सतीश जोशी
ग्वालियर-चंबल अंचल की सोलह सीटों के उपचुनाव में दिग्विजय सिंह की आक्रामक शुरुआत पर कांग्रेस से भाजपा में आए एक प्रवक्ता ने वार किया तो उसने कई राजनीतिक पंडितों को आश्चर्य में डाल दिया। रामनिवास रावत पर कार्रवाई को लेकर बरसे दिग्विजय को कांग्रेस से कोई तवज्जो नहीं मिली। प्रशासन ने कार्रवाई भी नहीं रोकी। गुना के सांसद के.पी. यादव के घर पहुंचे सचिन यादव का जाति कार्ड भी फेल हो गया। राजा से निपटने के लिए महाराजा कब मैदान पकड़ेंगे पता नहीं, पर उसके पहले उनके एक प्यादे ने ही पहली बाजी जीत ली। देखना होगा कि शह और मात का यह खेल चुनाव तक क्या गुल खिलाता है।
सचिन के जातीय दांव पर पंकज ने पानी फेरा
राजा दिग्विजय सिंह के दांव पर कांग्रेस के प्रवक्ता रहे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए पंकज चतुर्वेदी ने रामनिवास रावत की फाइल फेंककर यह साबित कर दिया कि श्योपुर प्रशासन की कार्रवाई सही है और शासन पीछे नहीं हटेगा। सचिन यादव के केपी यादव पर चले गये जातीय दांव को भी पंकज चतुर्वेदी ने उलटकर रख दिया।
सिधिया- के.पी. को पास लाए
पंकज ने सिंधिया और के.पी.यादव के बीच की दूरी दूर कर कांग्रेस की यादव पर डोरे डालने की योजना पर पानी फेर दिया। इस को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आगे बढाया और दो मीटिंग के बाद सिंधिया- के.पी.यादव फिर पास आए हैं।
कमलनाथ की ठंडी प्रतिक्रिया
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के प्रभारी मुकुल वासनिक दो दिन रहे और ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों को लेकर चुनाव रणनीति पर चर्चा हुई। वासनिक चाहते हैं कि महाराजा याने सिंधिया के खिलाफ आक्रामक रणनीति बनाई जाए और इस क्षेत्र में चुनावी कमान राजा दिग्विजय सिंह को सौंपी जाए। यह प्रस्ताव आते ही दिग्विजय सिंह की बांछें खिल गयीं, पर कमलनाथ की ठंडी प्रतिक्रिया ने वासनिक को अपने प्रस्ताव पर पुनः सोचने को मजबूर किया।
दिग्गी सामने आए तो भाजपा खुश
24 में से 16 सीटों पर दिग्विजय सिंह को कमान सौंपना याने सफलता उनकी झोली में डाल देना और सफलता के बाद प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व कमलनाथ के हाथ से फिसल कर राजा के पास चले जाने की संभावना है। महाराजा ज्योतिरादित्य और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस के भीतर दिग्विजय सिंह को आगे कर चुनाव लड़ने के प्रस्ताव से खुश हैं। दरअसल कमलनाथ के मुकाबले दिग्विजय सिंह पर चुनावी वार करना बहुत आसान है। कांग्रेस हायकमान यह करती है तो भाजपा के लिए चुनावी मैदान मारना आसान हो सकता है।
बहरहाल जैसे-जैसे चुनाव पास आएंगे चुनावी रणनीतियां बनेंगी, बिगडेंगी। असली खेल तो उम्मीदवारों के सामने आने पर शुरू होगा। भाजपा के उम्मीदवार सामने हैं, कांग्रेस को तय करना हैं।