कश्‍मीर का विशेष दर्जा खत्‍म कर ‘विशेष’ हो गई भाजपा

राज्‍यसभा में 2 अगस्‍त को आतंकवाद निरोधी क़ानून यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट) संशोधन बिल पर बहस के दौरान कांग्रेस के सांसद दिग्विजयसिंह ने जब आशंका जाहिर की थी कि हो सकता है इस बिल के पास हो जाने के बाद सबसे पहले उन्‍हें ही आतंकवादी घोषित कर दिया जाए तो गृह मंत्री अमित शाह ने बहुत गहरे अर्थों वाला जवाब दिया था। शाह का कहना था- ‘’अगर कुछ नहीं करोगे तो कुछ नहीं होगा…’’ 

मुझे लगता है अमित शाह, दिग्विजयसिंह को जवाब देने के बजाय पूरी संसद और संसद के बहाने पूरे देश को उलटी बात कहकर सीधी बात समझा रहे थे। कहा उन्‍होंने यह था कि ‘’अगर कुछ नहीं करोगे तो कुछ नहीं होगा’’ लेकिन असलियत में वे कहना यह चाह रहे थे कि- ‘’अगर कुछ करोगे, तभी कुछ होगा’’ और यही वह राज की बात थी जिसे पिछले कुछ दिनों से पूरा देश कश्‍मीर में हो रही हलचल के संदर्भ में जानना चाह रहा था।

जो लोग चार अगस्‍त की रात को जल्‍दी सो गए होंगे उनके लिए पांच अगस्‍त के अखबार यह खबर लेकर आए था कि कश्‍मीर में भारी मात्रा में सैनिकों की तैनाती और अमरनाथ यात्रा स्‍थगित करने के साथ साथ सारे सैलानियों को जल्‍द से जल्‍द कश्‍मीर छोड़ देने की हिदायत के बाद सरकार ने चार अगस्‍त की देर रात कश्‍मीर में तमाम प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं को नजरबंद कर दिया है और पूरे जम्‍मू कश्‍मीर में धारा 144 लागू कर दी गई है।

यह खबर पूरे देश में चारों तरफ आग की तरह फैली और टीवी चैनल सुबह से काम पर लग गए, यह पता लगाने के लिए कि सरकार आखिर करने क्‍या जा रही है। अपने मिजाज के अनुसार चैनलों पर नेताओं के मूवमेंट की पल पल की खबरें चलने लगीं और कश्‍मीर में होने वाले घटनाक्रम के विश्‍लेषण और अनुमानों पर बात करने के लिए पैनल बिठा दिए गए।

उधर सरकार, खासकर गृह मंत्री अमित शाह जो करने जा रहे थे, उस पर अमल के लिए, सोची समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ रहे थे और इधर टीवी चैनल वाले कयासबाजियों में उलझे हुए थे। विशेषज्ञों से बार बार एक ही सवाल पूछा जा रहा था कि आखिर कश्‍मीर में होने क्‍या वाला है? और विशेषज्ञ भी अपनी अपनी बुद्धि और समझ के मुताबिक सिर्फ इतना ही बता पा रहे थे कि हो न हो सरकार कश्‍मीर को लेकर कोई बड़ा फैसला करने जा रही है।

हालांकि ये जो बात कही जा रही थी, उसके लिए किसी भी तरह की विशेषज्ञता की जरूरत नहीं थी क्‍योंकि यह बात तो सड़क चलता कोई भी आदमी कह सकता था कि कश्‍मीर में कुछ होने जा रहा है। लेकिन मूल बात ये थी कि आखिर वह है क्‍या, जो होने जा रहा है? जब एक ही सवाल का घिसा पिटा जवाब मांग कर और पा कर टीवी के एंकर/एंकराएं थक गए तो उन्‍होंने पैनल पर बैठे लोगों को और घसीटा और दो ऑप्‍शन दिए। अच्‍छा बताओ धारा 370 को लेकर कुछ होगा या 35 ए को लेकर।

