चुनाव जिताने वाला ‘बंटाधार’असंसदीय निकला

गिरीश उपाध्‍याय

यह मामला कुछ कुछ वैसा ही है जैसे आप पोल वॉल्‍ट में स्‍वर्ण पदक जीत लें और जीतने के बाद आपसे कहा जाए कि उतना ऊंचा कूदने के लिए आपने जिस बांस का इस्‍तेमाल किया वह बांस मान्‍य ही नहीं है। इन दिनों मध्‍यप्रदेश की राजनीति में एक मुहावरेदार शब्‍द की गति ऐसे बांस जैसी ही हो गई है और वो शब्‍द है ‘बंटाधार’ जिसे कुछ लोग बंटाढार भी कहते हैं। दरअसल मध्‍यप्रदेश विधानसभा ने हाल ही में एक किताब छपवाई है जिसमें उन शब्‍दों की सूची है जो असंसदीय यानी विधानसभा की कार्यवाही के दौरान उपयोग किए जाने लायक नहीं माने गए हैं। वैसे तो ऐसे शब्‍दों की संख्‍या 1161 है लेकिन उनमें से कुछ शब्‍दों को असंसदीय माने जाने को लेकर राजनीति दलों में ही विवाद की स्थिति पैदा हो गई है।

और इस सूची में सबसे चर्चित शब्‍द है बंटाधार। वैसे बंटाधार होना हिन्‍दी का एक बहुत प्रचलित और आम मुहावरा है जिसका अर्थ है सब कुछ चौपट हो जाना, लेकिन मध्‍यप्रदेश की राजनीति में इस शब्‍द के प्रवेश की कथा बहुत दिलचस्‍प है। बात राज्‍य में 2003 में हुए विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले की है, जब इस शब्‍द ने कांग्रेस के राज को चौपट करते हुए भाजपा के राज की गोटी फिट करवा दी थी।

हुआ यूं था कि 2003 के चुनाव से पहले दो टर्म यानी 1993 से 2003तक लगातार दस साल दिग्विजयसिंह के नेतृत्‍व में कांग्रेस की सरकार रही थी। दिग्विजयसिंह की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी फायर ब्रांड नेता उमा भारती को जमीन तैयार करने की कमान सौंपी थी। उमा भारती ने दिग्विजयसिंह सरकार की असफलताओं को जनता तक ले जाने की कार्ययोजना तैयार करने का काम अनिल माधव दवे को सौंपा। वही अनिल माधव दवे जो बाद में मोदी सरकार में पर्यावरण मंत्री बने थे।

अनिल माधव दवे ने चुनाव अभियान की रूपरेखा तैयार करने के लिए जावली नाम से एक सेल बनाया और एक टीम खड़ी की। उस टीम से एक दिन यूं ही चर्चा में उन्‍होंने पूछा कि यदि दिग्विजयसिंह को ‘मिस्‍टर बंटाधार’ के नाम से प्रचारित किया जाए तो कैसा रहेगा?टीम के सदस्‍यों में से ज्‍यादातर की राय थी कि ऐसा किया जा सकता है। खुद अनिल माधव दवे का मानना था कि दिग्विजयसिंह के राज में जिस तरह प्रदेश की व्‍यवस्‍थाएं चौपट हुई हैं उसके चलते उन पर यह जुमला बहुत फिट बैठेगा। और हुआ भी वही… दिग्विजयसिंह के खिलाफ यह शब्‍द चल निकला और उन्‍हें इसका खमियाजा सत्‍ता खोकर उठाना पड़ा।

2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पराजित हुई और उमा भारती के नेतृत्‍व में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। तब से अब तक यह ‘बंटाधार’ शब्‍द मध्‍यप्रदेश की राजनीति के केंद्र में बना हुआ है। चूंकि दिग्विजयसिंह मध्‍यप्रदेश की राजनीति के केंद्र में रहते आए हैं, इसलिए इस शब्‍द की राजनीतिक चमक भी बनी रही और भाजपा व कांग्रेस में इस शब्‍द को लेकर एक दूसरे को चमकाने व चमकने का खेल चलता रहा। लेकिन अब करीब 18 साल बाद राज्‍य की विधानसभा ने सदन में नहीं बोलने लायक शब्‍दों यानी असंसदीय शब्‍दों का जो ब्‍योरा तैयार करवाया है उसमें यह ‘बंटाधार’ शब्‍द भी शामिल है। विधानसभा अध्‍यक्ष गिरीश गौतम ने 8 अगस्‍त को भोपाल में ऐसे असंसदीय शब्‍दों के ब्‍योरे वाली किताब जारी की। इस मौके पर मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ भी मौजूद थे।

विधानसभा अध्‍यक्ष का कहना है कि संसद या विधानसभा को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है तो इस मंदिर की गरिमा भी बनी रहनी चाहिए। जनता की आस्‍था इस मंदिर के प्रति बनी रहे यह हम सभी की जिम्‍मेदारी है। हम सभी यह प्रयास करें कि आवेश, गुस्‍से या किसी भी परिस्थिति में, किसी भी सदस्‍य के प्रति ऐसे शब्‍द का प्रयोग न हो जो असंसदीय हो। विधानसभा द्वारा तैयार कराई गई किताब में 1954 से लेकर 2021 तक की अवधि के ऐसे शब्‍द छांटे गए हैं जिन्‍हें सदन की कार्यवाही से विलोपित कर दिया गया था।

