राकेश अचल
लोकतंत्र और संविधान पर मंडराते खतरों का लाख रोना रोते रहिये लेकिन हकीकत ये है कि देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल लगातार कांतिहीन हो रहा है और लगातार कीचड़ में पनपने वाला कमल किलकिला रहा है। यानि भाजपा का प्रसार क्षेत्र बढ़ रहा है। जाहिर है कि तमाम धर्मनिरपेक्ष ताकतें एकजुट होकर भी कोई निर्णायक विरोध नहीं कर पा रही हैं। हाल के बिहार विधानसभा चुनाव और मध्यप्रदेश में हुए उपचुनावों के नतीजे तो कम से कम यही प्रामाणित करते हैं।
जगजाहिर है कि कांग्रेस की संगठनात्मक संरचना पूरी तरह बिखर चुकी है और नेतृत्व कांतिहीन होता जा रहा है। एक विचारधारा के रूप में चौतरफा विकसित हुई कांग्रेस के ऊपर न जाने कौन सी अमरबेल काबिज हुई है कि कांग्रेस निरंतर पीली पड़ती जा रही है, जबकि कीचड़ में विकसित होने वाला कमलदल फल-फूल रहा है। अब या तो जनता विकल्पहीन है या फिर कांग्रेस से नाराज। बिहार में कांग्रेस पहले से भी कमजोर हुई है। राजद के नेतृत्व वाला महागठबंधन एड़ी-चोटी का जोर लगाकर भी भाजपा जेडीयू गठबंधन को सत्ता में आने से नहीं रोक पाया।
तकनीकी रूप से देखा जाये तो ये विपक्ष के बिखराव का युग है। सब या तो एकजुट नहीं होते या फिर एकजुटता प्रदर्शित नहीं कर पाते। कांग्रेस उत्तरप्रदेश से उखड़ चुकी है, बिहार में लगातार उखड़ रही है, महाराष्ट्र में उसका कोई बड़ा जनाधार नहीं बचा है। मध्यप्रदेश से उसकी सत्ता जा चुकी है। राजस्थान और पंजाब में उसकी जड़ें वायुमूल जैसी हो रही हैं। कभी भी उन्हें निर्मूल किया जा सकता है।
मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के लिए भले ही भाजपा को जिम्मेदार माना जाये लेकिन मेरे ख्याल से सारा दोष कांग्रेस का है। सत्तारूढ़ होने के बावजूद यदि कांग्रेस से उसके 22 विधायक भाग निकले तो जाहिर है कि इसके लिए मध्यप्रदेश का कांग्रेस नेतृत्व जिम्मेदार है। इसी नेतृत्व के भरोसे कांग्रेस ने विधानसभा का जंगी उपचुनाव लड़ा और भाजपा से अपने 25 विधायकों को तोड़ने का बदला लेने के बजाय कांग्रेस फिर औंधे मुंह गिर पड़ी। कांग्रेस को न सुरक्षात्मक खेलना आता है और न बदला लेना आता है, जबकि भाजपा इन दोनों खेलों में माहिर है। अनेक अवसरों पर भाजपा ने अपनी इन क्षमताओं को प्रमाणित किया है।
भाजपा ने सत्ता पाने के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके सीख लिए हैं। वह जहाँ सामने के दरवाजे से सत्ता हासिल नहीं कर पाती, वहां पिछले दरवाजे से प्रवेश करती है और उसका प्रवेश इतना नाटकीय होता है कि दर्शक हतप्रभ रह जाते हैं। मैं एक आम मतदाता और एक आम पत्रकार और एक लेखक के रूप में भाजपा की इस दक्षता का मुरीद हो गया हूँ। बावजूद इसके मैं भाजपा की तमाम नीतियों के साथ खड़ा नहीं हो पाता।
मुझे हैरानी इस बात की हुई कि कांग्रेस अपने दो दशक के साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर डेढ़ सौ साल पुराना गद्दारी का आरोप लगाया, लेकिन जनता ने उसे खारिज कर दिया। अलबत्ता सिंधिया अपने शहर की तीन में से दो सीटें नहीं जीत पाए, उनके समर्थक दो-तीन मंत्री हारे भी लेकिन कुल जमा सिंधिया कमलनाथ या दिग्विजय सिंह के मुकाबले ज्यादा प्रभावी साबित हुए। दिग्विजय इस महा-उपचुनाव में पर्दे के पीछे थे और कमलनाथ फ्रंट पर, लेकिन जनता ने दोनों को खारिज कर दिया। कांग्रेस कार्यकार्ताओं में इतनी एकजुटता नहीं है कि वे अपने इन दो असफल नेताओं को वानप्रस्थ जाने के लिए विवश कर दें।
आपको याद होगा कि 2003 में सत्ता गंवाने के बाद दोबारा सत्ता पाने के लिए कांग्रेस को मध्यप्रदेश में पूरे 15 साल प्रतीक्षा करना पड़ी थी, मुझे लगता है कि ये महा-उपचुनाव हारने के बाद कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता में वापस लौटने के लिए लम्बी प्रतीक्षा करना पड़ेगी। बिहार में सत्ता सुख पाने के लिए कांग्रेस को अब एक कल्प तक इंतजार करना पड़ सकता है। आने वाले दिनों में कांग्रेस को बंगाल में भी अपनी लाज बचना है, समझदारी इसी में होगी कि कांग्रेस वहां तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर लड़े अन्यथा वहां भी उसे पांव रखने की जगह नहीं मिल पाएगी।
कोई कुछ भी कह ले, लेकिन हकीकत ये है कि आने वाले वर्षों में देश में राजनीतिक कीचड़ घटने के बजाय और बढ़ेगा, ऐसे में कमल खिलता जाये तो कोई क्या कर सकता है। देश में गैर भाजपावाद की हवा भी निकल चुकी है। भाजपा का विरोध करने वाली सपा और बसपा भी लगातार कमजोर हुई है। हर चुनाव में इन दोनों क्षेत्रीय दलों का चरित्र संदिग्ध ही रहता है। बिहार विधानसभा के चुनाव में गैर भाजपादल एकजुट नहीं हो सके। उन्होंने अपनी मौजूदगी से परोक्ष रूप से भाजपा का ही फायदा किया।
देश के लिए भाजपा की राजनीति लाभदायक है या नुकसानदेह इसका विश्लेषण महान पंडित करते ही रहते हैं, हम जैसे आम समझ वाले लेखक सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि देश निरंतर एक अंधी सुरंग में घुसता जा रहा है। इस सुरंग से बाहर आने का रास्ता फिलहाल किसी गैर भाजपा दल के पास नहीं है, और ये अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती। देश में भाजपा ने गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया था। अभी देश पूरी तरह से कांग्रेस विहीन नहीं हुआ है, किन्तु यदि कांग्रेस इसी तरह रेस में पिछड़ती रही तो भाजपा का मनोरथ एक न एक दिन पूरा जरूर हो जाएगा।
देश किस दिशा में जाए, किसके नेतृत्व में जाये ये तय करना जनता का काम है, हमारा काम हम कर रहे हैं, इसे देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिए। जैसे औरों को संविधान और लोकतंत्र की फ़िक्र है, वैसे हमें भी है। हमारी चिंता में आप शामिल होंगे या नहीं इसकी फ़िक्र भी हम नहीं करते क्योंकि हमें आप सबके विवेक पर यकीन है।