विशेष संवाददाता
मध्यप्रदेश में राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी को जबकि कांग्रेस की ओर से दिग्विजयसिंह को चुन लिया गया है। दिग्विजयसिंह को 57, ज्योतिरादित्य सिंधिया को 56 और सुमेरसिंह को 55 वोट मिले। कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार फूलसिंह बरैया को 36 वोट ही मिल सके जबकि दो वोट रद्द हो गए।
वैसे परिणाम के लिहाज से यह चुनाव सिर्फ औपचारिकता था क्योंकि सभी को मालूम था कि नतीजे क्या रहने वाले हैं। हालांकि दिन में मतदान के दौरान थोड़ी बहुत यह सरगर्मी सोशल मीडिया में चलाई गई थी कि भाजपा ने दिग्विजयसिंह को राज्यसभा में न पहुंचने देने के लिए फूलसिंह बरैया के पक्ष में कुछ वोटिंग कराई है। लेकिन परिणामों से सारी स्थिति साफ हो गई।
राज्यसभा चुनाव के साथ ही भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर अपने साथ आए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ किया गया पहला बड़ा वादा निभा दिया है। अब तकनीकी तौर पर ज्योतिरादित्य को मोदी मंत्रिमंडल में लिये जाने का रास्ता खुल गया है लेकिन देखना यह होगा कि उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह कब मिलती है और मिलती भी है या नहीं।
ज्योतिरादित्य कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आते वक्त अपने साथ 22 विधायक लेकर आए थे। उनके विधायकी से इस्तीफा देने के कारण ही प्रदेश में कमलनाथ सरकार अल्पमत में आई और शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में फिर से भाजपा की सरकार बन सकी। आने वाले दिनों में प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा के उपचुनाव अब फैसला करेंगे कि राज्य में सत्ता का ऊंट किस करवट बैठता है।
राज्यसभा चुनाव में निर्वाचन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। अब उन्हें अपनी पूरी ताकत लगाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायकों को अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में फिर से टिकट मिले और वे जीतकर भी आएं। यदि ऐसा नहीं हो सका तो राजनीतिक मोर्चे पर इसे ज्योतिरादित्य की कमजोरी और कई मायनों में असफलता भी माना जाएगा।
कांग्रेस और भाजपा दोनों खेमों में कई दिनों से यह चर्चा चटखारे लेकर चल रही है कि ज्योतिरादित्य मोदी कैबिनेट में कब आते हैं। वैसे तो इसका फैसला खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना है लेकिन हो सकता है सिंधिया को तत्काल कैबिनेट में लेने के बजाय भाजपा इस काम को मध्यप्रदेश विधानसभा उपचुनावों के नतीजे आने तक टाल दे। क्योंकि यदि प्रदेश में होने वाले 24 सीटों के उपचुनावों में भाजपा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती और कांग्रेस इनमें से आधी सीटें भी ले जाती है तो एक बार फिर राज्य की सत्ता में उलटफेर के आसार बन सकते हैं।
ऐसे में यदि राज्य की सत्ता भाजपा के हाथ से गई तो सिंधिया का केंद्र में मंत्री बनने का मंसूबा भी खटाई में पड़ सकता है। हालांकि भाजपा ने पिछले दिनों कुछ निर्दलीय व अन्य विधायकों को अपने खेमे में शामिल कर बाढ़ से पहले ही पाल बांधने की तैयारी कर ली है, लेकिन राजनीति के ऊंट का कोई भरोसा नहीं। यदि उपचुनावों के नतीजे भाजपा के अनुकूल नहीं रहे तो भाजपा में गए ये निर्दलीय और अन्य विधायक फिर से पलटी खाते हुए कांग्रेस का दामन थामने में देर नहीं करेंगे।
यानी राज्यसभा में जीत के बावजूद सिंधिया की मुश्किलें और चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। एक लिहाज से भाजपा में उनका असली सफर तो अब शुरू हुआ है। देखना है मंजिल तक वे कैसे और कब पहुंच पाते हैं।
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टीम मध्यमत