भज आनंदम्, भज आनंदम्, भज आनंदम्, मूढ़ मते

आदि शंकराचार्य की बहुत चर्चित भक्ति रचना है-

भज गोविंदम्, भज गोविंदम्, भज गोविंदम् मूढ़ मते…

इस रचना के सृजन की जो कथा उपलब्‍ध है, वह कहती है कि शंकराचार्य ने इस मधुर रचना का पहला पद उस समय लिखा, जब वे एक गांव से गुजर रहे थे। उन्‍होंने देखा एक बूढ़ा आदमी व्याकरण के सूत्र रट रहा है। उसकी दशा देख उन्हें बड़ी दया आई और उन्‍होंने मन ही मन सोचा कि यह आदमी भी अजीब है, जो  मरते वक्त व्याकरण के सूत्र रट रहा है। इसने अपना पूरा जीवन निरर्थक गंवाया और अब अपना अंतिम समय भी यह निरर्थक ही गंवा रहा है। इसने पूरे जीवन तो कभी परमात्मा का स्मरण किया नहीं और जब अंत समय निकट है तब भी यह व्‍याकरण में उलझा है। भला अब व्याकरण के सूत्र रटने से क्या होगा?

शंकराचार्य की यह भक्ति रचना और उससे जुड़ी यह कथा मुझे शुक्रवार को मध्‍यप्रदेश विधानसभा में बहोरीबंद से कांग्रेस के विधायक कुंवर सौरभसिंह द्वारा पूछे गए एक सवाल से याद आई। सौरभ सिंह ने मुख्‍यमंत्री से प्रदेश में आनंद विभाग के गठन और विभाग की ओर से प्रत्‍येक जिले को आवंटित बजट के बारे में जानकारी मांगी थी। मुख्‍यमंत्री ने उन्‍हें जवाब दिया कि 6 अगस्‍त 2016 को गठित किए गए इस विभाग के लिए 2 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। इस बजट को जिलेवार आवंटित नहीं किया जाता।

आनंद विभाग के गठन के बाद संभवत: यह पहला मौका था जब उसे लेकर विधानसभा में कोई सवाल पूछा गया। लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि कांग्रेस आनंद विभाग पर सवाल पूछकर किस तरह का आनंद लेना चाहती है। और चलो आनंद न भी लेना चाह रही हो तो 13 साल से चल रहे भाजपा के आनंद में क्‍यों खलल डालना चाहती है। दूसरों के आनंद की चिंता करने के बजाय बेहतर क्‍या यह नहीं होगा कि वह अपने यहां कई सालों से व्‍याप रहे संताप की चिंता करे।

साफ दिख रहा है कि आनंद पर इन दिनों सिर्फ और सिर्फ भाजपा का अधिकार है। मध्‍यप्रदेश से लेकर दिल्‍ली तक आनंद ही आनंद की खबरें आ रही हैं। दूसरों के आनंद को लेकर ऐसा ईर्ष्‍या भाव रखना ठीक नहीं।  कांग्रेस तो अपना खाता टटोले कि आनंद का बजट स्‍वीकृत करने लायक उसके अच्‍छे दिन कब आएंगे? मेरा तो सुझाव है कि कांग्रेस के विधायकों को आनंद विभाग के बारे में विधानसभा में सवाल पूछने के बजाय पार्टी में एक संताप प्रकोष्‍ठ की स्‍थापना पर जोर देना चाहिए। सरकार ने तो फिर भी आनंद विभाग के लिए दो करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया है। संताप प्रकोष्‍ठ की स्‍थापना तो बिना किसी खर्चे के ही हो जाएगी। इस प्रकोष्‍ठ का एक बहुत बड़ा फायदा यह रहेगा कि इसका पदाधिकारी बनने के लिए कोई मारामारी नहीं होगी।

जिस तरह मध्‍यप्रदेश में भाजपा शासित सरकार ने आनंद विभाग की गतिविधियों के तहत आनंद उत्‍सव,आनंदम और आनंद सभा जैसे आयोजनों की योजना बनाई है, उसी तर्ज पर कांग्रेस समानांतर रूप से संताप उत्‍सव, संतापम् और संताप सभा जैसे आयोजनों पर विचार कर सकती है। क्‍योंकि किस्‍मत ने सारा आनंद भाजपा की झोली में उलीच रखा है। पूरा प्रदेश एक दशक से भी ज्‍यादा समय से देख रहा है कि भाजपा आनंद से गच्‍च है और कांग्रेस का पैर संताप में फच्‍च है…

और ये आनंद का बजट पूछने की क्‍या तुक है भाई? माना कि बजट बहुत सारे लोगों के ‘आनंद’ का आधार है। लेकिन कांग्रेस यदि यह सोचती है कि आनंद विभाग के बजट की बदौलत सरकार के लोग आनंद में है तो वह भुलावे में हैं। फैज अहमद फैज का मशहूर शेर है-

और भी दुख हैं जमाने में मोहब्‍बत के सिवा,

राहतें और भी हैं वस्‍ल की राहत के सिवा

इसी तर्ज पर सरकार के यहां यह शेर कुछ यूं कहा जा सकता है कि ‘’बजट और भी हैं आनंद के बजट के सिवा…’’ और सच पूछा जाए तो ‘असली आनंद’ उन्‍हीं बजटों की बदौलत है। रहा सवाल प्रदेश की जनता का तो वह बेचारी न तो आंनद का मोल करने की हालत में है और न उसे तौल पाने की।

कांग्रेस विधायक ने पूछा कि किस जिले को आनंद विभाग के तहत कितना बजट दिया? वो तो अच्‍छा हुआ कि सरकार ने ऐसा कुछ किया ही नहीं था वरना बताना पड़ता कि 51 जिलों के हिसाब से हरेक जिले के खाते में पूरे 3 लाख 92 हजार 156 रुपए 86 पैसे आए हैं। प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के हिसाब से देखा जाता तो हरेक आदमी के खाते में आनंद के निमित्‍त आते पूरे 26 पैसे। यानी बंद को चुकी चवन्‍नी से भी एक पैसा अधिक।

लेकिन इस तरह से आनंद का हिसाब किताब करना सरकार के साथ अन्‍याय है। चीजों को सकारात्‍मक नजरिए से देखने के आग्रह वाले इस समय में यदि आप वैसा ही नजरिया रखें, तो पाएंगे कि इस घोर महंगाई के जमाने में इतना सस्‍ता आनंद अन्‍यत्र दुर्लभ है। आपको तो सरकार की दाद देनी चाहिए कि उसने आनंद का सौदा भी इतने सस्‍ते में कर लिया। इस पर भी यदि आप सवाल उठाएं तो यह आपकी घोर नकारात्‍मक मानसिकता का परिणाम नहीं तो और क्‍या है?

इसलिए आप अपने इस संताप काल में आनंद के बजट का व्‍याकरण पढ़ने के बजाय इस आनंद को ‘गोविंदस्‍वरूप’ मानते हुए इसी का जाप करिए और दूसरों से भी कहिए- भज आनंदम्, भज आनंदम्, भज आनंदम्, मूढ़ मते…

 

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