उपचुनाव के नतीजों से खीजती भाजपा

राकेश अचल

उपचुनाव चाहे लोकसभा की सीट के लिए हों या विधानसभा सीट के लिए अक्सर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में जाते हैं, लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ दल के लिए उपचुनावों में पराजय के संकेत कुछ अलग होते हैं। यह स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है जब कुछ उपचुनाव राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा से जुड़े होते हैं। हाल के उपचुनावों में से अधिकांश ऐसे ही थे, जिनमें केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी।

बात बंगाल से शुरू करते हैं। बंगाल पिछले विधानसभा चुनावों से ही भाजपा की आँखों में किरकिरी की तरह चुभ रहा है। साम, दाम, दंड और भेद के इस्तेमाल के बावजूद भाजपा बंगाल की सत्ता पर काबिज नहीं हो पायी थी, और अब भाजपा से ताल्लुक तोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा को आसनसोल लोकसभा उपचुनाव में भी भाजपा नहीं रोक पायी। वे न सिर्फ जीते बल्कि पूरे दो लाख मतों के अंतर से जीते। सिन्हा भाजपा के सबसे ज्यादा उपेक्षित नेताओं की सूची में शामिल थे। शत्रुघ्न सिन्हा से पहले एक और सिन्हा यानि यशवंत सिन्हा भाजपा से अलग हो चुके हैं।

आसनसोल से शत्रुघ्न सिन्हा की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक तो वे बंगाल के लिए नए थे और आसनसोल से तृणमूल कांग्रेस कभी चुनाव जीती भी नहीं थी। बंगाल की ही बालीगंज विधानसभा सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने भी जीत हासिल कर ली है। बाबुल भी भाजपा के बागी ही माने गए हैं, क्योंकि उन्होंने भाजपा की तमाम समझाइश और दबाव के बावजूद टीएमसी को अपना लिया था। बाबुल और सिन्हा में एक ही समानता है कि दोनों कलाकार हैं और दोनों ने भाजपा के परम अजेय नेतृत्व को चुनौती देते हुए ये जीत हासिल की है।

बाबुल सुप्रियो ने चुनाव जीतने के बाद एक ट्वीट कर कहा कि मैं आश्वस्त था कि न्याय होगा और आसनसोल से अगला सांसद तृणमूल कांग्रेस से होगा। अब मैं डैशिंग और हमेशा मुस्कुराते रहने वाले सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के साथ काम करने को लेकर उत्साहित हूं। सचमुच बाबुल और शत्रुघ्न सिन्हा की ऐसी ही प्रतिक्रिया होना थी। दोनों भाजपा की प्रताड़ना के प्रतीक बन गए थे।

बंगाल के बाद बिहार में सत्तारूढ़ भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। बिहार की बोचहां सीट से लालूप्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार अमर पासवान ने जीत हासिल कर ली है। काउंटिंग शुरू होने के बाद से ही पासवान ने बढ़त बना ली थी। आरजेडी को 82,116 वोट मिले, बीजेपी 45,353 और वीआईपी 29,671 वोट लेकर आई। जीत का अंतर 36,000 से ऊपर रहा। जाहिर है कि अब विरोध की आंधी रोकना भाजपा के लिए कठिन होता जा रहा है।

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि बोचहां विधानसभा उपचुनाव में बेरोजगारी, महंगाई एवं बदहाल शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि व विधि व्यवस्था से त्रस्त जनता ने डबल इंजन सरकार तथा अवसरवादी एनडीए ठगबंधन में शामिल 4 दलों की जनविरोधी नीतियों व अहंकार को अकेले परास्त करने का न्यायप्रिय कार्य किया है। छत्‍तीसगढ़ के खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस की यशोदा वर्मा को बड़ी जीत मिली है। यशोदा वर्मा ने 20 हजार से भी अधिक वोटों से जीत हासिल की है। बीजेपी के कोमल जंघेल से यशोदा वर्मा का सीधा मुकाबला हुआ। 10 प्रत्याशियों में से कोमल जंघेल दूसरे नंबर पर रहे।

महाराष्ट्र के कोल्हापुर उत्तर विधानसभा सीट पर भी भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा, यहाँ भी कांग्रेस की जयश्री जाधव कोई 18 हजार से अधिक मतों से जीतीं। महाराष्ट्र में भाजपा की ताकत अपेक्षाकृत अधिक है लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के सामने उसकी एक न चली। इन चारों राज्यों के उपचुनावों से देश की राजनीति में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन आने वाला नहीं है, किन्तु हाल ही में चार विधानसभा चुनावों में से तीन में विजय हासिल करने वाली भाजपा के लिए ये खतरे की घंटी जरूर हैं।

विधानसभा उपचुनावों के नतीजे ऐसे हैं जैसे कि चूहों को बिल्ली के गले में घंटी बांधना थी और वे उसमें कामयाब रहे। अब जब भी बिल्ली शिकार पर निकलेगी चूहों को पता चल जाएगा कि खतरा किस तरफ से है और बचाव या हमला कैसे करना है। निश्चित ही आज सियासत में चूहा और बिल्ली का खेल चल रहा है। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की बिल्ली लगातार बड़ी होती जा रही है। विपक्षी दलों को भाजपा ने चूहों की तरह एक के बाद एक निपटाना शुरू कर दिया है, ऐसे में भाजपा की बिल्ली के गले में घंटी बांधना विपक्ष के चूहों के लिए बहुत आवश्यक था। आप विपक्ष के चूहों को उनकी कामयाबी के लिए बधाई दे सकते हैं।

जाहिर सी बात है कि जिस बिल्ली के गले में घण्टी बंधी होती है उसके लिए शिकार करना आसान नहीं होता। भाजपा के लिए 2024 के आम चुनाव इसी तरह कठिनाई भरे हो सकते हैं। भले ही विपक्ष अभी बहुत कमजोर है, भाजपा की आंधी को नहीं रोक पा रहा है, उन्माद से जूझ नहीं पा रहा है किन्तु उपचुनावों के नतीजे साफ़ संकेत देते हैं कि असम्भव कुछ भी नहीं है। मोदी जी के रहते हुए भी भाजपा को परास्त किया जा सकता है। देश में कमजोर विपक्ष का मजबूत होना समय की जरूरत है, लोकतंत्र में सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच एक संतुलन होना चाहिए। जब-जब ये संतुलन बिगड़ा है, तब-तब लोकतंत्र के सामने संकट बढ़ा है।

आप याद कीजिये की आज की स्थिति ठीक वैसी है जब राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 415 सीटें मिलीं थीं, वो भी तब जबकि कांग्रेस पर इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिख दंगे कराने का आरोप था। आज कांग्रेस 38 साल बाद सिमट कर 44 सीटों पर आ गयी है और विधानसभा चुनावों में भी लगातार सिमटती जा रही है। ऐसे में चार राज्यों के उपचुनाव परिणाम कांग्रेस को राहत दे सकते हैं। कांग्रेस हाशिये पर है लेकिन अभी भी उसकी वापसी की उम्मीद खत्म नहीं हुई है। बहरहाल जो हुया सो हुआ, भाजपा का अश्वमेघ का घोड़ा बंधा तो नहीं लेकिन जहाँ-तहाँ रोक दिया गया है, बुंदेलखंड में इसे ‘बिड़ार देना’ कहते हैं। भाजपा को इससे सबक लेना चाहिए। यदि उसे इसी तरह से खारिज किया जाने लगा तो डॉ. मोहन भागवत के अखंड भारत के सपने का क्या होगा?(मध्यमत)
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