बहुत बारीक घेराबंदी के चलते पैनल विशेषज्ञ मजबूर हुए और ज्‍यादातर का मत था कि सरकार संभवत: 35 ए को खत्‍म करने जा रही है। जब प्रतिप्रश्‍न किया गया कि 370 को लेकर क्‍या होगा तो जवाब आया कि 370 को लेकर कुछ कानूनी और संवैधानिक उलझनें हैं और सरकार उसे हाथ नहीं लगा सकती। 370 खत्‍म करने के लिए उसे बहुत सी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा जबकि 35 ए को राष्‍ट्रपति के आदेश के जरिये हटाया जा सकता है।

लेकिन मैंने पहले भी कहा है कि जो अटकलों को सही साबित कर दे, वह मोदी सरकार ही क्‍या? अब तक नरेंद्र मोदी सरकार ने जितने भी बड़े फैसले किए हैं, चाहे वे राजनीतिक रहे हों या प्रशासनिक, सभी में उसने मीडिया के कयासों को धता बताते हुए या ठेंगा दिखाते हुए गलत साबित किया है। और फिर इस बार जो होने जा रहा था, उसके सूत्रधार तो खुद भाजपा के अध्‍यक्ष और मुख्‍य रणनीतिकार अमित शाह थे। इसलिए, देश के गृह मंत्री के नाते वे जो कुछ करने जा रहे थे उसकी हवा भी किसी को लग जाए यह कैसे मुमकिन हो सकता था।

टीवी चैनलों पर कश्‍मीर घाटी में पसरे सन्‍नाटे के विजुअल्‍स के साथ खबरें आ रही थीं कि सरकार ने मोबाइल, इंटरनेट, ब्रॉडबैंड और दूरसंचार की लैंडलाइन सेवाएं तक बंद कर दी हैं। कहने को धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा भर लगाई गई है, लेकिन माहौल कर्फ्यू जैसा है। संचार के अपने निजी संसाधनों के जरिये खबरें भेज पा रहे, जम्‍मू-कश्‍मीर में तैनात टीवी चैनलों के रिपोर्टर भी समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर हो क्‍या रहा है और जो होगा, उसका असर क्‍या होने वाला है।

आखिरकार वो वक्‍त भी आ गया जिसका पूरा देश सांस रोककर इंतजार कर रहा था। भारी शोरशराबे के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने राज्‍यसभा में सुबह सवा ग्‍यारह बजे, मीडिया ही नहीं पूरे देश को चौंकाते हुए सदन में दो संकल्‍प और दो प्रस्‍ताव रखे। और इनमें सबसे प्रमुख और ऐतिहासिक प्रस्‍ताव था जम्‍मू कश्‍मीर में धारा 370 की समाप्ति का और महत्‍वपूर्ण बिल था जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य के पुनर्गठन का। इसके तहत जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की बात कही गई थी।

इसके बाद सदन में दिन भर जो कुछ हुआ, वह पूरे देश ने टीवी चैनलों पर देखा। आने वाले दिनों में देश और दुनिया में इस पूरे मसले पर कई तरह से चर्चाएं और बहस होगी, लेकिन 5 अगस्‍त को हुए घटनाक्रम के कुछ बिंदुओं को ध्‍यान में रखना जरूरी है। सबसे पहला तो यह कि सरकार ने उन सारे लोगों को एक तरह से खारिज या गलत साबित कर दिया जो कहा करते थे कि धारा 370 को यूं ही खत्‍म कर देना मुमकिन नहीं है। अमित शाह ने लोकसभा चुनाव के दौरान गढ़े गए भाजपा के इस नारे को वास्‍तविकता के सांचे में ढाल दिया कि ‘मोदी है तो मुमकिन है।’

धारा 370 को खत्‍म करना भाजपा और पूर्व जनसंघ का कई दशक पुराना एजेंडा है और ऐसा करके मोदी सरकार ने न सिर्फ पार्टी के वर्षों पुराने उस संकल्‍प को पूरा किया है, बल्कि आने वाले समय में देश की राजनीतिक में भाजपा की जमीन को और पुख्‍ता कर दिया है। हालांकि अभी इस संकल्‍प को लोकसभा में पारित होना है, लेकिन जहां बहुमत नहीं था, वहीं इसे पहले प्रस्‍तुत करके और बडी चतुराई से की गई राजनीतिक जमावट के जरिये उसे पारित करवाकर, भाजपा ने साबित कर दिया है कि मैदानी राजनीति से लेकर संसद के फ्लोर मैनेजमेंट तक उसकी पकड़ का कोई सानी नहीं है।

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