विश्‍व हिन्‍दी दिवस पर एक जरूरी गुजारिश

प्रीति अज्ञात जैन 
आज ‘विश्व हिन्दी दिवस’ पर यह प्रण कीजिए कि एप्प चाहे कुछ भी सलाह दे पर आप ‘कि’ को ‘कि’ ही लिखेंगे ‘की’ नहीं और ‘और’ को ‘और’ ही लिखेंगे ‘ओर’ नहीं। पढ़ने में परेशानी हुई न? संपादकों की पीड़ा भी समझिए जब ‘धुल का फुल’ जैसे शब्द पढ़ने को मिलते हैं। स्मरण रहे कि आप ‘कवि’ हैं ‘कवी’ नहीं और कबी-कबी तो कभी भी नहीं!
वे लोग जो हर वाक्य के बाद …….. छोड़कर चंपक के ‘बिन्दु मिलाओ’ की स्मृतियों में गोता लगवाते हैं, उनके पैरों में गिरकर क्षमा माँगना चाहती हूँ कि सर/मैडम जी उसको मिटाते-मिटाते हाथों की मांसपेशियाँ भी मूर्छित हो जाती हैं।
पूर्ण विराम के स्थान पर, अल्प विराम लगाने वाले साथियो
आपके , , , , ठीक करते-करते किसी दिन हम ही comma में न चले जाएं!
एक दिन कुछ यूँ भी हुआ –
इस्क में शराबोर आसिक का सेर आया –
कबी कबी मेरे दील मे खियाल आता हे
की जेसे तूझको बनाया गिया हे मेरे लीए
😎
हमने जे जबाब दीया 😎
तेरे दील मे ये बेहुदा खियाल जभ आता हे
मेरे अन्दर का सायर तबी मर झाता हे
तूम कोपी तो ठिक करते नही
सेर को माफ करने मे तेरा किया झाता हे
झा इस्क तो न कर सकुंगि कबी
तेरी id ओर चेरा रोझ बदल झाता हे
थोड़ा लिखा, बहुत समझना
(प्रीति अज्ञात जैन जानी मानी ब्‍लॉगर हैं, यह पोस्‍ट उनकी फेसबुक वॉल से साभार) 

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