सुशांत की तरह आत्महत्या तो नहीं कर रहे हैं न्यूज़ चैनल?

आकाश शुक्ला

अधिकांश न्यूज़ चैनल पिछले कुछ दिनों से सुशांत सिंह की आत्महत्या की न्यूज़ दिखाने में लगे हुए है। ऐसी स्थिति हमारे देश में ही हो सकती है कि जब देश में 571 कोरोना के मरीज पूरे देश में थे तब कोरोना से संबंधित खबरो का 90 फीसदी कब्जा न्यूज़ चैनल की खबरों में था। और आज कोरोना के मरीज 39 लाख के पार होने के बावजूद चैनलों की प्राथमिकता में कोरोना और उससे संबंधित परेशानिया न होकर सुशांत सिंह की आत्महत्या से संबंधित खबर 90 फीसदी समय दिखाई जा रही हैं।

जैसे किसी दवा कि संतुलित मात्रा देने पर दवा बीमारी का इलाज करने के काम आती है और यदि किसी दवा का भी ओवरडोज दे दिया जाए तो वह जानलेवा हो जाता है। वैसे ही न्यूज़ चैनलों की स्थिति हो गई है। न्यूज़ चैनलों की प्राथमिकता में जनता से जुड़ी खबरें गायब है, इस कारण जनता का न्यूज़ चैनल देखने के प्रति मोहभंग हो रहा है। सुशांत सिंह की आत्महत्या जैसे जनता से कम जुड़ाव वाले मुद्दे को अधिकता में दिखाना न्यूज़ चैनलों के लिए आत्महत्या जैसा कदम है। अधिकांश न्यूज़ चैनल 24 में से 23 घंटे सुशांत सिंह से संबंधित समाचार दिखा रहे हैं।

देश में कोरोना का आंकड़ा 39 लाख से ऊपर पहुंच गया है और कम होने का नाम नहीं ले रहा है, यदि दिन भर में एक घंटे भी न्यूज़ चैनल अपने दर्शकों के प्रति थोड़ी सी जिम्मेदारी दिखाते हुए कोरोना से बचने की सावधानियां के बारे में जनता को जागरूक करते तो ऐसे संकट के समय कुछ तो समाज के प्रति अपना योगदान दे पाते? कोरोना काल में दम तोड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था सीमित सुविधाओं में अच्छा काम कर रही स्वास्थ्य संस्थाओं के बारे में न्यूज़ दिखाते तो भी अच्छा होता।

कुछ बातें दम तोड़ती अर्थव्यवस्था और जीडीपी पर करते तो भी चैनलों की सार्थकता समझ आती। कोरोना काल में बढ़ती बेरोजगारी और बेरोजगारों को इस दौर से निपटने के लिए प्रेरित करते या रोजगार के नवाचार सिखाते? रेलवे, एसएससी, एनटीपीसी जैसी परीक्षाओं के बाद रिजल्ट नहीं आने पर कुछ समाचार दिखाते?

शैक्षणिक संस्थाओं के बंद रहने के दौर में कुछ समय बच्चों को शिक्षा से संबंधित जानकारियां दिखाते? परिवहन के साधनों जैसे ट्रेन और बस के संचालन में कमी आने से आम जनता को परेशानी दिखाते? राज्यों को जीएसटी की क्षति पूर्ति राशि नहीं मिलने के कारण राज्य के आर्थिक संकट की सार्थक न्यूज़ दिखाते? प्रश्न पूछने का अधिकार खत्म करते हुए संसदीय सत्र बुलाने जैसे असंसदीय कार्य और इसके दुष्परिणाम पर कुछ समाचार दिखाते?

कोरोना काल से जुड़ी अन्य समस्याएं जैसे पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों की समस्याएं, विवाह और अन्य समारोह से जुड़े लोगों की समस्याएं, होटल और कैटरिंग व्यवसाय से जुड़े लोगों की समस्याएं, न्यायालय बंद रहने से वकीलों की समस्याएं जैसी कई समस्याएं और उनसे निपटने के नवाचार से संबंधित समाचार यदि न्यूज़ चैनल दिखाते तो शायद समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते…

परंतु समाचार चैनल अपने नैतिक दायित्व भूल गए हैं,  न तो इन चैनलों पर न समाचार है न ही जनता से जुड़े मुद्दों  की कोई खबर दिखाई जाती है। सामाजिक सरोकार से दूर समाचार चैनलों का अंत भी सुशांत सिंह की मौत जैसा न हो जाए, क्योंकि जनता के पास सुशांत सिंह की मौत के अलावा सोचने के लिए भूख, भय, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, गिरती अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई जैसी कई समस्याएं हैं जो जनता के रोटी कपड़ा और मकान से जुड़ी हुई है।

जनता को यह समझ आ रहा है कि सुशांत सिंह की मौत आत्महत्या से हुई तो इसके बारे में सोच कर उनकी आगे की जिंदगी नहीं चलेगी और यदि हत्या हुई है तो सीबीआई उसकी जांच कर रही है जिसके परिणाम निष्पक्ष जांच हो गई तो जल्दी ही आएंगे। इसीलिए जनता ने समाचार चैनल देखना लगभग छोड़ दिया है क्योंकि बिना समाचार के समाचार चैनल के हाल वैसे ही है जैसे कि बिना पेट्रोल के कार चलाना। बिना पेट्रोल की कार में बैठा तो जा सकता है, परंतु कार में घूमने का आनंद नहीं लिया जा सकता है।

यह ठीक मन की बात कार्यक्रम जैसा है, जिसमें अपने मन और मनमानी की बातें होती है, जनता की परेशानी की कोई बात नहीं होती। जनता से दूर जाएंगे तो इनका हश्र भी मन की बात के वर्तमान एपिसोड जैसा होगा। एक राजनीतिक पार्टी अपने घर की बात करती है, एक मन की बात करती है और अधिकांश न्यूज़ चैनल बेकार की बात करने लगे हैं। न्यूज़ चैनल शायद यह भूल गए हैं कि उनका अस्तित्व जनता से जुड़े मुद्दों से ही है जिन खबरों से जनता का जुड़ाव नहीं होगा ऐसी खबरें न्यूज़ चैनलों का अस्तित्व खत्म करेगी।

बिना न्यूज़ के न्यूज़ चैनल चलाने की परमिशन तो इनको मिली हुई है पर जनता बिना न्यूज़ के न्यूज़ चैनल देखना जल्दी ही छोड़ देगी, तब तक न्यूज़ चैनलों की स्थिति वैसी ही होगी जैसे कि आत्महत्या के बाद जीवन के अवसर खत्म होना।

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