अजय बोकिल
यूं तो यह पहल मुसलमानों को उनकी धार्मिक मान्यताओं और सुविधाओं के हिसाब से आशियाना उपलब्ध कराने के लिए बताई जा रही है, लेकिन इस पर नया बवाल खड़ा हो सकता है। क्योंकि केरल में एक बड़े बिल्डर ने राज्य के सबसे बड़े शहर कोच्चि में ‘शरिया अपार्टमेंट्स’ बनाने का ऐलान किया है। ये अपार्टमेंट शरिया कानून के हिसाब से होंगे। ताकि मुसलमानों को अपने धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करने में आसानी हो। साथ ही तमाम मुसलमान एक ही बिल्डिंग में रह सकेंगे।
कहा यह भी जा रहा है कि शरिया अपार्टमेंट्स वास्तव में ठंडे पड़े प्रॉपर्टी मार्केट को नए तरीके से भुनाने की कोशिश है। दूसरी तरफ लोग इस पहल के सामाजिक परिणामों को लेकर चिंतित हैं। क्योंकि शरिया अपार्टमेंट्स देश में मुसलमानों को मुख्य धारा से अलग-थलग करने का भी एक नया और बड़ा कारण बन सकता है।
इस्लाम में शरिया का अर्थ है- अल्लाह का दिखाया रास्ता और उसके बनाए हुए नियम। कुरान के मुताबिक शरिया सिर्फ एक कानून व्यवस्था ही नहीं है, बल्कि पूरी जीवन शैली के लिए निर्धारित नियम हैं। ठीक वैसे ही जैसे बाइबिल में ईसाइयों के लिए एक नैतिक व्यवस्था बयान की गई है। शरिया अपार्टमेंट दरअसल इन्हीं कानूनों के वास्तुशिल्पीय अनुवाद है।
सवाल पूछा जा सकता है कि सामान्य अपार्टमेंट्स और शरिया अपार्टमेंट्स में बुनियादी अंतर क्या है? यूं तो यह दोनों ही लोगों के रहने की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं, लेकिन फर्क यह है कि शरिया अपार्टमेंट्स मुसलमानों के लिए पवित्र मक्का शरीफ फेसिंग होंगे। हर अपार्टमेंट में मक्का की (पश्चिम) दिशा दर्शाने वाला संकेतक होगा। सामूहिक नमाज पढ़ने के लिए स्थान होगा। पांचों वक्त की नमाज के लिए प्रिंटेड शिड्यूल मिलेगा। हर अपार्टमेंट में पवित्र कुरान शरीफ की प्रति होगी।
इसके अलावा इन अपार्टमेंट्स का लेआउट भी ऐसा होगा कि जिससे नजदीक की मस्जिद की अजान आसानी से सुनी जा सके। इसके अलावा नमाज से पहले नहाने-धोने के लिए अलग से स्पेस, टॉयलेट और अन्य चीजों की व्यवस्था भी होगी। कुलमिलाकर ये इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार भारत में बनने वाले अपने ढंग के पहले फ्लैट्स होंगे।
शरिया अपार्टमेंट्स की शुरुआत करीब दस साल पहले मध्य पूर्व के देश दुबई में हुई। अब ऐसे अपार्टमेंट्स उन तमाम देशों में बनने लगे हैं, जहां मुसलमानों की आबादी काफी है। माना जाता है कि शरिया अपार्टमेंट्स ‘हलाल पर्यटन’ को बढ़ावा देंगे। अरबी में हलाल का अर्थ है- वैध। इसके दायरे में खान पान से लेकर वो तमाम चीजें आती हैं, जो इस्लामिक नियमों के अनुसार मान्य हैं। हमारे देश में केरल में हलाल पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है।
असल में ‘हलाल पर्यटन’ धार्मिक पर्यटन का ही एक उप-प्रकार है। इस बारे में कोच्चि विवि की एक रिसर्च स्कालर रसिया बेगम के मुताबिक मुसलमानों का धार्मिक पर्यटन हिंदू़, सिख, जैन आदि धर्मावलंबियों की तरह ‘आर्गनाइज्ड’ नहीं है। लोग जियारत वगैरह करते हैं, लेकिन मुस्लिम धार्मिक स्थलों के व्यवस्थित और सुनियोजित पर्यटन की सुविधा बहुत कम है। इस हिसाब से हलाल पर्यटन अगर बढ़ रहा है तो यह अच्छी बात है।
यह सही है कि मुस्लिम पर्यटकों की संख्या पूरी दुनिया में बढ़ रही है। ग्लोबल इस्लामिक इकानॉमी की वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार इसी अवधि में मुस्लिम यात्रियों का विश्व मार्केट 145 अरब अमेरिकी डॉलर का था, जो वर्ष 2020 तक 233 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाने की उम्मीद है। कुल ग्लोबल ट्रेवल मार्केट का 11 फीसदी हिस्सा मुसलमानों का है और दुनिया की तीसरी बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में रहती है।
इस हिसाब से मुसलमानों को उनकी जीवन शैली और धार्मिक विश्वासों के मुताबिक आवास मिलें, इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। आज जब भारत में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण माइक्रो लेवल तक पहुंच गया है, ऐसे में मुसलमानों के लिए शरिया अपार्टमेंट्स का अंतिम परिणाम और संदेश क्या होगा? क्या मुसलमान और अलग-थलग पड़ जाएंगे। उनका गैर मुसलमानों से संपर्क और कम होगा? वे अपने आप में और ज्यादा सिमट जाएंगे?
