मप्र उपचुनाव :सियासी तस्वीर बदलने से रोचक हुई बदनावर की लड़ाई

बदनावर उपचुनाव

डॉ. अजय खेमरिया

वर्द्धमान नगर से बदनावर में तब्दील धार जिले का यह विधानसभा क्षेत्र पश्चिमी मप्र का खास इलाका है। जनसंघ और बीजेपी के आरंभिक प्रभाव वाले इस विधानसभा क्षेत्र में 1957 के बाद पहली बार उपचुनाव होने जा रहा है। पाटीदार औऱ राजपूत समाज के प्रभाव वाली इस विधानसभा में 7 बार बीजेपी को जीत मिली है। पिछले 30 साल से जिस दत्तीगांव परिवार से बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठन राजनीतिक लड़ाई लड़ते रहे हैं, अब वही दत्तीगांव परिवार बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में उपचुनाव में खड़ा होगा।

दिल्ली के स्टीफंस कॉलेज से स्नातक राजवर्धन सिंह ने सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस से त्यागपत्र दिया है, लेकिन उनकी नाराजगी केवल सिंधिया की अनदेखी ही नहीं है बल्कि मंत्री पद पर उनके दावे को दरकिनार कर धार जिले से दो आदिवासी मंत्री बनाया जाना भी था। जमुनादेवी के भतीजे उमंग सिंगार और दिग्विजयसिंह के नजदीकी सुरेंद्रसिंह बघेल ‘हनी’ कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन तीसरी बार के विधायक राज्यवर्धन सिंह अपनी लंबी राजनीतिक विरासत के बावजूद मंत्री नहीं बनाये गए।

असल में दत्तीगांव के पिता प्रेमसिंह भी कांग्रेस से 1990 में विधायक रह चुके हैं और दिग्विजयसिंह से उनकी सियासी अदावत पुरानी है। 1998 में दिग्विजयसिंह ने राज्यवर्धन को टिकट नहीं दी तो वे निर्दलीय लड़कर 30 हजार से ज्यादा वोट ले गए। इससे कांग्रेस यहां 700 वोट से हार गई। दिग्विजयसिंह की नाराजगी को इसने और बढ़ा दिया।

दत्तीगांव परिवार अस्सी के दशक से ही माधवराव सिंधिया से जुड़ा हुआ है। हमेशा सिंधिया के वीटो से ही उनका टिकट फायनल होता रहा है। 2003 में उमा भारती की प्रचंड आंधी में राज्यवर्धन एमएलए बने थे 2008 और 2018 में भी वे जीतने में सफल रहे। बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर राज्यवर्धन का चुनाव में जनता और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच जाना राजनीतिक पुनर्जन्म जैसा ही घटनाक्रम है।

हालांकि क्षेत्र में उनकी गहरी पकड़ है और लगभग तीन चौथाई कांग्रेस पदाधिकारी जिनमें 2019 के लोकसभा प्रत्याशी दिनेश गरवाल भी शामिल है, पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। लेकिन 30 साल से चली आ रही इस दो ध्रुवीय राजनीति का समेकन यहां इतना आसान भी नहीं है। बीजेपी के पूर्व विधायक भंवरसिंह शेखावत और पिछला चुनाव निर्दलीय लड़कर 30 हजार वोट लाने वाले संघ से जुड़े राजेश अग्रवाल की खुली नाराजगी को बीजेपी हल्के से नहीं ले रही है।

कांग्रेस भी राजेश अग्रवाल पर दांव लगाने की जुगत में है या वह किसी पाटीदार को भी उतार सकती है, जो यहां परम्परागत रूप से बीजेपी के साथ रहते हैं। इसी समाज से खेमराज पाटीदार 1998 में बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज कर चुके हैं। कुलदीप बुंदेला औऱ मनोज गौतम भी इस सीट पर कांग्रेस टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। मनोज के भाई बालमुकुंद शराब के बड़े कारोबारी और कांग्रेस के जिलाध्यक्ष हैं, वहीं कुलदीप के पिता भी अर्जुनसिंह मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव रहे हैं।

राज्यवर्धन के विरुद्ध कांग्रेस पाटीदार, आदिवासी औऱ अन्य सवर्ण पिछड़ी जातियों को लामबंद करने की कोशिशें करेगी। बदनावर में करीब 60 हजार से अधिक वोट आदिवासियों के हैं जिनमें भील सर्वाधिक हैं, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस के वोटर माने जाते हैं। दत्तीगांव परिवार अपने राजपूत और इन्हीं आदिवासियों की दम पर यहां जीतता रहा है।

धार जिले में चूंकि बदनावर और धार सीट ही अनारक्षित हैं इसलिए दोनों दलों के सभी नेताओं की दिलचस्पी इन्हीं सीटों पर रहती है। धार में तो पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा लगातार जीत रही हैं इसलिये बदनावर में ही सामान्य जाति के लोग ज्यादा सक्रिय रहते हैं।

इस जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन 2018 में बेहतरीन इसलिए भी रहा क्योंकि डॉ. हीरालाल अलावा के संगठन जयस ने उसे समर्थन दिया था और डॉ. अलावा कुक्षी सीट से कांग्रेस विधायक हैं। एक और राजनीतिक पेंच यहां उमंग सिंगार औऱ दिग्विजय के झगड़े का भी है। कमलनाथ के वन मंत्री रहे उमंग ने कुछ समय पहले दिग्विजयसिंह पर बहुत गंभीर आरोप लगाकर सनसनी पैदा कर दी थी। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उमंग का समर्थन कर उनके आरोपों को हवा दी थी।

उमंग के आरोपों में दिग्विजयसिंह को माफिया तक कहा गया था। यहां समझना होगा कि उमंग को सिंधिया ने ग्वालियर जिले का प्रभारी मंत्री भी बनवाया था। यानी दिग्विजयसिंह अगर अपनी पसंद का उम्मीदवार मनोज गौतम या उनके भाई बालमुकुंद को टिकट दिलाते हैं तो संभव है उमंग वही करें जो सिंधिया चाहते हैं।

दूसरी तरफ उमंग जो कि राहुल से सीधे जुड़े हैं और अभी झारखंड के प्रभारी सचिव भी रहे हैं की पसन्द का उम्मीदवार उतारा गया तो दूसरे पूर्व मंत्री हनी बघेल नाराज रहें। यानी बदनावर में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों की अंदरूनी लड़ाई बेहद पेचीदा है। चूंकि यहाँ संघ का काम भी बहुत गहरे तक है और राज्यवर्धन अपनी मिलनसारिता से बीजेपी कैडर को मनाने में जुटे हैं, इसलिए उनके लिए माहौल बन सकता है।

यह भी संभव है कि राज्यवर्धन को मंत्री बना दिया जाए, तब पहली बार बदनावर से मंत्री को हराने के लिए फ्लोटिंग वोटर वोट न करें। फिलहाल दोनों दल खुद के घर संभालने में लगे हैं।

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टीम मध्‍यमत

 

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