उज्जैन सिंहस्थ में बुधवार को भारतीय जनता पार्टी का बहुप्रचारित ‘समरसता स्नान’ बदले हुए स्वरूप में ही संपन्न हुआ। इस स्नान को लेकर पहले जो योजना बनी थी उसमें तय किया गया था कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान सहित पार्टी के बड़े नेता आदिवासी एवं दलित समाज के प्रमुखों के साथ शिप्रा में स्नान करेंगे।
मूल योजना के मुताबिक इस उपक्रम का घोषित उद्देश्य तो सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना था लेकिन इसका ‘हिडन एजेंडा’ राजनीतिक था। पार्टी का यह विचार बना था कि हाल ही में हुई कुछ घटनाओं को लेकर उसकी जो दलित विरोधी छवि बनाई जा रही है, वह उसे उत्तरप्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में नुकसान पहुंचा सकती है। उज्जैन सिंहस्थ महाकुंभ जैसे धार्मिक समागम को अपनी छवि सुधारने के लिहाज से श्रेष्ठ मंच और अवसर मानते हुए उसी के अनुरूप ‘समरसता स्नान’ का खाका तैयार हुआ।
लेकिन ‘समरसता स्नान’ की तय तारीख 11 मई नजदीक आते-आते इस मामले पर जमकर बवाल हो गया। राजनीतिक मंचो से लेकर संत समाज तक में इतने सवाल उठने लगे कि भाजपा को अपनी मूल योजना से किनारा करना पड़ा और अंतत: यह कार्यक्रम भाजपा नेताओं ने कुछ साधु संतों के साथ शिप्रा-नर्मदा संगम के पानी के आचमन और डुबकी के साथ संक्षिप्त रूप से संपन्न किया।
सवाल यह उठता है कि आखिर इस कार्यक्रम में परिवर्तन क्यों करना पड़ा? दरअसल भाजपा ने भले ही इस आयोजन की रूपरेखा एक ‘अवसर’ के रूप में गढ़ी हो, लेकिन उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में इस आयोजन को लेकर आम सहमति के स्वर नहीं थे। आयोजन से सिर्फ दो दिन पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता और भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभाकर केलकर ने इस पर सार्वजनिक रूप से असहमति जाहिर करते हुए कहा था कि- ‘’इससे सामाजिक भेदभाव बढ़ेगा। समरसता स्नान से ऐसा लगता है जैसे इससे पहले सिंहस्थ में दलित वर्ग के साथ भेदभाव किया जा रहा था। जबकि आज तक तो सारे कार्यक्रम बिना भेदभाव के होते आए हैं।‘’
केलकर के बयान को लेकर मामला उस समय और बिगड़ गया जब मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान ने यह टिप्पणी कर डाली कि ‘’केलकर मेरे मालिक नहीं हैं।‘’इस टिप्पणी की संघ में तीखी प्रतिक्रिया हुई। अब तक सार्वजनिक रूप से इस बहस में पड़ने से बच रहे संघ की प्रतिक्रिया संघ के नजदीक माने जाने वाले अखबार ‘स्वदेश’ में खुलकर सामने आई। ग्वालियर स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे ने बुधवार को ही पहले पेज पर अपनी विशेष संपादकीय टिप्पणी में जो लिखा है, वह बताता है कि इस आयोजन को लेकर संघ का मानस क्या था और भारतीय जनता पार्टी द्वारा बनाई जा रही ऐसी योजनाओं को लेकर संघ क्या सोचता है।
‘नंदू भैया‘ मालिक तो सबका एक ही है- शीर्षक से प्रकाशित इस टिप्पणी में अतुल तारे ने लिखा- ‘’भाजपा का सिंहस्थ समरसता स्नान नि:संदेह एक राजनीतिक प्रयोजन कहा जा सकता है। इससे समरसता बढ़ेगी या नहीं, यह आकलन भाजपा को करना है और इसके नफा-नुकसान की भी वही जिम्मेवार होगी। सवाल किया जा सकता है कि एक धार्मिक पर्व पर यह प्रपंच क्यों? भाजपा को इस सामयिक प्रश्न का उत्तर भी शालीनता से अपने प्रयोग को एक सार्थक मुकाम तक पहुंचाकर देना चाहिए।‘’
केलकर के बयान पर श्री तारे लिखते हैं- ‘’श्री केलकर ने भी समाज से आ रही एक आवाज को स्वर दिया है। सवाल उनसे भी पूछने वाले संभव है पूछ रहे होंगे कि वे तो किसान संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। भाजपा के आयोजन पर टीका क्यों कर रहे हैं? श्री केलकर का बयान उन छोटी राजनीतिक बुद्धिवालों पर एक तमाचा है, जो यह कह-कहकर अपना खाना हजम करते हैं कि संघ की प्रेरणा से चल रहे सारे संगठनों का एक ही काम है कि येन-केन-प्रकारेण भाजपा को सत्ता में देखना।‘’
(जबकि) ‘’इनके लिए सत्ता तो लक्ष्य है ही नहीं, वे इसे अपने लिए कोई साधन भी नहीं मानते। अत: उनके विचार, उनके कदम सत्ता प्रतिष्ठान के अनुकूल रहे, इसकी अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए। पर विचार नंदू भैया को करना चाहिए कि एक श्रेष्ठ विचारक के बयान को इस रूप में खारिज करना उनके पद की गरिमा के अनुकूल है क्या?’’
‘’यही घमंड यही दंभ दिग्विजय सिंह को ले डूबा था, आज यही मद प्रदेश के अधिकांश मंत्रियों में है। अत: श्री नंदकुमार सिंह चौहान को चाहिए कि वे श्री नरेन्द्र मोदी को भगवान बनाने की चाटुकारिता भी न करें और उनका मालिक कौन है या कौन नहीं, यह भी बताने की चेष्टा न करें। लोकतंत्र में मालिक सबका एक ही है- वह है जनता जनार्दन और लोकशाही में जनता अमर्यादित आचरण बर्दाश्त नहीं करती। इसे समय रहते वे सुधारें तो अच्छा…’’
संघ समर्थक स्वदेश का यह संपादकीय बताता है कि सिंहस्थ के आयोजन के स्वरूप को लेकर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मानस में ऐक्य नहीं है। जिस तरह नंदकुमार सिंह चौहान के बयान पर यह तीखी टिप्पणी आई है, उससे लगता है कि सिंहस्थ में तो नहीं हो सका, पर आने वाले दिनों में प्रदेश भाजपा के कई नेताओं को ‘समरसता स्नान’ अवश्य करना पड़ेगा।
गिरीश उपाध्याय (सुबह सवेरे)