाय है। लेकिन गरीब तो यह महंगी सांसें भी नहीं खरीद सकता। वो क्या करे? ऑक्सीजन की कमी से सरकारें भी परेशान हैं। क्योंकि जिंदगी के लिए जरूरी इस गैस ने राजनीतिक दावों की भी हवा निकाल कर रख दी है।
केन्द्र सरकार का कहना है कि उसने देश में ऑक्सीजन गैस की कमी को देखते हुए 5 लाख सिलेंडरों का ऑर्डर दिया है। बताया जाता है कि देश में ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता 2 हजार मीट्रिक टन प्रतिदिन है। स्टील प्लांटों से कहा गया कि वे 550 टन ऑक्सीजन अतिरिक्त प्रदाय करें। साथ ही केन्द्र सरकार ने राज्यों को लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की त्वरित सप्लाई के लिए ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाने के लिए भी कहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मुद्दे पर राज्यों के साथ वर्चुअल बैठक की।
इस बीच कालाबाजारी के चलते ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों के दाम भी डेढ़ गुना हो गए हैं। सिलेंडर की रिफिलिंग के लिए भी चार गुना दाम वसूले जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भरोसा दिलाया है कि राज्य के अस्पतालों में ऑक्सीजन गैस की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। सरकार अपने ढंग से पूरी कोशिश भी कर रही है, लेकिन जिस तेजी से कोरोना मरीज बढ़ रहे हैं और आक्सीजन की मांग बढ़ रही है, उसने राज्य की चिकित्सा सुविधा और क्षमताओं की सीमाएं उजागर कर दी हैं। पर इन सबमें ज्यादा अहम वो नीच प्रवृत्ति है, जो ऑक्सीजन मुहैया कराने को भी महज एक व्यापार और मुनाफाखोरी के रूप में देख रही है।
मध्यप्रदेश में तो ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों की कमी भी चुनावी मुद्दा बन रहा है। हालांकि इससे बचा जाना चाहिए, क्योंकि तकरीबन सभी राज्यों में ऑक्सीजन की कमी की खबरें आ रही हैं। बावजूद इसके पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसान कांग्रेस की सभा में शिवराज सरकार पर यह कहकर हमला किया कि प्रदेश के अस्पतालों में ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों का टोटा है। भाजपा सरकार अपने 15 साल के राज में मप्र को इस मामले में भी आत्मनिर्भर नहीं बना पाई।
यह बात अलग है कि खुद कमलनाथ की सरकार ने भी इस दिशा में शायद ही कोई काम किया हो। अब वक्त आ गया है कि प्रदेश को राजनीतिक आत्मनिर्भरता से वास्तविक आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। सरकार ने कोरोना प्रकोप के बीच राज्य में ऑक्सीजन गैस प्लांट लगाने का ऐलान किया है। लेकिन यह पहले से होता तो दूसरे लोगों के काम आता।
यह सही है कि वर्तमान में राज्य की जो राजनीतिक परिस्थिति है, उसमें दोनो प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस को सियासी ऑक्सीजन की बेहद जरूरत है। दोनों ही पार्टियां चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। लेकिन ऑक्सीजन की कमी के लिए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से कुछ नहीं होगा। अगर मध्यप्रदेश में ऑक्सीजन सप्लाई की हालत खराब है तो उस महाराष्ट्र की स्थिति पर क्या कहेंगे, जहां ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी की समस्या पहले से है और जिस राज्य में कांग्रेस सत्ता में भागीदार है। बेशक सांसों का हिसाब मांगा जाना चाहिए, लेकिन जब इसे ही जब चुनावी मद्दा बनाने की कोशिश होती है तो उसके औचित्य पर सवाल उठने ही हैं। फिलहाल तो लोगों की जानें बचाने पर ध्यान दें।