अभी हमारे देश में धर्म के आधार पर आशियाने बनाने का ज्यादा चलन नहीं हैं। हालांकि मुसलमानों के आवास अभी भी पर्दा प्रथा के अनुरूप बनाए जाते हैं, लेकिन एक हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई अथवा यहूदी के घर की रचना में कोई बुनियादी अंतर नहीं होता। इसी वास्तुशिल्प में लोग अपनी सुविधा से प्रार्थना स्थल और धार्मिक कर्मकांड की जगह निकाल लेते हैं। उसके लिए अलग बस्ती या अपार्टमेंट की मांग नहीं की जाती।
जबकि शरिया अपार्टमेंट्स इस धार्मिक अलगाव की शुरुआत का कारण बन सकते हैं। केरल अपार्टमेंट ओनर्स असोसिएशन के लीगल एडवाइजर जैकब मैथ्यू के मुताबिक ‘पहले ही समाज जाति और धर्म के नाम पर बंट रहा है। ऐसे में इस तरह के प्रयास सामाजिक ताने-बाने को और कमजोर करने वाले हो सकते हैं।‘
हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ‘ऐसी (शरिया अपार्टमेंट्स) जगहों पर लोग एक आस्था, खान-पान की समानता और एक सी वेशभूषा में रहते हैं। उन्हें इसलिए निशाने पर नहीं लेना चाहिए कि वे कौन हैं या क्या खाते हैं। खासकर तब कि जब आज हिंदुस्तान में किसी भी मुस्लिम को गैरमुस्लिम बहुल इलाके में घर मिलना दूभर हो गया हो। एक तर्क यह भी है कि आज जब प्रॉपर्टी मार्केट कमजोर चल रहा है, शरिया अपार्टमेंट्स वास्तव में मकान बेचने की आकर्षक शोशेबाजी है। इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। लेकिन यह उस संजीदा सवाल का जवाब नहीं हो सकता।
शरिया अपार्टमेंट्स के मार्केटिंग की टैग लाइन है ‘समग्र जीवनानुभव’ (होलिस्टिक लिविंग एक्सपीरियंस)। लेकिन यह समग्र अनुभव किसी एक समुदाय को लामबंद और स्थानबंद करने से कैसे होगा, समझना मुश्किल है। आज जरूरत हिंदू मुसलमानों को करीब लाने और परस्पर अविश्वास को दूर करने की है, शरिया अपार्टमेंट्स यकीनन अविश्वास दूर करने की जगह बढ़ाएगा ही।
कल को इसी तर्ज पर हिंदू अपार्टमेंट्स, सिख अपार्टमेंट्स और क्रिश्चियन अपार्टमेंट्स भी बनाने की मांग उठेगी, तब क्या होगा ? क्या हम समाज को फिर कबीलों में बांट देना चाहते हैं? मुसलमानों को उनकी जरूरत और विश्वासों के मुताबिक आशियाने मिलें, इसमें दो राय नहीं, लेकिन किस कीमत पर, यह भी उतना ही अहम है।
(सुबह सवेरे से साभार)