अजय बोकिल
युवा फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत कितने महान कलाकार थे, इस सवाल को अलग रखें तो उनकी दुर्भाग्यपूर्ण आत्महत्या के बाद दो बातें साफ तौर पर उभर कर आ रही हैं। पहला तो ये कि सुशांत बॉलीवुड में भाई भतीजावाद और खेमेबंदी का शिकार हुए, दूसरा सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी की तर्ज पर अब हर मामले में कोर्ट में याचिका दायर करने का चलन बढ़ता जा रहा है।
यह बात इसलिए कि सुशांत खुदकुशी प्रकरण में उनके गृह राज्य बिहार में किसी वकील ने सुशांत की असमय मौत के लिए बॉलीवुड की सेलेब्रिटीज को जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया है। इसकी बुनियाद में वो आरोप हैं, जिनकी वजह से सुशांत का फिल्मी कॅरियर बीच में ही ‘ब्रेक’ हो गया।
इन दोनों मुद्दों पर गंभीर चर्चा इसलिए जरूरी है, क्योंकि अव्वल तो भाई भतीजावाद कहां नहीं है, दूसरे केवल शक के आधार पर सेलेब्रिटीज को कानून के कठघरे में खड़ा करना न्याय दिलाने से ज्यादा सुर्खियां बटोरने की कोशिश लगता है।
युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या निश्चित रूप से किन कारणों से की, इसका पता गहन जांच और परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर ही चल सकता है। क्योंकि उन्होंने जीते जी न तो किसी पर सीधे कोई आरोप लगाया और न ही फांसी का फंदा लगाने से पहले कोई सुसाइड नोट छोड़ा।
अभी तक जो जानकारियां सामने आई हैं, उससे यही संकेत मिलता है कि रजत पट की दुनिया में शुरुआती संघर्ष के बाद सफलता का स्वाद चखने और फिर गुमनामी में जाने के अवसाद में उन्होंने यह कदम उठाया। पिछले तीन माह में बॉलीवुड में यह संभवत: तीसरी आत्महत्या थी, जो असफलता अथवा लॉकडाउन में बेकारी के कारण उपजी हताशा के कारण अंजाम दी गई।
इसके मूल में सपनों के मुरझा जाने की व्यथा भी थी। हालांकि ये संघर्ष प्रवासी मजदूरों के जिंदा रहने या आसरे की तलाश में मीलों मील पैदल चलते चले जाने की तुलना में कुछ भी नहीं है। बावजूद इसके इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कोरोना वॉर के बीच सुशांत सिंह की खुदकुशी को असाधारण और बहुआयामी कवरेज दिया, उससे यही लगा कि इंडस्ट्री में उनके योगदान की तुलना में उनकी आत्महत्या की टीआरपी ज्यादा है।
यह भी साफ हुआ कि सुशांत के सुसाइड की वजह को लेकर बॉलीवुड दो खेमों में बंट गया है। जहां एकतरफ शोकांजलि के बीच छुपी रहस्यमय चुप्पी दिखी, वहीं दूसरी तरफ सुशांत की तरह बॉलीवुड में भाई भतीजावाद और खेमेबंदी का शिकार लोगों की कतार भी दिखी। फिल्म निर्देशक अभिनव सिंह कश्यप ने तो अपनी उपेक्षा के लिए स्टार सलमान खान और उनके परिवार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने सुशांत की खुदकुशी की वजह की जांच कराने की मांग सरकार से की।
अभिनेत्री कंगना रनौत ने वीडियो जारी कर सुशांत की मौत को ‘प्लान्ड मर्डर’ बताया। आरोपों के घेरे में फिल्म निर्माता-निर्देशक करण जौहर भी हैं। हालांकि ये सभी उन पर लगे आरोपों पर चुप्पी साधे हैं, जबकि कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने एक कदम आगे जाकर पूरी फिल्म इंडस्ट्री पर ही सुशांत की ‘हत्या’ करने का आरोप जड़ दिया। पर इसके पीछे दोनों का ‘बिहार कनेक्शन’ ज्यादा लगता है।
हैरानी की बात यह भी है कि जिस महान भारतीय क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी पर बनी बॉयोपिक में सुशांत ने धोनी का किरदार निभाया, वो धोनी भी सुशांत की मौत पर खामोश हैं।
