नोटबंदी को लेकर संसद से सड़क तक तमाम जगहों पर घमासान जारी है। उधर केंद्र की मोदी सरकार विमुद्रीकरण के राजपथ पर बिना डिगे या विचलित हुए आगे बढ़ रही है। भाजपा शासित राज्यों को निर्देश दे दिए गए हैं कि वे अपने यहां नोटबंदी को क्रांतिकारी आर्थिक सुधार के रूप में प्रचारित, प्रसारित व प्रचलित करें और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए सपने ‘कैशलेस सोसायटी’ को साकार करने में जुट जाएं।
इस बीच मोदी मंत्रिमंडल के सदस्यों और भाजपा के केंद्रीय नेताओं के बयान, नोटबंदी के बाद बनने वाली देश की नई अर्थव्यवस्था को लेकर अलग अलग संकेत दे रहे हैं। जैसे नोटबंदी के बाद गरीबों के लिए खोले गए जनधन खातों में आए हजारों करोड़ रुपए को लेकर खुद प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीब इन खातों में जमा किया (अथवा करवाया गया) पैसा न निकालें। इस पैसे को लेकर मैं अपना दिमाग लगा रहा हूं।
भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा कि सरकार ने कालेधन को सामने लाने का कोई उपाय नहीं छोड़ा है। लोग यह न समझें कि बैंक खाते में जमा करा देने से ही उनका पैसा या कालाधन सफेद हो जाएगा। जो पैसा सिस्टम के अंदर आ गया है उसकी पूरी जांच करने के बाद सरकार ही तय करेगी वह वैध है या अवैध। इस पर टैक्स भी देना होगा और पेनल्टी भी। हम यदि चाहते हैं कि देश आने वाले दिनों में जनकल्याण और विकास की दिशा में छलांग लगाए तो वो तभी हो सकता है जब हर ट्रांजैक्शन पर टैक्स मिले।
भाजपा अध्यक्ष के इस बयान को बहुत बारीकी से समझना जरूरी है। जब वे संकेत देते हैं कि सरकार हर ट्रांजैक्शन पर टैक्स वसूलने की मंशा को लेकर आगे बढ़ रही है, तो इसके मायने क्या हैं? क्या यह माना जाए कि अब सरकार आय के साथ साथ व्यय पर भी टैक्स वसूलने की कोई व्यवस्था करने जा रही है?क्योंकि जब हर ट्रांजैक्शन पर टैक्स लगने की बात होती है तो जाहिर है उसमें बैंकों से होने वाले ट्रांजैक्शन भी शामिल हैं। यानि नोटबंदी के दौरान बैंकों में जमा अपनी राशि निकालने पर सरकार ने जो बंदिश लगाई थी, क्या वो बंदिश भविष्य में इस व्यवस्था के साथ हटेगी कि अब यदि आपने बैंक से पैसे निकाले तो आपको एक न्यूनतम राशि टैक्स के रूप में देनी होगी, भले ही उसे ट्रांजैक्शन टैक्स कहा जाए या कुछ और।
आपको याद होगा कि संसद में नोटबंदी पर हुई चर्चा के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री और जाने माने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहनसिंह ने सवाल उठाया था कि यह कौनसी अर्थव्यवस्था है जिसमें लोग बैंकों में पैसा जमा तो करा सकते हैं लेकिन निकाल नहीं सकते। लगता है मनमोहनसिंह की बात को सरकार किसी न किसी रूप में सच ही करने जा रही है। इसी दिशा में पहला कदम अर्थव्यवस्था में प्रचलित 14 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक मूल्य के 500 व 1000 के नोटों को सिस्टम के अंदर लाने का था और अब अगला कदम इस सिस्टम में ऐसे ‘कंट्रोलिंग वॉल्व’ लगाने का होगा कि आप उसमें से निर्धारित मात्रा में ही राशि निकाल सकें।
प्रधानमंत्री ने नोटबंदी करते वक्त देशवासियों से 50 दिन मांगे थे, वित्त मंत्री ने उस अवधि को बढ़ाकर तीन महीने कर दिया था और अब भाजपा अध्यक्ष कह रहे हैं कि छह माह बाद स्थितियां इतनी सरल नहीं रहेंगी। यानी नोटबंदी से उपजे झटके कई महीनों तक जारी रहने वाले हैं। अमित शाह ने यह भी कहा है कि चूंकि कई चीजें पहली बार हो रही हैं, इसलिए इतना हल्ला मच रहा है। आगे चलकर सारी चीजें इतनी सरल नहीं रह जाएंगी जितनी आज हैं। सरकार यह नहीं होने देगी कि कुछ लोग टैक्स भरें और कुछ लोग टैक्स के दायरे से बाहर रहकर मौज करें। इसका सीधा सीधा अर्थ यह है कि सरकार ने आय पर लिए जाने वाले कर की वर्तमान व्यवस्था को खत्म करने या उसमें भारी बदलाव करने का मन बना लिया है। यदि आप आय पर कर नहीं दे रहे तो आपको खर्च पर टैक्स देना होगा।
वैसे आयकर को खत्म कर, खर्च पर टैक्स वसूलने का यह विचार नया नहीं है। जिस ‘अर्थक्रांति’ नामक संगठन को कालाधन रोकने के लिए प्रधानमंत्री को नोटबंदी की सलाह देने का जिम्मेदार बताया जाता है,उस संगठन की बड़ी सिफारिश भी यही रही है कि आयकर को खत्म किया जाए। वर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली के कटु आलोचक, भाजपा सांसद और अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी भी आयकर को खत्म किए जाने के पक्षधर हैं, लेकिन सरकार के कदम मिलीजुली कर आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। हो सकता है वह आयकर भी जारी रखे और खर्च पर भी बंदिश के तौर पर कुछ करारोपण कर दे। जिस तरह जीएसटी के रूप में व्यापार क्षेत्र के लिए एकीकृत कर व्यवस्था लाई जा रही है, उसी तरह इनकम और खर्च के लिए भी कोई एकीकृत कर व्यवस्था सरकार के दिमाग में हो। और जैसाकि हम इस कॉलम में लिख चुके हैं, नोटबंदी के परिणाम को कैशलेस सोसायटी में तब्दील करने की मुहिम अंतत: लोगों पर एक नए करारोपण का ही सबब बनेगी। शायद ये बयान और वर्तमान घटनाक्रम भी उसी ओर संकेत कर रहे हैं।