लेकिन बात उस समय बिगड़ी जब मामला इस किताब के कंटेट और उसे तैयार करने के पीछे के उद्देश्‍य या भावना से हटकर फिर से राजनीति पर जा पहुंचा। किताब के विमोचन के अगले ही दिन से शुरू हुए विधानसभा के पावस सत्र के पहले ही दिन भाजपा विधायक रामेश्‍वर शर्मा ने अध्‍यक्ष गिरीश गौतम को चिट्ठी लिख डाली कि ‘मिस्‍टर बंटाधार’और ‘नक्‍सली’जैसे शब्‍दों को असंसदीय शब्‍दों की सूची से निकालकर उन्‍हें उपयोग के लिए बहाल किया जाए।

हालांकि अध्‍यक्ष ने शर्मा को जवाब देते हुए कहा है कि पुस्‍तक के माध्‍यम से न तो किसी शब्‍द का चयन किया गया है और न ही उसे निरस्‍त किया गया है। यह सिर्फ उन शब्‍दों या वाक्‍यांशों का संकलन मात्र है जिन्‍हें तत्‍कालीन अध्‍यक्षों ने समय समय पर विधानसभा की कार्यवाही से, अनुचित मानते हुए, विलोपित किया है। उधर जब ‘मिस्‍टर बंटाधार’को बहाल करने की मांग उठी तो कांग्रेस कहां पीछे रहने वाली थी। पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्‍ठ विधायक सज्‍जनसिंह वर्मा ने भी तुरंत मांग कर डाली कि ‘मामू’और ‘चड्ढीवाला’को भी असंसदीय कहने पर पुनर्विचार होना चाहिए। उल्‍लेखनीय है कि दिग्विजयसिंह को ‘मिस्‍टर बंटाधार’कहे जाने के जवाब में कांग्रेस शिवराजसिंह चौहान को ‘मामू’का संबोधन देती रही है।

लेकिन शब्‍दों की इस राजनीतिक महाभारत में ऐसा लगता है कि भाजपा के शब्‍द तरकश से एक बहुत मारक तीर छिन गया है। उसे बाकी शब्‍दों पर उतना दुख नहीं है जितना ‘मिस्‍टर बंटाधार’का उपयोग अब सदन में न कर पाने का है। भाजपा के लिए मध्‍यप्रदेश में आज भी दिग्विजयसिंह सबसे बड़ा टारगेट हैं और वह मानती है कि ‘मिस्‍टर बंटाधार’ऐसा तीर है जिससे दिग्विजयसिंह को आज भी घायल किया जा सकता है। ऐसे में यह तीर छिन जाने से भाजपा का परेशान होना स्‍वाभाविक है।

वैसे लोकसभा और विधानसभाओं में कई शब्‍दों, मुहावरों आदि को अससंदीय घोषित करने या उन्‍हें सदन की कार्यवाही से विलोपित करने का मामला नया नहीं है। ऐसा हमेशा से होता रहा है। लेकिन आमतौर पर यह उस शब्‍द के इस्‍तेमाल किए जाने के संदर्भ और उस शब्‍द के जरिये किसी व्‍यक्ति को इंगित करने या लांछित करने की स्थिति में ही होता है। अध्‍यक्ष यदि समझते हैं कि वह शब्‍द या वाक्‍यांश जिस भाव से कहा गया है वह उचित नहीं है तो वे उस शब्‍द या वाक्‍यांश को कार्यवाही से विलोपित कर देते हैं।

मध्‍यप्रदेश में शब्‍दों और मुहावरों की यह संसदीय लड़ाई किस अंजाम तक पहुंचती है यह देखना दिलचस्‍प होगा। लेकिन उससे पहले आपकी दिलचस्‍पी के लिए मैं कुछ ऐसे शब्‍द और मुहावरे यहां बताकर जा रहा हूं जिन्‍हें मध्‍यप्रदेश विधानसभा की ताजा किताब में ‘असंसदीय’शब्‍दों की सूची में माना गया है। ये शब्‍द हैं- झूठ, झूठा, मूर्ख, बेशर्म, बेईमान, निकम्‍मा, चोर, तानाशाह, पागल, भ्रष्‍ट, शैतान, लफंगा, हरामखोर, बदमाश, उचक्‍का, ढोंगी, पाखंडी, नमकहराम, खलनायक, धोखेबाज, भ्रष्‍टाचारी, उल्‍लू, निठल्‍ला, चमचा, चाटुकार, गुलाम, गोबर गणेश, नौटंकी, घोटाला, दादागिरी… और हां ‘माई का लाल’ व ‘फर्जी पत्रकार’ भी इसी सूची में शामिल हैं… वहीं चोर की दाढ़ी में तिनका, चुल्‍लू भर पानी में डूबना, घडि़याली आंसू, छाती पर मूंग दलना और अलीबाबा चालीस चोर जैसे मुहावरे भी…

जरा गौर करिये इन शब्‍दों व मुहवरों पर और सोचिये कि यदि सदन में ये शब्‍द न बोले जाएं तो सदन का माहौल कैसा होगा साथ ही यह भी सोचिये कि क्‍या इन शब्‍दों के बगैर विरोध या नाराजी, असहमति या आपत्ति को दर्ज किया जा सकता है…??(मध्‍यमत)
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