राकेश अचल
पिछले दिनों तीसरे मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए चौसर बिछा रहे के. चंद्रशेखर राव ने आजाद भारत के इतिहास में गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन न कर एक काला अध्याय जोड़ दिया है। राज्यपाल से अपनी अनबन के चलते केसीआर ने जो किया वो अकल्पनीय है। झगड़े एक तरफ होते हैं और राष्ट्रीय अस्मिता एक तरफ। गणतंत्र दिवस समारोह राष्ट्रीय अस्मिता को रेखांकित करने वाला समारोह है।
तेलंगाना में गणतंत्र दिवस पर राजभवन में झंडावंदन तो हुआ, लेकिन प्रोटोकॉल के तहत इसमें मुख्यमंत्री नहीं पहुंचे। राज्य सरकार की ओर से कोई सार्वजनिक समारोह नहीं हुआ। राज्य में सिकंदराबाद के परेड ग्राउंड पर पारंपरिक रूप से हर साल होने वाला समारोह दो साल से कोरोना की वजह से बंद था। इस बार भी राज्य सरकार ने कोविड प्रोटोकॉल का हवाला देकर इसे राजभवन में ही कराने की सूचना दी। जबकि केंद्र सरकार और तेलंगाना हाईकोर्ट ने इसे सार्वजनिक तौर पर आयोजित करने का निर्देश दिया था।
तेलंगाना सरकार ने कुछ दिन पहले गणतंत्र दिवस कार्यक्रम राजभवन में ही आयोजित करने के लिए चिट्ठी लिखी थी। इस पर हैदराबाद के एक युवक के. श्रीनिवास ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। मेरी स्मृति में ये पहला मामला है जो अदालत तक पहुंचा है। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि सरकार ने सिकंदराबाद के परेड ग्राउंड में गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित करने की परम्परा को बंद कर दिया। जबकि यह गणतंत्र दिवस समारोह की भावना के खिलाफ है।
तेलंगाना हाईकोर्ट ने बुधवार को यानी 25 जनवरी को राज्य सरकार को केंद्र के दिशा-निर्देशों के अनुसार परेड समेत गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि वह लोगों को समारोह देखने की अनुमति दे। हालांकि, कोर्ट ने आयोजन स्थल का चुनाव राज्य सरकार पर छोड़ दिया था, लेकिन सरकार ने न अदालत की सुनी और न जनता की। राज्यपाल से तो सरकार यानि मुख्यमंत्री केसीआर की अनबन है ही।
केसीआर जनता के नेता हैं, उन्होंने एक साथ संविधान, अदालत और राज्यपाल तीनों की अवमानना की है। ये गणतंत्र की भावना के खिलाफ भी है और राजनीतिक संकीर्णता। सब जानते हैं कि राज्यपाल मिलसाई सुंदराजन बीजेपी से हैं। वे पार्टी की राष्ट्रीय सचिव और तमिलनाडु की प्रदेश अध्यक्ष रही हैं। वहीं, केसीआर बीजेपी विरोधी धड़े से हैं। वे लगातार मोदी सरकार की नीतियों का विरोध करते रहे हैं। इसके अलावा राज्य सरकार का आरोप है कि राज्यपाल ने उनके कई विधेयक रोक रखे हैं। वो सरकार के काम में दखल देती हैं।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच ये कोई पहला विवाद नहीं है, बल्कि विवादों की श्रृंखला की एक कड़ी है। ये विवाद कांग्रेस के शासन काल में भी थे और भाजपा के शासन में भी इन पर विराम नहीं लगा। बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीश धनकड़ को तो पारितोषिक के रूप में उप राष्ट्रपति का पद तक मिल गया। वे बंगाल के राज्यपाल के रूप में पूरे समय मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी से जड्ड लेते रहे।
मुझे याद आता है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान तो अनेक राज्यपाल तानाशाह की तरह व्यवहार करने लगे थे। रोमेश भंडारी, भगवत दयाल शर्मा और मोहम्मद शफी कुरेशी के नाम इस मामले में हमेशा याद किए जाते हैं।
केसीआर को केंद्र से टकराना है तो उन्हें किसी ने रोका नहीं है। वे मजे से अपना शौक पूरा करें, लेकिन उन्हें ये हक किसी ने नहीं दिया कि वे अपनी अनबन के चलते संविधान का ही अपमान कर डालें। मुमकिन है कि कुछ लोगों को केसीआर के विरोध की यह राजनीति अच्छी लगे, लेकिन बहुसंख्यक लोग इसे पसंद नहीं करेंगे। केसीआर को इस मामले में दूसरे गैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों से सीखना चाहिए। आप राज्यपाल पर हमला कर केंद्र को नुक्सान नहीं पहुंचा सकते।
राज्यपाल का पद दुरुपयोग के लिए ही बनाया गया है। ये पद सक्रिय राजनीति से बेदखल नेताओं का बुढापा सुरक्षित करने का हथियार है। जनता के पैसे का दुरुपयोग राज्यपाल के पद की हकीकत है। हर राजभवन सफेद हाथी की तरह है, जो सिर्फ हरियाली उजाड़ता है और बदले में सिर्फ लीद करता है। इस सफेद हाथी के शिकार सब होते हैं किंतु कोई भी इससे मुक्ति पाने के लिए राजी नहीं है, क्योंकि हर सत्तारूढ़ दल को इस सफेद हाथी की जरूरत पड़ती है।
भारतीय लोकतंत्र पचहत्तर साल बाद भी अंग्रेजों की छाया से मुक्त नहीं हो पाया है। राज्यपाल का पद इस काली छाया का एक हिस्सा है। जब तक राज्यपाल है तब तक मुख्यमंत्री से उसका टकराव स्वाभाविक है। जब ये स्वाभाविक है तब इसे लेकर कोई मुख्यमंत्री आजादी के बाद देश में स्थापित मूल्यों से खिलवाड़ नहीं कर सकता। केसीआर ने ये किया है, सो बहुत बुरा किया। इस अपराध के लिए उन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता। केसीआर की इस हरकत के बाद ये तो साफ हो गया है कि केसीआर कम से कम बिखरे विपक्ष के नेता होने लायक तो बिल्कुल नहीं हैं।(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्यात्मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है। यदि लेख पर आपके कोई विचार हों या आपको आपत्ति हो तो हमें जरूर लिखें।-संपादक