क्‍या भोपाल को देश की सबसे अराजक राजधानी बनाना है?

ऐसा लगने लगा है कि हम नाहक ही उत्‍तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्‍यों को वहां होने वाले अपराध और कानून व्‍यवस्‍था की बिगड़ती स्थिति के लिए दोष देते हैं। असलियत यह है कि हम भी उसी रास्‍ते पर चल पड़े हैं। हालात बता रहे हैं कि या तो हमारे यहां कानून हाथ में लेने वालों ने इन पड़ोसी राज्‍यों को अपना आदर्श मान लिया है या फिर हमारे यहां की कानून व्‍यवस्‍था और अपराध पर नियंत्रण रखने वाली एजेंसियां उन राज्‍यों का अनुसरण कर रही हैं।

ताजा उदाहरण राजधानी भोपाल में चल रही अतिक्रमण विरोधी मुहिम का है। यह तो पता नहीं कि नगर निगम और महापौर को किस देवता ने स्‍वप्‍न में आकर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए। लेकिन राजधानी के बड़े भाग्‍य जो निगम को अतिक्रमण हटाने की सुध आई। पर जैसे ही निगम का बुलडोजर आगे बढ़ा, इस मुहिम को ही बुलडोज करने वाली ताकतें सक्रिय हो गईं।

अतिक्रमण जब भी हटाए जाते हैं उसका विरोध होता ही है। यह प्रशासन की इच्‍छाशक्तिऔर राजनीतिक इच्‍छाशक्ति के बीच बनने वाले संतुलन पर निर्भर करता है कि अतिक्रमण हटेगा या नहीं। और हटेगा भी तो कौनसा हटेगा और कौनसा नहीं। किसका हटेगा और किसका नहीं। लेकिन शुक्रवार को राजधानी के अतिक्रमण विरोधी अमले ने भोपाल मध्‍य विधानसभा क्षेत्र से अवैध गुमठियां हटाने में शायद इस संतुलन की अनदेखी कर दी और वही हुआ जो संतुलन बिगड़ने पर होता है। सारा मामला धड़ाम से नीचे आ गिरा।

गंभीर बात यह रही कि जो अवैध गुमठियां नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी अमले ने हटाई थीं, उन्‍हें गुमठी वाले पूरी गुंडागर्दी के साथ निगम के स्‍टोर से वापस उठा ले गए। और यह सारी दादागीरी स्‍थानीय विधायक की अगुवाई में हुई। इतना ही नहीं जब इन लोगों को रोकने की कोशिश की गई तो उन्‍होंने निगम अमले के साथ मारपीट कर डाली। जब इस मामले में विधायक सुरेंद्रनाथसिंह से प्रतिक्रिया चाही गई तो उन्‍होंने ठीक सीनाजोरी वाले अंदाज में कहा-‘’मेरे विधानसभा क्षेत्र में मुझे भरोसे में लिए बिना कुछ नहीं करने दूंगा। जो हुआ उसमें गलत क्‍या है? आखिर इन लोगों ने ही तो हमें चुनाव में वोट दिया है। तो हम उनके लिए क्‍यों न लड़ें।‘’

विधायक सुरेंद्रनाथसिंह की अब तक की छवि इस तरह की गुंडागर्दी करने वाले जनप्रतिनिधि की नहीं रही है। उन्‍हें उनके समर्थक मम्‍मा के नाम से पुकारते हैं। व्‍यवहार में भी वे संयत और मिलनसार हैं। लेकिन मामा के राज में इस बार मम्‍मा का दूसरा ही रूप देखने को मिला। गुमठी प्रकरण से कुछ ही दिन पहले मम्‍मा अवैध रूप से बनाए गए एक रेस्‍टॉरेंट को गिराए जाने की कार्रवाई के समय भी मौके पर पहुंच गए थे। उस समय भी उन्‍होंने कार्रवाई को लेकर अफसरों से काफी पूछताछ की थी। लेकिन अफसरों ने कागज दिखाकर उनका मुंह बंद कर दिया और उस रेस्‍टॉरेंट को ढहा दिया गया। हो सकता है उस दिन की किरकिरी भीमम्‍मा के दिमाग में रही हो और उन्‍होंने अपनी राजनीतिक साख बचाने के लिए यह कांड करवा डाला हो। लेकिन सत्‍तारूढ़ दल का एक विधायक खुलेआम इस तरह कानून अपने हाथ में लेने के लिए लोगों को उकसाए इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।

और मजे की बात देखिए कि नगर निगम पर भी भाजपा का ही कब्‍जा है। अतिक्रमण हटाए जाने पर महापौर कहते हैं निगम का अमला ऐसी कार्रवाई सीएम हेल्‍पलाइन पर आने वाली शिकायतों के आधार पर ही करता है। यानी जो भी कार्रवाई हुई वह सीएम स्‍टाफ के संज्ञान में आने के बाद ही हुई। अब सवाल उठता है कि जब मुख्‍यमंत्री के मंच पर शिकायत हो और उसके निपटारे में नगर निगम कोई कार्रवाई करे तो विधायक की इस अवैध काम में इतनी रुचि क्‍यों होनी चाहिए।

राजधानी में वैसे भी गुमठी माफिया लंबे समय से सक्रिय है। राजनेताओं और अफसरों की सांठगांठ से करोड़ों का यह अवैध धंधा खूब फलफूल रहा है। सारा मामला जेबों के गरम होने का है। अभी तक खाल बचाने के लिए यह कहा जाता रहा है कि ऐसे लोगों को राजनीतिक संरक्षण नहीं मिलेगा। लेकिन माननीय विधायक ने खुद सामने आकर सारा मामला साफ कर दिया है। बल्कि वे तो दो कदम आगे बढ़कर यह भी कह गए कि आखिर इसमें गलत क्‍या है?

तो अब माननीय मुख्‍यमंत्रीजी और माननीय प्रदेश भाजपा अध्‍यक्षजी ही बताएं कि इसमें गलत क्‍या है और सही क्‍या है?  अपनी अत्‍यधिक व्‍यस्‍तताओं के बावजूद सारे अखबारों की सुर्खियां बनी यह खबर उन्‍होंने पढ़ी तो जरूर होगी। और न भी पढ़ी हो तो उनके स्‍टॉफ ने उन्‍हें बताया तो जरूर होगा। अब उनका फैसला क्‍या है? यह सीधे सीधे गैरकानूनी काम को संरक्षण देने और शासकीय कार्य में बाधा डालने का मामला है। और वह भी राजधानी में, ऐन सरकार की नाक के नीचे।

यही काम यदि विपक्षी दल के किसी नेता की अगुवाई में होता तो उसके खिलाफ ढेरों मामले दर्ज हो जाते। हो सकता है उसे गिरफ्तार भी कर लिया जाता। लेकिन इस घटना पर सरकार और पार्टी दोनों ने मौनव्रत ले लिया है। आप कोई कार्रवाई करें न करें, लेकिन इस मामले पर बोलें तो सही। यदि अपने आदमी को बचाना ही है तो यही बोल दें कि सरकार अपने वोटरों को जहां चाहे अतिक्रमण करने और गुमठी ठोक देने का अधिकार देती है। आप चाहें तो राज्‍य का नाम मध्‍यप्रदेश से बदलकर गुमठीप्रदेश करने का प्रस्‍ताव भी ला सकते हैं। कुछ तो करें सरकार…!

1 COMMENT

  1. अराजक सरकार और निरंकुश विधायक कानून का राज नहीं कह सकते इससे भी शरमनाक घटना इसके आगे की

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