आकाशवाणी के बाद पीएमवाणी

राकेश अचल

किसान आंदोलन से जूझ रही केंद्र सरकार ने किसानों के लिए कोई क्रांतिकारी कदम उठाया हो या न उठाया हो लेकिन देश के बेरोजगारों के लिए एक क्रांतिकारी कदम जरूर उठाया है और इसे ‘पीएमवाणी’ नाम दिया है। देश को ‘हरितक्रांति’ की आवश्यकता थी लेकिन सरकार ‘वाईफाई क्रांति’ लेकर सामने आ गयी। देशवासियों को इस क्रान्ति का स्वागत करना चाहिए। आखिर सरकार कुछ कर तो रही है देश के लिए।

देश में आकाशवाणी हालांकि पहले से ‘पीएमवाणी’ बनाई जा चुकी है लेकिन अब इस नयी योजना से पीएम की दो-दो वाणियां हो जायेंगी। अब आप मन की बात सुनने के लिए परेशान नहीं होंगे। नयी योजना के तहत पब्लिक डेटा ऑफिस (पीडीओ),  पब्लिक डेटा ऑफिस एग्रीगेटर्स और ऐप प्रदाताओं को शामिल किया जाएगा। ‘‘पीडीओ के लिए कोई लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं होगी,  न ही इनके पंजीकरण की जरूरत होगी। इन पर कोई शुल्क लागू नहीं होगा। पीडीओ छोटी दुकानें या साझा सेवा केंद्र (सीएससी) भी हो सकते हैं।’’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई तो हमें क्या पूरे देश को लगा कि सरकार हो न हो, किसानों की मांगों पर कोई क्रांतिकारी फैसला करेगी! सरकार ने क्रांतिकारी फैसला किया तो, लेकिन किसानों के लिए नहीं पीएम के लिए। पीएमवाणी के लिए किया,  जिसे गोदी मीडिया के जरिये पूरा देश निशियाम पहले से सुनता आ रहा है। इस बैठक में फैसला किया गया कि सरकार देश में 1 करोड़ डेटा सेंटर खोलेगी। इस योजना को प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस इंटरफेस नाम दिया गया है। दावा है कि इसके जरिए देश में वाई-फाई की क्रांति लाई जाएगी।

मजे की बात ये भी है कि एक पखवाड़े लम्बे किसान आंदोलन पर मौन साधकर बैठे माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपनी नयी योजना के इस बाबत ट्वीट कर कहा है कि “इस योजना से हमारे छोटे दुकानदार वाई-फाई सेवा प्रदान कर सकेंगे। यह उनकी आय को बढ़ावा देगा और साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि हमारे युवाओं को आसानी से इंटरनेट कनेक्टिविटी मिले। यह हमारे डिजिटल इंडिया मिशन को भी मजबूत करेगा।”

आपको बता दें कि इस योजना के जरिए सरकार देश के कोने-कोने तक इंटरनेट कनेक्टिविटी पहुंचाना चाहती है और इसकी शुरुआत चाय की दुकानों और लोकल किराना स्टोर्स के साथ होगी। यानी किसी भी प्रकार का बिजनेस करने वाले लोग एयरटेल,  जियो या किसी दूसरे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर की सर्विस ले सकते हैं और अपनी जगह में पब्लिक वाईफाई नेटवर्क की सुविधा शुरू करा सकते हैं। ऐसे में जो भी व्यक्ति उनकी दुकान/बिजनेस पर आता है वह इस वाईफाई का इस्तेमाल कर सकेगा। इस योजना से बीएसएनएल को कोई लाभ होगा ये नहीं मालूम।

इस योजना की तारीफ़ हमें इसलिए करना चाहिए क्योंकि सरकार का दावा है कि सार्वजनिक वाई-फाई नेटवर्क डेवलप करने से न केवल रोजगार पैदा होगा,  बल्कि छोटे और मझोले उद्यमियों की आय बढ़ेगी और देश की जीडीपी को बढ़ावा मिलेगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में इंटरनेट सेवाएं दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले आज भी संतोषजनक नहीं हैं। देश में नेट उपभोक्ताओं को पहले मुफ्त डाटा का चारा डालकर ऐसा फंसाया गया कि अब बेचारा अपने आप को असहाय अनुभव कर रहा है। अब सेवा प्रदाता कंपनियां मनमाने ढंग से शुल्क वृद्धि करती जा रही हैं। नियामक संस्थाएं मूकदर्शक बनी हुई हैं, इसलिए आशंका है कि भविष्य में पीएमवाणी भी कहीं लूट का औजार न बन जाये।

