राकेश अचल
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह राजनीति के ऐसे छात्र हैं जो शायद अग्निपरीक्षाएँ देने के लिए ही बने हैं। प्रदेश में अक्टूबर के अंत में होने वाले उप चुनाव शिवराज सिंह चौहान के लिए फिर से एक अग्निपरीक्षा के तौर पर सामने हैं। मध्यप्रदेश में लोकसभा की एक और विधानसभा की 3 सीटों के लिए उप चुनाव होना हैं।
उपचुनावों से सत्तारूढ़ दल के लिए हालांकि कोई बड़ी कठिनाई नहीं होती, किन्तु ये चुनाव मुख्यमंत्री की मान-प्रतिष्ठा को घटाते-बढ़ाते जरूर रहते हैं। एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह ने अपने पुराने कार्यकाल में लगातार उपचुनावों का सामना किया। डेढ़ साल पहले भले ही वे कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट होने के बाद मुख्यमंत्री बने थे किन्तु मुख्यमंत्री बनते ही उन्हें दो दर्जन विधानसभा सीटों पर उपचुनावों का सामना करना पड़ा था। पिछले उप चुनावों में जीत का दारोमदार प्रत्याशियों के साथ ही उनके नेताओं पर भी था, किन्तु इन उप चुनावों का सारा दायित्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ऊपर ही होगा।
मध्यप्रदेश में इस महीने होने वाले चुनाव अप्रत्याशित हैं। इन चुनावों की वजह कोरोना का प्रकोप है। खंडवा लोकसभा सीट बीजेपी सांसद नंद कुमार सिंह चौहान के निधन से खाली हुई, पृथ्वीपुर विधानसभा सीट कांग्रेस पूर्व मंत्री ब्रजेन्द्र सिंह राठौर के निधन से, जोबट विधानसभा सीट कांग्रेस की कलावती भूरिया के निधन से जबकि रैगांव विधानसभा सीट बीजेपी के जुगल किशोर बागरी के निधन से खाली हुई। जिन सीटों के लिए उप चुनाव हो रहे हैं उनके सभी जन प्रतिनिधि कोरोना के शिकार हुए।
उप चुनावों में प्रत्याशियों का चयन किसी भी पार्टी के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं होती। प्राय: पार्टी दिवंगत नेताओं के परिजनों को ही उम्मीदवार बनाती है ताकि मतदाता सहानुभूति का वोट देकर राजनीतिक दलों को कृतार्थ करें। इस प्रयोग के सुफल भी मिलते आये हैं, लेकिन कभी-कभी परिणाम बदल भी जाते हैं। सहानुभूति की तुरुप नहीं चलती। मतदाता परिवारवाद को अस्वीकार भी कर देता है। इस बार भी कांग्रेस और भाजपा ने इसी पुराने फार्मूले के हिसाब से प्रत्याशियों का चयन किया है। इक्का-दुक्का सीटों पर प्रत्याशी चयन को लेकर असंतोष है लेकिन ऐसा नहीं की उसे कोई चुनौती माना जाये। चुनौती सिर्फ इतनी है की दोनों दल अपनी-अपनी पुरानी सीटें बचा पाएंगे या नहीं?
