अजय बोकिल
एक अच्छे सुगम संगीत श्रोता की तरह बात करूं तो एसपी बालासुब्रमण्यम के रूप में बॉलीवुड में गूंजने वाली दक्षिण भारत की वो पहली आवाज थी, जो न सिर्फ रेडियो बल्कि टीवी के माध्यम से भी हमारे दिलों तक पैठ गई थी। ऐसा स्वर, जिसमें बालू रेत की गंध और अनगढ़ घरौंदे सा आत्मीय तत्व था। इसी जज्बे में पगा वो गीत था- ‘हम बने, तुम बने एक दूजे के लिए..। एसपी और स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का यह युगल गीत अस्सी के दशक की शुरुआत में जवानी में कदम रखने वालों के लिए हलफनामे की तरह एक सामूहिक प्रेमगीत बन गया था।
सिने संगीत का ये वो संक्रमण काल था, जब मुकेश और मोहम्मद रफी के रूप में दो स्वर्गिक आवाजें इस फानी दुनिया से रुखसत हो चुकी थीं, किशोर कुमार को लोग खूब सुन चुके थे और किसी नए अंदाज वाले स्वर का इंतजार था। तभी एसपी बालासुब्रमण्यम ने, जो दक्षिण भारत की फिल्मों में डेढ़ दशक से गा रहे थे, हिंदी सिने जगत में अपनी एकदम अलग बु्नावट और खनकदार आवाज के साथ दस्तक देकर सभी को चौंका दिया।
तब वो अभिनेता कमल हासन की आवाज बनकर उभरे थे तो बाद में उन्हें सलमान खान की आवाज बनाकर पेश किया गया। एसपी बाला सुब्रमण्यम को संगीत की विरासत अपने पिता से मिली थी, जो तेलुगू ‘हरिकथा’ गायक थे। यह संगीतमय कीर्तन-प्रवचन की लोक विधा है। भक्ति संगीत के इसी बीज से भावी महान पार्श्वगायक एसपी बाला सुब्रमण्यम (जिन्हें एसपीबी या बालू भी कहते हैं) का उदय हुआ। एसपीबी की गायकी का खजाना बहुत बड़ा है। उन्होंने हिंदी सहित 16 भाषाओं में 40 हजार से ज्यादा गाने गाए और सभी में जबर्दस्त लोकप्रियता अर्जित की। भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से नवाजा।
बॉलीवुड में एसपीबी की एंट्री इतनी धमाकेदार थी कि पहली ही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ में पार्श्वगायन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। निर्माता के.बालाचंद्र की इस फिल्म में एक अलग तरह की मोरपंखी प्रेम कथा थी। इसमें संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का था। कहते हैं कि लक्ष्मी-प्यारे एसपीबी की आवाज लेने को लेकर बहुत उत्सुक नहीं थे, लेकिन निर्माता के आग्रह पर उन्होंने एसपी को मौका दिया।
यूं हिंदी सिने पार्श्वगायन की दुनिया को कई गैर हिंदी भाषियों ने सजाया-संवारा है, लेकिन इसके पहले सुरों की दुनिया में दक्षिण भारतीय स्वर बहुत ज्यादा सफल नहीं रहे थे। खासकर पुरुष स्वर। लेकिन सत्तर के दशक में सुरों के सांस्कृतिक समन्वय की यह तस्वीर बदलने लगी। इसी दौर में बॉलीवुड में दक्षिण भारत से आए दो महान गायकों ने अपनी अलग मौजूदगी दर्ज कराई। याद रहे सिने संगीत का ये वो सुरीला दौर था, जब कान, आंख की भूमिका भी निभाया करते थे। संगीत रिदम से ज्यादा किसी अगरबत्ती की खुशबू की माफिक तन-मन में रचने वाला हुआ करता था।
दक्षिण के कर्नाटक संगीत में पगी ऐसी पहली आवाज केरल के महान गायक केजे येसुदास की थी। मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे जैसे दिग्गज प्ले बैक सिंगर्स के उस दौर में किसी नए गायक के लिए अपनी अलग पहचान बनाना अपने आरंभिक मैच में ही सेंचुरी ठोक देने जैसा था। 1976 में आई अमोल पालेकर-विद्या सिन्हा की मर्मस्पर्शी फिल्म ‘छोटी सी बात’ में दोनों की प्यार भरी छेड़छाड़ से भरे गीत ‘जानेमन जानेमन तेरे दो नयन, चोरी-चोरी ले गए देखो मेरा मन..’ ने उस समय प्रेम को प्यार के प्रचलित फार्मेट ‘किताब में रखे गुलाब के फूल’ से बाहर निकाल कर उसे सार्वजनिक इजहार का रूप दे दिया था। यानी ‘दिल की चोरी’ का यह सुरीला कबूलनामा था। उसके बाद तो येसुदास अमोल पालेकर की ही आवाज बन गए।