पीएमवाणी को आप किसान आंदोलन से अलग कर देखेंगे तो आपको सचमुच क्रान्ति होती नजर आएगी, लेकिन जब इसे किसान आंदोलन से जोड़कर देखेंगे तो पाएंगे कि ये योजना भी उन्ही धनपशुओं के हित के लिए बनाई गयी है जिनके लिए नए किसान क़ानून बनाये गए हैं। सरकार योजनाबद्ध तरिके से अडानियों, अम्बानियों के लिए हर क्षेत्र में ‘रेड कार्पेट’ बिछाने में लगी है। पूंजीपतियों के लिए सुविधाएं देना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इसके लिए जनहित दांव पर लगा देना बुरी बात है। सवाल ये है कि क्या देश में आज कोई ‘जनवाणी’ भी है?

केंद्र सरकार अब जनादेश से चलने के बजाय ‘स्वयंभू’ हो गयी लगती है। सरकार देशकाल और परिस्थियों के मुताबिक़ नहीं बल्कि अपने एजेंडे के हिसाब से चल रही है। किसान आंदोलन के चलते हुए सरकार ने पांच दौर की वार्ता के बावजूद कोई निर्णय नहीं किया। देश की सबसे बड़ी अदालत के स्थगन के बावजूद सरकार नए संसद भवन की आधारशिला रख रही है। सरकार ने इस परियोजना के लिए गैरकानूनी तरीके से लैंडयूज बदला है,  अदालत में इसका फैसला लंबित है, लेकिन सरकार रुकने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसे पता है कि अदालत सरकार के बढ़ते कदमों को रोकने का निर्णय शायद ही करे।

आत्मविश्वास से भरी केंद्र सरकार के इस दुस्साहस की तारीफ़ करना चाहिए,  मैं तो सरकार के साहस की तारीफ़ करता हूँ, आपकी आप जाने। मैंने अपने आधी सदी के कार्यकाल में ऐसी जोरदार सरकार नहीं देखी। मैं समझता था कि इंदिरा गांधी की सरकार ही मनमौजी सरकार थी, लेकिन मेरी धारणा अब गलत साबित हो रही है। मौजूदा सरकार ने तो मन की मौज के सभी पुराने कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं। अब रोम का जलना और नीरो का बंशी बजाना मुझे काल्पनिक नहीं लगता।

देश के किसानों को चाहिए कि वे आने वाले दिनों में देशव्यापी आंदोलन करने के बजाय सर झुकाकर राजाज्ञा को मानें,  नए कृषि कानूनों का सम्मान करें और अपनी विरासत उन लोगों को सौंप दें जिन्हें सरकार ने चिन्हित किया है। सरकार से टकराकर किसानों को क्या मिलने वाला है? सरकार से जो टकराता है वो चूर-चूर हो जाता है। किसानों की भी खैर नहीं है। वे यदि सरकार से टकराएंगे तो कहीं के नहीं रहेंगे, न घर के और न घाट के। अगर आप राष्ट्रभक्त हैं तो आपको मान लेना चाहिए कि आंदोलन करने वाले किसान और किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले राजनीतिक दल और हमारे जैसे असंख्य छुटभैया लेखक राष्ट्रद्रोही हैं।

देश में सबको साथ लेकर,  सबका विकास हो रहा है। आगे भी होगा। इसी सब में किसान भी समाहित हैं। वे सबसे बाहर तो नहीं हैं। किसानों के बिना ये देश कैसे हो सकता है? हमारे प्रधानमंत्री जी ने भले खेती-किसानी न की हो, चाय बेची हो लेकिन वे किसानों के दुःख-दर्द को भली भांति जानते हैं। दरअसल वे भी किसान बनना चाहते थे, लेकिन समयाभाव के कारण बन नहीं पाए। यदि वे किसान बन गए होते तो किसानों की बात सरकार चुटकियों में समझ जाती। देश के प्रधानमंत्री का किसान न होना देश के किसानों का दुर्भाग्य है। पहले के प्रधानमंत्री भी कौन से किसान थे भाई? कृषि प्रधान देश में किसान का प्रधानमंत्री बनना एक दिवास्वप्न है,  जिसे किसी को देखना नहीं चाहिए।

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