विधानसभा और लोकसभा सीट के लिए होने वाले इन उपचुनावों में सत्तारूढ़ दल ने अभी से जमावट शुरू कर दी है। कांग्रेस भी पीछे नहीं है। कांग्रेस की दशा घायल नाग जैसी है। उसके लिए अपनी दोनों विधानसभा सीटें बचाने के साथ ही भाजपा से लोकसभा और विधानसभा की एक सीट छीनने की चुनौती है। कांग्रेस के पास बिखरा हुआ नेतृत्व है। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ऊपर ही इन उपचुनावों को जिताने का दायित्व है, बावजूद इसके कांग्रेस के तेवर देखने लायक हैं।
आपको याद होगा कि कि मध्यप्रदेश में उपचुनाव से पहले सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ाने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने बहुत पहले से कार्ययोजना बनाकर काम करना शुरू कर दिया है। एक तरफ जहां भाजपा सोशल मीडिया पर रणनीति को धार देने के लिए नई नियुक्तियां कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने उपचुनाव से पहले प्लान ‘रीच-100’ योजना शुरू की है। इस योजना के तहत कांग्रेस हर जिले में सोशल मीडिया पर सक्रिय 100 लोगों को जोड़ रही है। पहले जोड़े गए 100 लोग फिर विधानसभा स्तर पर 100 और लोगों को जोड़ेंगे। इस तरह एक चेन बनेगी। एक जिले में कम से कम 10 हज़ार लोगों को जोड़ने का टारगेट रखा गया है। कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम इस पर काम कर रही है।
मध्यप्रदेश में होने वाले उप चुनाव मुद्दों पर कम भावनाओं पर ज्यादा लड़े जाना हैं, लेकिन मुद्दे हैं ही नहीं ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। प्रदेश में हुई बारिश के बाद खस्ता हाल सड़कें एक बार फिर मुद्दा बन गई हैं। इनके अलावा बाढ़ और बारिश से पुल, पुलियों के बह जाने, बिजली के भारी भरकम बिल और बढ़ती महंगाई को कांग्रेस ने जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया है। भाजपा कांग्रेस के 2003 से पहले के शासन में बिजली और सड़क के हालात और अब के हालात के तुलनात्मक आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं। प्रदेश के मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि खराब सड़कों को तत्काल सुधारा जा रहा है। बिजली के क्षेत्र में रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। लोनिवि मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि कांग्रेस 18 साल में बूढ़ी हो गई है और अब उसे मुद्दे नहीं मिल रहे हैं। कांग्रेस सरकार की तुलना में आज प्रदेश के स्टेट हाईवे नेशनल हाईवे और एमडीआर रोड बेहतर हालत में हैं। परफॉर्मेंस गारंटी वाली सड़कों के खराब होने पर उनके सुधारने का प्रावधान है।
उपचुनावों में सबसे बड़ी अड़चन तीज-त्योहार हैं। दीपावली सर पर है। मतदाता इन त्योहारों की तैयारी में लगे हैं, ऐसे में नेताओं के लिए उनके दरवाजे पर वोट मांगने पहुंचना थोड़ा दिक्क्त का काम है। चुनाव आयोग ने तो प्रदेश की खंडवा-बुरहानपुर लोकसभा सीट एवं पृथ्वीपुर, जोबट और रैगांव सीट पर उपचुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई। इसी के साथ उम्मीदवारों के नामांकन पत्र जमा करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। नामांकन जमा करने की अंतिम तिथि 8 अक्टूबर है। खंडवा लोकसभा क्षेत्र में 19 लाख 68 हजार 768 मतदाता हैं। जबकि, तीनों विधानसभा क्षेत्रों में छह लाख 81 हजार 105 मतदाता हैं। लोकसभा चुनाव में अधिकतम व्यय सीमा 77 लाख और विधानसभा क्षेत्र में 35 लाख रुपये है। कोविड-19 के मापदंड के अनुसार पर्याप्त इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का इंतजाम किया गया है। मतदान के लिए 24 हजार मतदानकर्मी नियुक्त किए गए हैं।
उपचुनाव जीतने और हारने का अनुभव दोनों दलों के पास है, इसलिए अभी से ये कहना कठिन है कि परिणाम क्या होंगे। लेकिन एक बात तय है कि ये परिणाम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के भविष्य को प्रभावित जरूर करेंगे। यदि भाजपा उपचुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री का कद एक-दो इंच बढ़ जाएगा, लेकिन यदि उप चुनावों में भाजपा हारती है तो राज्य में एक बार फिर मुख्यमंत्री हटाओ अभियान तेज हो सकता है। उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्यों में मुख्यमंत्री बदले जाने से भाजपा के तमाम नेता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को हटाने का सपना आजकल दिन में भी देखते हैं। (मध्यमत)
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