विवादों की अगली कड़ी के रूप में बिहार के मुजफ्फरपुर में एक वकील सुधीर कुमार ओझा ने सुशांत के सुसाइड के लिए करण जौहर, संजय लीला भंसाली, सलमान खान, एकता कपूर सहित 8 लोगों के खिलाफ कोर्ट में केस दर्ज कराया है। ये केस आईपीसी की धारा 306, 109, 504 और 506 के तहत दर्ज कराया गया है। शिकायत में ओझा ने आरोप लगाया है कि सुशांत सिंह राजपूत को करीबन 7 फिल्मों से हटा दिया गया था। उनकी कुछ और फिल्में रिलीज नहीं हुई थीं। सुशांत के आसपास ऐसे हालात पैदा किए गए कि वे सुसाइड जैसा कदम उठाने को मजबूर हुए। इस केस के फाइल होने पर एकता कपूर का रिएक्शन आया कि सुशी (सुशांत) को तो मैंने ही सबसे पहले लांच किया था।
अब बात नेपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद की। यह तो ‘भारतीय संस्कृति’ का अनिवार्य हिस्सा है और सदियों से चला आ रहा है। इस देश में कौन-सा ऐसा क्षेत्र है, जहां नई प्रतिभाओं का बाहें फैलाकर स्वागत किया जाता हो और उन्हें बरगद बनने तक नवांकुरों की तरह सहेजा जाता हो। सत्ता हो, राजनीति हो, खेल हो, प्रशासन हो, कला, विज्ञान, समाज सेवा, धर्म, व्यवसाय यहां तक कि पत्रकारिता में भी नवागतों और स्थापितों के बीच अस्तित्व का संघर्ष शाश्वत है। सिर्फ उसका स्वरूप बदलता रहता है।
इसके बाद भी इन क्षेत्रों में नई पौध आती है और मठाधीश देवदारों के बीच अपनी जगह बनाती है। यह कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। फिल्म उद्योग के अधिकांश (उन स्टार किड्स को छोड़ दें, जो धक्के के बाद भी नहीं चल सके) सितारों ने बुलंदियों तक पहुंचने के लिए कड़ा संघर्ष किया है। चप्पलें घिसी हैं। कई तो बेहद अभावों के बीच से आए हैं।
सुशांत के संघर्ष की कहानियां तो उतनी रोमांचक नहीं हैं। वो तो एक सम्पन्न उच्च मध्यमवर्गीय परिवार से आए थे और फिल्मों में संघर्ष का रास्ता उन्होंने खुद चुना था। टीवी चैनलों ने हमें यह भी बताया कि सुशांत ने मात्र 34 वर्ष की उम्र में ही कामयाबी के कई झंडे गाड़े। इस दावे का निश्चित रूप से क्या अर्थ है पता नहीं। लेकिन हमें पता है कि राजकपूर ने मात्र 25 साल की उम्र में ‘बरसात’ बनाकर बॉलीवुड की फिल्मों का व्याकरण ही बदल दिया था। या फिर राजेश खन्ना ने चार साल के संघर्ष के बाद लगातार 15 जुबली हिट फिल्में देकर ऐसा रिकॉर्ड बनाया था, जो आजतक कायम है।
दूसरे, सुशांत प्रकरण में आठ सेलेब्रिटीज को शक के आधार पर कोर्ट में घसीटना सुसाइड के लिए दोषियों को सजा दिलवाना कम, मीडिया में सुर्खियां बटोरना ज्यादा लगता है। क्योंकि ऐसे आरोपों को कोर्ट में सिद्ध करना बहुत कठिन है। अगर ऐसे कोई ठोस पुरावे होते तो सुशांत जीते जी ही पेश कर चुके होते। डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें प्रमुख है आत्मविश्वास खोना। यह धैर्य की कमी के कारण भी हो सकता है।
ध्यान रहे कि जीवन की परीक्षा में ‘ऑब्जेक्टिव टाइप’ सवाल नहीं होते। इसलिए जो इन सवालों के जवाब धैर्य और संयम की कलम से लिखता है, वही उत्तीर्ण होता है। सुशांत प्रतिभाशाली थे, लेकिन इतिहास रचने के लिए जैसी जिद और जीवटता चाहिए, उसकी कहीं कमी थी। वरना जीवन में खुद को साबित करने के कई रास्ते हैं, उन पर दौड़ते जाना ही आत्मसिद्धी का परिचायक है।
‘आत्म-हत्या’ से सिम्पैथी मिल सकती है, मंजिल नहीं। सुशांत की मौत के बाद बहुत से लोग बॉलीवुड को यह कहकर गरिया रहे हैं कि यहां कोई किसी का दोस्त नहीं होता। रजत पट की ये दुनिया पूरी तरह निर्मम है। अगर ऐसा ही है तो लोग इस बेरहम दुनिया में आते ही क्यों हैं? किसी भी खेल में उतरने से पहले उसके नियमों को मानना ही पड़ता है और जहां प्रसिद्धी के साथ पैसा भी हो, वहां गलाकाट स्पर्द्धा लाजमी है।
क्योंकि हर व्यक्ति यहां इसी की चाहत में आता है और लय मिलते ही खुद भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसी भाई भतीजावाद को पोसने लगता है, जिसे वह बाधा मानता है। लुब्बो लुआब ये कि ऐसी दुनिया में वो ‘सुशांत’ ही टिक पाते हैं, जो भीतर से ‘प्रशांत’ भी हों।
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टीम मध्यमत