नई दिल्ली, मई 2016/ आमतौर पर कारोबारी कंपनियां कोशिश करती हैं कि ऐसी कोई बंदिश उन पर लागू न हो जो उनके आर्थिक हितों का नुकसान पहुंचाने वाली हों। लेकिन भारतीय दूरसंचार की दुनिया में बहुत बड़ा नाम रखने वाली कंपनी एयरटेल ने इस आम धारणा से अलग जाते हुए एक ऐसा फैसला किया है जो भारत में कारोबारी कंपनियों की छवि बदलने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
पूरे देश में मोबाइल उपभोक्ता कई कारणों से कॉल ड्रॉप की समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे में ट्राई के पास भी इसकी हजारों शिकायतें पहुंच रही हैं। ट्राई न दो प्रतिशत से अधिक कॉल ड्राप होने पर मोबाइल कंपनियों पर जुर्माना लगाने का फैसला सुनाया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। इसे उपभोक्ताओं के हितों पर एक बड़ा झटका माना जा रहा था।
लेकिन अपने उपभोक्ताओं की सेवा को हमेशा सबसे ऊपर मानने वाली कंपनी एयरटेल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सामने आई है। कंपनी ने नजीर पेश करते हुए इस काम को भी सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ दिया है।
कंपनी ने कहा है कि ट्राई ने तो दो प्रतिशत कॉल ड्राप होने की स्थिति में जुर्माने की बात कही थी लेकिन एयरटेल खुद के लिए डेढ़ प्रतिशत कॉल ड्राप होने की सीमा का बंधन लागू करता है। कंपनी ने कहा कि वह ग्राहकों को निर्बाध सेवा देने के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसे में यदि वह कॉल ड्राप होने की सीमा डेढ़ प्रतिशत तक सीमित नहीं रख पाती तो उसके एवज में दी जाने वाली जुर्माने की राशि के तौर पर वह सालाना 100 करोड़ रुपए ग्रामीण इलाकों में बच्चों की शिक्षा के लिए देगी।
कंपनी की ओर से कहा गया है कि वह अपने उपभोक्ताओं की सुविधा और उन्हें सर्वश्रेष्ठ सेवा देने के लिए 60 हजार करोड़ रुपए की लागत से नेटवर्क का विस्तार भी करेगी। इससे कॉल ड्राप की समस्या दूर करने में मदद मिलेगी।
भारत में सेवा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किसी कंपनी द्वारा खुद पर ही आर्थिक जुर्माना लगाने और उस जुर्माने की राशि लोकसेवा में खर्च करने का यह अनूठा उदाहरण है। एयरटेल ने इस कदम से बाकी कंपनियों के सामने नजीर पेश की है। यदि यह भावना आगे बढ़ती है तो सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा दी जाने वाली सेवा में भी सुधार होगा और ऐसा न होने पर समाज की जरूरतों के लिए आवश्यक राशि भी मिल सकेगी। यानी दोनों तरह से यह फैसला समाज के हित में है।