बाबा को मिलेंगी दुकानें और हमें- बाबाजी का ठुल्‍लू!

कई बार हमारा ध्‍यान उन बारीक चीजों की तरफ नहीं जाता जो सरकारी या राजनीतिक तंत्र के अंदर चलती रहती हैं। सरकार के ताने बाने में बहुत महीन रेशों की तरह मौजूद रहने वाले धागे कब मोटी रस्‍सी बनकर जनता के गले में फंस जाएं कोई नहीं कह सकता। ऐसा ही मामला मध्‍यप्रदेश की राशन दुकानों और अन्‍य सहकारी संस्‍थाओं से बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के उत्‍पाद बेचने का है।

सरकार में रामदेव को उपकृत करने के लिए अंदर ही अंदर कुछ खिचड़ी पक रही है, इसका खुलासा मैंने साल भर पहले अपने कॉलम में किया था। 12 अगस्‍त 2015 के उस आलेख का शीर्षक ही यही था कि ‘’राशन दुकानें रामदेव को देने की तैयारी?’’ आज साल भर पहले लिखी गई उसी बात को दोहराने का वक्‍त है। मैंने लिखा था-

‘’मध्‍यप्रदेश में उचित मूल्‍य दुकानों को मॉडर्न बनाने के नाम पर किए जा रहे प्रयोग से ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में कई विसंगतियां पैदा होने के आसार हैं। सरकार राशन दुकानों पर खाद्य सामग्री के अलावा कई और चीजें बेचने की भी अनुमति देने जा रही है। अभी इन दुकानों पर गेहूं, चावल, शकर, नमक व केरोसीन बेचा जाता है। आने वाले दिनों में यहां और क्‍या क्‍या बेचा जाएगा इसकी सूची तो जारी नहीं की गई है लेकिन सरकार का कहना है कि इसके लिए कई कंपनियों से बात चल रही है।

(तत्‍कालीन) खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री कुंवर विजय शाह के मुताबिक प्रदेश की राशन दुकानें आदर्श दुकान के रूप में विकसित की जाएंगी। यहां उपभोक्ता को रियायती दर पर खाद्यान्न सामग्री के साथ सस्ती दरों पर अन्य वस्तुएँ भी उपलब्ध करवाई जाएंगी। इसके लिए देश की प्रतिष्ठित कंपनियों से बातचीत की जा रही है। हालांकि सरकार की ओर से उन ‘प्रतिष्ठित’ कंपनियों के नामों का खुलासा नहीं किया गया जिनसे चर्चा हो रही है।

ऊपरी तौर पर यह फैसला भले ही ग्रामीणों या राशन दुकानें चलाने वाली संस्‍थाओं के हित में लगता हो लेकिन इसके दूरगामी परिणामों पर विचार किया जाना जरूरी है। सबसे महत्‍वपूर्ण मामला ग्रामीण संस्‍कृति में कॉरपोरेट बाजार की घुसपैठ का है। वैसे भी प्रदेश के आदिवासी और दलित बहुल क्षेत्रों को बाजार बुरी तरह प्रभावित कर चुका है। कई अध्‍ययनों में यह बात सामने आई है कि अब आदिवासियों के बच्‍चे भी परंपरागत रूप से पोषण करने वाला मोटा अनाज या प्राकृतिक खाद्य सामग्री छोड़कर चिप्‍स, कुरकुरे और ऐसी ही अन्‍य सामग्री खा रहे हैं। स्‍थानीय तौर पर बनी यह घटिया सामग्री स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं का कारण बन रही है। इसके चलते कुपोषण की समस्‍या भी गंभीर बनी हुई है।

ऐसे उत्‍पादों की जनजातीय/पिछड़े अंचलों में घुसपैठ ने भीषण गरीबी की मार झेल रहे इन वर्गों के अर्थगणित को भी बदल दिया है। वे ऐसी कई चीजों पर खर्च करने लगे हैं जिसकी उन्‍हें कतई जरूरत नहीं है। आय के सीमित साधन और अनावश्‍यक खर्च उन्‍हें और अधिक कर्जदार बना रहे हैं।

बाजार जिस तरह व्‍यवहार करता है उसे देखते हुए यह तय है कि कोई भी प्रतिष्ठित या अप्रतिष्ठित कंपनी यूं ही गांव में नहीं जाएगी। वह नमक के साथ नमकीन, चाय के साथ चॉकलेट और तेल के साथ शैम्‍पू का पाउच बेचने के फंडे पर काम करेगी। यानी राशन की दुकानों के जरिए गांव मे नया रिटेल खड़ा होगा। परंपरागत ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग आधारित अर्थव्‍यवस्‍था को चोट पहुंचेगी। प्रतिष्ठित कंपनियों की आक्रामक और लुभावनी मार्केटिंग से राशन दुकानों पर आने वाले लोगों में अनावश्‍यक चीजों की लत पैदा होगी। यह लत उनके परिवार का पूरा बजट ही बिगाड़ देगी।

यह देखा जाना चाहिए कि सुविधा देने के नाम पर कहीं सीधे सीधे मध्‍यप्रदेश की 22 हजार से अधिक राशन दुकानों का बना बनाया ढांचा बाजार के हवाले तो नहीं किया जा रहा। जिन कंपनियों को माल बेचने की इजाजत मिलेगी उनकी तो बल्‍ले बल्‍ले होगी। क्‍योंकि निवेश के नाम पर उनको एक धेला भी खर्च नहीं करना पड़ेगा और मुफ्त में इतना बड़ा इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर और बाजार उनके हाथ लग जाएगा।

राशन दुकानों पर अन्‍य सामान बेचने वाली कंपनी कौनसी होगी यह बात अभी परदे में है। लेकिन कई साल पहले राशन दुकानों से खाद्य सामग्री के अलावा भी कुछ जरूरी सामान बेचा जाता था। वह सामान खादी ग्रामोद्योग संस्‍थाओं अथवा कुटीर उद्योग में बनता था। ऐसा ही सामान बाबा रामदेव की कंपनी भी बना रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अतिरिक्‍त सामान उपलब्‍ध कराने के नाम पर इन राशन दुकानों को पतंजलि उत्‍पादों का आउटलेट बना दिया जाए।‘’

साल भर पहले जताई गई हमारी यह आशंका सच निकली है। आज का सवाल इतना ही है कि अपनी राशन या सहकारी दुकानों का इतना बड़ा नेटवर्क बाबा रामदेव को मुहैया कराने के एवज में 5 हजार करोड़ से अधिक के टर्नओवर वाली ‘पतंजलि’ से मध्‍यप्रदेश के खजाने को क्‍या लाभ मिलेगा? बाबा को तो बिना कोई धेला खर्च किए एक साथ इतने सारे आउटलेट मिल जाएंगे, लेकिन हमारे हिस्‍से में कहीं सिर्फ बाबाजी का ठुल्‍लू ही तो नहीं आएगा?  

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