नौजवान दिलों की यह शालीन छेड़छाड़ 6 साल बाद आए गीत ‘हम बने, तुम बने एक दूजे के लिए’ के हलफिया उद्घोष में तब्दील हो गई। प्यार का इजहार ‘कैसे कहूं..’ के मध्यमवर्गीय संकोच से निकलकर किसी समुद्र तट पर दो प्रेमियों के उन्मुक्त आलिंगन और किसी संकल्पबद्ध चहलकदमी में तब्दील हो गया था। इस बार आवाज थी- एसपीबी की और चेहरा था कमल हासन का। जहां फिल्म ‘छोटी सी बात’ में एक ही मिडिल क्लास संस्कृति के सपनों में जीने वाले ऐसे दो जवां दिलों का प्रेम था, जो जिंदगी की जद्दोजहद के साथ एक हो जाना चाहते थे, वहीं फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ में दो अलग-अलग भाषा बोलने और भिन्न संस्कृतियों के युवा प्रेमियों के बीच सिरज रहे प्रेम का अनूठा अंकुरण था।
बेशक वक्त बदल गया था। ‘गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा’ जैसी प्रेम की परोक्ष अभिव्यक्ति के बजाए अब नायक सीधे जमीन पर अपनी प्रेमिका नाम लिखकर उसे खुला आह्वान कर रहा था- ‘कम फास्ट कम फास्ट, लेट द होल वर्ल्ड नो, वी आर मेड फॉर ईच अदर।‘ यह प्यार की दबंगई थी तो भारतीय संस्कृति में अंग्रेजी की नई और दूरगामी घुसपैठ का ऐलान भी था। कहना न होगा कि जिसे कुछ लोग ‘हिंग्लिश’ कहते हैं, वही आज के फिल्म संगीत और बॉलीवुड की भाषा/अंग बन चुकी है।
बेशक गायन की विविधता, गीतों की संख्या, सम्मानों और उम्र में भी येसुदास, एसपीबी से कहीं आगे हैं (येसु ने कई भाषाओं में 80 हजार से अधिक गाने गाए हैं) लेकिन बॉलीवुड में येसु का स्वर अमोल पालेकर के मध्यमवर्गीय मासूम चेहरे में अटक गया सा लगता है। जबकि एसपीबी कमल हासन के पजेसिव प्रेम से आगे जाकर सलमान खान की लड़कैंया मोहब्बत का प्रतीक भी बनते हैं। हालांकि बाद में सलमान ने खुद उनकी आवाज को अलविदा कह दिया, बल्कि यूं कहें कि पार्श्वगायक की आवाज के साथ नायक के चेहरे को आईडेंटीफाई करने का युग बीत चुका था।
वरना एक वो भी जमाना था, जब हीरो के हिसाब से गायक चुना जाता था। इसीलिए महान पार्श्वगायक मुकेश का असमय निधन हुआ तो बॉलीवुड के शो-मैन राजकपूर ने इन शब्दों में श्रद्धांजलि दी थी- ‘मेरी तो आवाज ही चली गई।‘ अब जमाना बदल चुका है। आजकल फिल्मों में गीत होते ही क्यों हैं, यह एक अनुत्तरित-सा सवाल है। वैसे भी अब फिल्मों में कोई किसी के लिए भी गा देता है। पार्श्व गायक के स्वर और नायक के चरित्र में रिश्ता कट-पेस्ट का ज्यादा लगता है। पार्श्व गायक को शायद ही पता होता है कि वह किसके लिए गा रहा है, उसकी अदाएं क्या हैं, उसका मैनरिज्म क्या है, भूमिका का मूड क्या है। गाने आज भी बन रहे हैं, फिल्माए जा रहे हैं, लेकिन उनमें सहजता कम ही दिखाई देती है।
साउथ के इन दो समकालीन गायकों (दोनों ने कई गीत साथ में भी गाए हैं) एसपीबी और येसुदास के स्वरों की तुलना करें तो उनमे दक्षिण भारतीय महक के साथ एक दैवी स्पर्श और आध्यात्मिक टच भी झलकता है। ऐसा स्वर जो सुनने के बाद कानों के साथ आत्मा को भी तृप्त करता है। दोनों ने कई भक्ति गीत भी गाए हैं। दोनों स्वयं को संगीत का विद्यार्थी मानते थे। अलबत्ता (हिंदी गीतों के हिसाब से) येसु दास के मुकाबले एसपीबी में चरित्र के हिसाब से आवाज में वेरिएशन लाने की असाधारण प्रतिभा थी। ऐसा कौशल हमे स्व. मोहम्मद रफी के स्वर में मिलता है, जिसमे नवरसों का वास था। शायद यही कारण था कि एसपी भी मोहम्मद रफी को अपना आदर्श मानते थे।
एसपीबी ने अपने 74 साल के सांगीतिक सफर में कई ऊंचाइयों को छुआ। यश और धन अर्जित किया। लेकिन अंतिम समय में कोरोना प्रकोप के कारण उन्हीं फेफड़ों ने उनका साथ छोड़ दिया, जिनकी वजह से किसी गायक के कंठ को ऊर्जा और ताकत मिलती है। हिंदी में एसपीबी ने यूं तो कम ही गाया, लेकिन उनके दैवी स्वर की वो फाइल मन के कोने हमेशा सेव रहेगी, बावजूद इस सवालिया टाइटल सांग के कि ‘हम आपके हैं कौन..?