ब्रजेश राजपूत
रुकिये रुकिये.. कहां जा रहे हैं यात्रा शुरू हो गयी है। गाड़ी साइड में लगाइये। हम सनावद से खेरदा जा रहे थे। रात का अंधेरा पूरी तरह गया नही था। पौ फटने को थी और रास्ते पर तैनात पुलिस ने हमें उस जगह पर जाने से रोक दिया था जहां से राहुल अपनी भारत जोड़ो यात्रा का 77वां और मध्य प्रदेश का तीसरा दिन शुरू कर रहे थे। बस फिर क्या था हम भी खड़े हो गये साइड में जहां पर गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं खड़ी थीं। पूछा इतनी सुबह जाग कर यहां क्यों खड़े हो? बोले राहुल को देखने। अच्छा, राहुल में ऐसा क्या है? अच्छे आदमी हैं इतनी लंबी यात्रा कर रहे हैं।
फिर सब बोले वो आदमी अच्छे हैं मगर राजनीति में उनको उतरना चाहिये। समझ गया कि अब राजनीति का मतलब पद ही होता है। जो पद पर नहीं वो राजनीति में नहीं समझने लगते हैं लोग। और थोड़ी देर बाद ही प्रभात फेरी के अंदाज में यात्री उस गांव से निकलने लगे। सेवादल की प्रभात फेरी में कांग्रेस नेता जयराम रमेश सबसे आगे चले आ रहे थे, हाफ हरी स्वेटर पहनकर।
माइक लेकर जैसे ही उनसे राजस्थान की राजनीति में चल रही उठापटक का सवाल पूछा तो पलटकर जबाव मिला अरे भाई अपनी एमपी की सडकों की भी तो बात करो जो इतने बुरे हाल में हैं। छह राज्य से घूम कर आ रहे हैं मगर इतनी खस्ताहाल सडकें कहीं नहीं दिखी। अपने राज्य की चिंता आप नहीं करोगे तो कौन करेगा। इंदौर बुरहानपुर फोर लेन बन रहा है, मगर अब तक बन ही रहा है।
खैर थोड़ी देर बाद ही बाकी यात्रा का गुबार दिखने लगा और शोर क़रीब आने लगा। दूर देखा तो राहुल अपनी बहन प्रियंका और उनके पति राबर्ट के साथ थे। उनके चारों ओर सुरक्षाकर्मियों का घेरा। उस घेरे के बाद पहली रस्सी का घेरा और उसके आगे दूसरे रस्से का घेरा। इन घेरों में वही लोग प्रवेश पा सकते हैं जिनको इजाजत मिलती है। बाकी लोगों को दूर से ही राहुल की दुआ सलाम होती है। कुछ गांव वालों को राहुल की झलक मिलती है। कुछ को नहीं मगर राहुल को देखना और मिलना सभी चाहते है।
कन्याकुमारी से कश्मीर तक करीब साढ़े तीन हजार किलोमीटर की इस यात्रा में राहुल तो हैं ही उनके साथ सौ से ज्यादा वो लोग हैं जो इस पूरे सफर पर साथ रोज़ पैदल चल रहे हैं। पूरा गांव बसता है जहां ये सब रुकते, ठहरते हैं। रोज ये गांव बसता और उजड़ता है। ये गांव ट्रक पर लगाये गये कंटेनरों में होता है या फिर टेंट और तंबुओ में।
रोज सुबह चार बजे उठना, छह बजे से यात्रा पर रवाना होना, साढ़े आठ बजे कहीं चाय पीना और साढ़े दस बजे नाश्ता और खाने के लिये रूकने के बाद साढ़े तीन पर फिर चलना, रात सात बजे तक। ये चलना ठहरना रोज बीस से पच्चीस किलोमीटर तो हो ही जाता है, मगर राहुल और उनके साथी रोज़ ये काम कर रहे हैं।
इनके अलावा भी कुछ लोग हैं जो इस यात्रा में कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। बत्तीस साल के महाराष्ट्र के लक्ष्मण सदाशिवकर अहमदनगर जिले के संगमनेर तहसील के खुर्द गांव के हैं और कुछ दिनों पहले यात्रा से जुड़े हैं। बिलकुल ठेठ मराठी किसान, सर पर गांधी टोपी पतला पाजामा सूती शर्ट और बगल में काला फटा सा बैग जिसमें उनके कपड़े और चादर यानि की यात्रा का पूरा सामान रखे हैं।
जब मुझे दस बजे मिले तो बस चाय पिये थे बोले इसी यात्रा के आसपास रुक जाता हूं जो मिलता है खाता हूं मगर अपने खर्चे पर यात्रा पूरी करूंगा। मगर यात्रा क्यों? अरे हम किसानों की हालत बहुत खराब है, आमदनी नहीं बढ़ रही, खर्चे बढ़ गये। जब गांव में मैंने ये बात बताई कि राहुल किसानों की बात करता है और वो यात्रा कर रहा है, तो गांव वालों ने चंदा कर मुझे तीन हजार रुपये दिये और मैं आ गया। लक्ष्मण यहीं नहीं रुके, गहरी बात कह गये, भारत के अच्छे भविष्य के लिये ये यात्रा जरूरी है।
कांग्रेस के कार्यकर्ताओ के अलावा बहुत सारे सामाजिक संगठनों के लोग भी इस यात्रा में हैं जो कुछ-कुछ दूरी तक यात्रा कर रहे हैं। ये किसान संगठन के लोग हैं तो कुछ आदिवासी संगठनों के लोग हैं और सिविल सोसायटी के लोग तो हैं ही मगर लक्ष्मण जैसे लोग भी कम नहीं है। जो बस यात्रा में इसलिये जुड़ गये कि उनको राहुल का मकसद जम गया।
बड़वानी के मेहगांव के हाकम धनारे भी उनमें से हैं जो यूं ही हमसे टकरा गये। बात की तो बहुत सारी बातें कह गये। देश की चिंता रोज गांव की चौपाल पर करते थे, एक दिन किसी ने राहुल की पदयात्रा के बारे में बताया तो क्षे़त्र के विधायक से संपर्क किया और जुड़ गये यात्रा से।
साधारण कद काठी के हाकम किसान हैं और दूसरे किसानों की तरह परेशान हैं। खाद बीज पेस्टीसाइड के बढ़ते दाम और फसलों की गिरती कीमतों के कुचक्र से कब निकलेंगे यही सोच कर चिंतित रहते हैं, मगर कहते हैं इस यात्रा का असर होगा जरूर। जमा पूंजी के नाम पर दो हजार रुपये हैं और यात्रा में जहां आम कार्यकर्ता रुकते है वहीं रुकते हैं और सुबह फिर चल पड़ते है।
भारत जोड़ो यात्रा दूर से देखने में राहुल और उनकी पार्टी की राजनीतिक यात्रा दिखती है मगर इस यात्रा में कई सारे यात्री चल रहे हैं जिनकी अपनी यात्राएं हैं और अपने-अपने मकसद हैं। ठीक उसी तरह जैसे बड़ी नदी के साथ अनेक सहायक नदियां भी बहती हैं। यात्राएं लोगों को जोड़ती और यात्रियों को मजबूत बनाती हैं इस यात्रा को राजनीतिक नजरिये से हटकर ऐसे भी देखा जा सकता है।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)
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