राकेश अचल
डॉक्टर जूनियर हो या सीनियर दुनिया में भगवान का दूसरा रूप माना जाता है, लेकिन सोचिये क्या भगवान भी कभी हड़ताल पर जा सकता है, या इस्तीफा दे सकता है? तो जवाब है ‘हाँ’ कम से कम भारत में तो भगवान का दूसरा रूप माने जाने वाले डॉक्टर हड़ताल कर सकते हैं। मध्यप्रदेश में जूनियर भगवान यानि जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर हैं, वे हाईकोर्ट के निर्देश को भी मानने के लिए तैयार नहीं
पूरे भारत की तरह मध्यप्रदेश भी कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में हैं। आधिकारिक रूप से मध्यप्रदेश में कोरोना से 8207 लोग मारे जा चुके हैं, 14186 सक्रिय मरीज हैं और अब तक 782945 लोग संक्रमण के शिकार हो चुके हैं, लेकिन भगवान बने डॉक्टरों ने तमाम आरोपों, प्रत्यारोपों के बीच 760552 लोगों को कोरोना के चंगुल से बाहर निकालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा की है। वरिष्ठ चिकित्सकों के अलावा इस संक्रमणकाल में प्राणरक्षा के अभियान में शामिल प्रदेश के तीन हजार जूनियर डॉक्टरों ने भी आपदा को अवसर मानकर हड़ताल शुरू कर दी है।
कोरोना और ब्लैक फंगस के कहर के बीच एमपी में जूनियर डॉक्टर तीन दिन से हड़ताल पर थे। करीब तीन हजार डॉक्टरों ने अपनी मांगों को लेकर काम से किनारा कर लिया था। जूनियर डॉक्टर सरकार से मुख्य तौर पर मानदेय बढ़ाने और कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर उन्हें और उनके परिवार के लिए मुफ्त इलाज की मांग कर रहे हैं। प्रदेश सरकार ने जूनियर डॉक्टरों को हड़ताल जारी रखने पर सख्त कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल को अवैधानिक करार दिया था। हाईकोर्ट ने जूडा को निर्देश दिया था कि वो 24 घंटे के भीतर काम पर लौटें। ऐसा न होने पर सरकार को जूडा के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए गए थे।
काबिलेगौर है कि प्रदेश सरकार जूडा की अधिकांश मांगों को मान चुकी है। जूडा की मांग थी कि जूनियर डॉक्टर्स और उनके परिवार के सदस्य अगर कोरोना पीड़ित होते हैं तो उन्हें निशुल्क इलाज की सुविधा प्रदान की जाए जिसे सरकार ने मान लिया था। सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में बताया कि जूडा की अधिकांश मांगें मान ली गई हैं लेकिन जूनियर डॉक्टरों ने न हाईकोर्ट की सुनी और न सरकार की, अब सरकार के सामने दुविधा है कि वो क्या करे? सरकार हड़ताली डॉक्टरों को बर्खास्त कर सकती है, लेकिन सवाल ये है कि फिर नए डाकटर कहाँ से आएंगे? रातों-रात तो डॉक्टरों की भर्ती हो नहीं सकती, फिर डॉक्टर हैं ही कहाँ? पहले से प्रदेश और देश में डॉक्टरों की भारी कमी है।
जूनियर भगवानों की मांगों से हमारा कोई विरोध नहीं है। हमारा विरोध हड़ताल से भी नहीं है, हमें यानि आम जनता को तकलीफ इस बात की है कि जूनियर भगवानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए जो समय चुना है वो गलत है। लगता है कि जूनियर डॉक्टर हड़ताल नहीं बल्कि सरकार को ब्लेकमेल कर रहे हैं। कायदे से डॉक्टरी का पेशा ऐसा है जिसमें हड़ताल की कोई सुविधा होना ही नहीं चाहिए। हड़ताल एक मौलिक अधिकार है, संवैधानिक अधिकार नहीं। कुछ सेवाएं ऐसी हैं जिनमें हड़ताल कर दी जाये तो मनुष्यता खतरे में पड़ सकती है।
आपको याद होगा कि हमारे सरकारी अस्पतालों में पहले से कामबाढ़ है, कोरोना और ब्लैक फंगस जैसे असाध्य रोगों ने सरकारी अस्पतालों की कमर तोड़ रखी है। ऊपर से जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर हैं। इस आपात स्थिति में वरिष्ठ डॉक्टर कितने दिन स्थिति को सम्हाल सकते हैं? मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले दिनों ही प्रदेश में ‘किल कोरोना’ नाम का अभियान चलाया था, इस अभियान की रीढ़ में ये भगवान ही हैं लेकिन ये तो हड़ताल पर चले गए। अब अभियान का दम तोड़ना तय है। विषम परिस्थिति में सब जानते हैं कि सरकार ही झुकेगी, भगवान नहीं। वे तो जहां चाहेंगे वहां जाकर अपनी रोजी कमा लेंगे लेकिन सरकार उनका विकल्प रातों-रात खड़ा नहीं कर सकती।
मानवता का तकाजा है कि जूनियर भगवान तत्काल अपने काम पर लौटें और सरकार पर दबाव बनाने के लिए जापानी तरीके इस्तेमाल करें ताकि न तो मनुष्यता का नुक्सान हो और न उनके गौरवशाली पेशे पर आंच आये। कोई माने या न माने आज भी देश-दुनिया में (डॉक्टरों के साथ अभद्रता और मारपीट की कुछ घटनाओं को छोड़कर) डॉक्टरों को भगवान का दूसरा रूप ही माना जाता है, लेकिन भगवान अपने इस रूप-स्वरूप का बेजा फायदा उठाने लगे हैं। निजी क्षेत्र में तो उन्होंने लूट मचा रखी है, सरकारी क्षेत्र में भी उन्हीं की दादागीरी चलती है। फिर भी वे हड़ताल का अमोघ अस्त्र चलाने से बाज नहीं आते।
मध्यप्रदेश सरकार जैसे भी हो इन जूनियर भगवानों को मनाये अन्यथा ये आग प्रदेश से बाहर भी फ़ैल सकती है। क्योंकि आपदा में अवसर सभी को नजर आ रहा है। मेरा सुझाव है कि हालात मामूल होने के बाद ऐसी कोई व्यवस्था अवश्य की जाये जहाँ पहले तो डॉक्टरों को हड़ताल की सुविधा ही न दी जाये और अगर ऐसी कोई सूरत बने तो निजी क्षेत्र में काम करने वाले तमाम डॉक्टरों को क़ानून के जरिये सरकारी अस्पतालों में काम करने के लिए बाध्य किया जाये। हालाँकि ऐसा कर पाना कठिन है, लेकिन कोशिश करने में क्या जाता है?(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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