राकेश अचल
हो चले छोटे सिकुड़ कर दिन,कहाँ हो लौट आओ
सुन रहे हो तुम मुझे मोमिन,कहाँ हो लौट आओ
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रात लम्बी हो चली फिर सर्दियों की जानते हो
डस रही है याद की नागिन,कहाँ हो लौट आओ
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मै अकेला हूँ किसे आवाज दूँ घनघोर वन में
भूख से व्याकुल खड़ी बाघिन,कहाँ हो लौट आओ
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बरछियाँ लेकर हवा चलती दिखाई दे रही है
खो गयी है मखमली जर्किन,कहाँ हो लौट आओ
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हल्फिया मेरे बयानों को हँसी में मत उड़ाना
रह नहीं सकता तुम्हारे बिन, कहाँ हो लौट आओ
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बह रहा है खून, कोई चूसने वाला नहीं है
चुभ गयी है उँगलियों में पिन,कहाँ हो लौट आओ