लाउडस्पीकर पर अजान को लेकर गायक सोनू निगम के बयान से पैदा विवाद के संदर्भ में जानेमाने कवि एवं लेखक शरद कोकास की यह कविता बहुत प्रासंगिक है…
अज़ान तब भी होती थी जब लाउड स्पीकर नहीं होते थे
मन्दिरों में भजन भी गाए जाते थे
और मनुष्य की करुणा में ईश्वर का प्रवेश सायास नहीं था
आस्था किसी प्रमाण की मोहताज़ नहीं थी उन दिनों
और उसे लोकप्रिय होने का रोग भी नहीं लगा था
रमज़ान के दिनों में पूरे मोहल्ले की सुबह होती थी अलसुबह
जागो सहरी का वक़्त हो गया कहती निकलती थी टोलियाँ
सुबह के झुटपुटे में पहचान पाना मुश्किल उनमें रमेश कि रफीक़
इधर नसीम आपा सहरी बनाने में व्यस्त तो शकुंतला मौसी
बड़ी पापड़,अचार डालने जैसे साल भर के कामों मे
और इफ़्तारी की दावत के चलते रामदुलारी चाची
पूरे माह चाचा के शाम के नाश्ते की फ़िक्र से बेफ़िक्र
(शरद कोकास की कविता संवेदनशील इलाका से एक अंश )