राकेश अचल
मंत्रिमंडल में मनचाहे और मलाईदार विभागों का वितरण करने के बाद मुख्यमंत्री अब काम करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं, उन्होंने सरकारी मशीनरी को सफेदपोशों के खिलाफ मुहिम चलने के निर्देश दिए हैं। ये मुहिम कमलनाथ की मुहिम जैसी होगी या अलग ये कहना अभी कठिन है। पूर्व की कमलनाथ सरकार ने मिलावटखोरी के खिलाफ एक युद्ध और माफियाराज के खिलाफ तोड़फोड़ अभियान चलाया था।
इस हकीकत को स्वीकार करने में किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि प्रदेश लम्बे अरसे से ड्रग्स का धंधा करने वाले, सम्पत्ति हड़पने वाले, सहकारी माफिया, हुक्का लाऊंज चलाने वाले, चिटफंड कम्पनी, राशन की कालाबाजारी करने वाले, मिलावटखोरों के शिकंजे में है। दुर्भाग्य ये है कि इन सभी के संरक्षक हमारे अपने जनप्रतिनिधि हैं इसलिए उनके खिलाफ किसी भी सरकार में कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती। कमलनाथ सरकार में जो तथाकथित अभियान चलाये गए उसके तहत एक ख़ास राजनितिक दल से जुड़े लोगों को निशाना बनाया गया फलस्वरूप काले कारोबार के खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई न किये जाने के आरोप लगे ।
शिवराज मंत्रिमंडल में कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे अनेक लोग शामिल हैं, उन्हें पूर्व की मुहिम की हकीकत मालूम है, वे यदि शुद्ध अंत:करण से सरकार का साथ दें तो मुमकिन है कि मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप सफेदपोशों के खिलाफ अभियान का श्रीगणेश किया जा सके। लेकिन आज जो मंत्रिमंडल की दशा-दिशा है उसे देखते हुए मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई मुहिम प्रदेश में कामयाब हो पाएगी। दरअसल इस तरह की मुहिम का श्रीगणेश सरकार को अपने घर से ही करना होगा, क्योंकि सफेदपोश सत्ता के इर्दगिर्द ही पनपते हैं भले ही सत्ता किसी भी दल की हो।
मजे की बात ये है कि सफेदपोशों के खिलाफ काम करने वाली मशीनरी में वे ही सब लोग शामिल हैं जो पूर्व में थे, केवल सत्ता का चेहरा बदला है, इसलिए कार्रवाई शुरू करने में कोई देरी नहीं होना चाहिए। पुलिस और प्रशासन के पास सफेदपोशों के काले कारनामों का पूरा कच्चा चिठ्ठा मौजूद है। हर जिले में मौजूद है, लेकिन इच्छाशक्ति की कमी है, क्योंकि पूरी मशीनरी राजनीतिक हस्तक्षेप से आक्रान्त है। सरकार में बैठे सफेदपोश ही अपनी मशीनरी का मनोबल तोड़ने के लिए कमर कसकर तैयार खड़े दिखाई देते हैं। ऐसे में कोई मुहिम कैसे कामयाब हो सकती है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी आदत और शैली के अनुरूप निर्देश दिए हैं कि हर जिले में सबसे पहले बड़े एवं सफेदपोश बदमाशों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए। ड्रग्स का धंधा करने वाले, सम्पत्ति हड़पने वाले, सहकारी माफिया, हुक्का लाऊंज चलाने वाले, चिटफंड कम्पनी, राशन की कालाबाजारी करने वाले, मिलावटखोरों आदि सभी के विरुद्ध तत्परता से कार्रवाई की हो। यदि किसी जिले में कार्रवाई में लापरवाही होती है तो इसके लिये कलेक्टर एवं एसपी जिम्मेदार माने जाएंगे। मुख्यमंत्री के निर्देशों में वैसे कोई मौलकिता नहीं है। पहले भी कलेक्टर और एसपी ही को जिम्मेदार माना जाता था, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई क्या जाती है, ये सबको पता है।
प्रदेश में माफियाराज की स्थापना जिले के एसपी और कलेक्टर के अलावा स्थानीय विधायक और मंत्री के संरक्षण में होती है। यदि मुख्यमंत्री इस गठजोड़ को तोड़ने में कामयाब हो सकें तो मुमकिन है कि उनके निर्देशों का कोई परिणाम जनता के सामने आये, अन्यथा नतीजा हमेशा की तरह ‘ढाक के तीन पात’ वाला रहने वाला है। जिलों में पूरी शांति व्यवस्था रहे, अपराधियों के मन में डर हो इसके लिए पुलिस और प्रशासन का इकबाल बुलंद किया जाना जरूरी है। लेकिन इस दिशा में मुख्यमंत्री ने कोई गारंटी किसी को नहीं दी है। मुख्यमंत्री को इस हकीकत की भी अनदेखी नहीं करना चाहिए कि अब उनकी सरकार में कांग्रेस के एक दर्जन से अधिक वे लोग भी मंत्री बने बैठे हैं जो पूर्व की सरकार का भी हिस्सा थे। क्या उनकी दखलंदाजी किसी भी नयी मुहिम को कामयाब होने देगी?
सरकार के हाथ-पांव बहुत लम्बे होते हैं, सरकार को पता होता है कि प्रदेश में कहाँ, कौन विधायक या मंत्री किस तरह के कारोबार में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल है। सरकार चाहे तो स्थितियां रातों-रात बदल सकती हैं। पर ये तभी मुमकिन है जब सरकार सफेदपोशों की रीढ़ तोड़ने से पहले अपनी मशीनरी की रीढ़ को मजबूत करे। पुलिस और प्रशासन को राजनितिक हस्तक्षेप से मुक्ति का अभयदान दे। खबरें हैं कि नया मंत्रिमंडल बनते ही प्रदेश में कार्यरत अनेक कंपनियां चौथ वसूली के प्रस्ताव आते ही भागने की तैयारी में हैं। सरकार में बैठे लोगों के प्रतिनिधि ही नहीं खुद सरकार ही प्रदेश में काम करने वाली कंपनियों से अपना हिस्सा पेशगी मांगने लगी है।
आपको बता देना चाहूंगा कि यदि सरकार चाहे तो कुछ भी असम्भव नहीं है। पूर्व में भी प्रदेश में चिटफंड जैसे घृणित कारोबार की कमर इसी मशीनरी ने तोड़ी थी, आकाश त्रिपाठी जैसे अफसरों को इसीलिए याद किया जाता है। कमलनाथ सरकार ने मिलावट के खिलाफ जितनी कार्रवाई पूरे प्रदेश में की थी उतनी कार्रवाई एक जमाने में अकेले ग्वालियर में नकली घी बनाने वालों के खिलाफ की गयी थी।
लेकिन दुर्भाग्य से आज वे सब फिर आबाद हैं। सारे भू-माफिया, ड्रग माफिया पिछले सौ दिन में फुलफार्म में आ गए हैं। और प्रशासन तथा पुलिस कोविड-19 को ढाल बनाये हुए अपना मुंह छिपाता फिर रहा है। हमें उम्मीद करना चाहिए कि शिवराज का ताज और महाराज का राज प्रदेश का कायाकल्प करने के लिए सरकार की मंशा के अनुरूप प्रदेश को सफेदपोशों के चंगुल से निकालने में प्रभावी सामंजस्य और सहयोग करेगा। क्योंकि सफेदपोश मधुमक्खी की तरह हैं, वे शहद के छत्तों के इर्दगिर्द ही पनपते हैं।